हिण्डौनसिटी. मण्डावरा ग्राम पंचायत की शहर से सटी
ढाणी बड़ का पुरा की अंजू कुमारी जाटव ने बचपन से ही परिवार की तंगहाली
देखी। धनाभाव की वजह से एक बार पढ़ाई भी छोडऩी पड़ी, लेकिन हिम्मत नहीं
हारी।
पेन्टर पिता के विश्वास और हौंसलों की ऊंची उडान के साथ अंजू ने फिर से कॅरियर को नई दिशा देते हुए न केवल एमएससी तक पढ़ाई की, बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई।
दीवारों को इन्द्रधनुषी रंग देने वाले पेन्टर पिता हरी बाबू दिवंगत हो गए हैं, लेकिन अंजू के लिए अभावों की मजबूरी अब मजबूती दे रही है। पांच भाई बहिनों में तीसरे नंबर की अंजू ने पत्रिका को बताया कि उसके पिता जयपुर में पेन्टर का काम किया करते थे। लेकिन रोजमर्रा की कमाई से पढ़ाई तो दूर परिवार का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता था। ऐसे में पिता ने उसे जयपुर के एक सरकारी विद्यालय में दाखिला दिलाया। जहां से उसने आठवीं कक्षा उतीर्ण की। पिता के रोजगार में कमी आई तो परिवार में तंगहाली भी बढ़ गई। इस पर पूरा परिवार वापस गांव आ कर रहने लगा।
तंगहाली के बीच ही अंजू ने वर्ष 2003 में 10 वीं कक्षा तो उतीर्ण कर ली, लेकिन 11वीं के बाद आगे की पढ़ाई में पैसों की कमी रुकावट बन गई। रोजगार नहीं मिलने से परेशान पिता ने भी बुझे मन से उसे पढ़ाई छोड़ मां के साथ घरेलू कामकाज में हाथ बंटाने की बात कह दी। अंजू बताती है कि यह एक साल उसके लिए पहाड़ सा प्रतीत हुआ। लेकिन बहन की खातिर बड़े भाई जसवंत ने भी अपनी पढ़ाई छोड़ दी और पिता के साथ पेन्टर का काम करने लगा। मेहनत बढ़ी तो कमाई भी बढ़ गई।
पिता ने वर्ष 2006 में 12वीं कक्षा में अंजू को फिर सरकारी विद्यालय में प्रवेश दिलाया। इसके बाद अंजू की हौंसले की उड़ान रुकी नहीं। उसने वर्ष 2009 में बीएससी, वर्ष 2010 में बीएड़ परीक्षा उतीर्ण कर ली। इसके बाद अंजू ने शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। यहां भी महंगी किताबों के खर्च ने उसे हताश किया, लेकिन इसके लिए वह निजी स्कूल में अध्यापन कराने लगी। वहां से मिलने वाले पारिश्रमिक से अंजू किताबें खरीदती और पढ़ाई के साथ घर के कामकाज में मां का हाथ बंटाती।
हताशा के बाद मिली सफलता-
इस बीच वर्ष 2013 में अंजू ने शिक्षक भर्ती परीक्षा दी, लेकिन रीट के अंकों के विवाद के चलते परीक्षा परिणाम पर न्यायालय ने रोक लगा दी। इससे वह एक बार फिर से हताश हो गई। लेकिन वर्ष 2017 में परीक्षा का परिणाम आया तो अंजू ही नहीं वरन पूरे परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह अब तृतीय श्रेणी शिक्षिका जो बन चुकी थी। सरकार ने 2 नवम्बर 2017 को धौलपुर जिले के सैपऊ उपखंड के कोलुआ पुरा स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में उसे नियुक्ति दे दी। लेकिन इसके ठीक पांच माह बाद ही उसके पिता हरीबाबू की सडक़ हादसे में मृत्यु हो गई।
पेन्टर पिता के विश्वास और हौंसलों की ऊंची उडान के साथ अंजू ने फिर से कॅरियर को नई दिशा देते हुए न केवल एमएससी तक पढ़ाई की, बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई।
दीवारों को इन्द्रधनुषी रंग देने वाले पेन्टर पिता हरी बाबू दिवंगत हो गए हैं, लेकिन अंजू के लिए अभावों की मजबूरी अब मजबूती दे रही है। पांच भाई बहिनों में तीसरे नंबर की अंजू ने पत्रिका को बताया कि उसके पिता जयपुर में पेन्टर का काम किया करते थे। लेकिन रोजमर्रा की कमाई से पढ़ाई तो दूर परिवार का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता था। ऐसे में पिता ने उसे जयपुर के एक सरकारी विद्यालय में दाखिला दिलाया। जहां से उसने आठवीं कक्षा उतीर्ण की। पिता के रोजगार में कमी आई तो परिवार में तंगहाली भी बढ़ गई। इस पर पूरा परिवार वापस गांव आ कर रहने लगा।
तंगहाली के बीच ही अंजू ने वर्ष 2003 में 10 वीं कक्षा तो उतीर्ण कर ली, लेकिन 11वीं के बाद आगे की पढ़ाई में पैसों की कमी रुकावट बन गई। रोजगार नहीं मिलने से परेशान पिता ने भी बुझे मन से उसे पढ़ाई छोड़ मां के साथ घरेलू कामकाज में हाथ बंटाने की बात कह दी। अंजू बताती है कि यह एक साल उसके लिए पहाड़ सा प्रतीत हुआ। लेकिन बहन की खातिर बड़े भाई जसवंत ने भी अपनी पढ़ाई छोड़ दी और पिता के साथ पेन्टर का काम करने लगा। मेहनत बढ़ी तो कमाई भी बढ़ गई।
पिता ने वर्ष 2006 में 12वीं कक्षा में अंजू को फिर सरकारी विद्यालय में प्रवेश दिलाया। इसके बाद अंजू की हौंसले की उड़ान रुकी नहीं। उसने वर्ष 2009 में बीएससी, वर्ष 2010 में बीएड़ परीक्षा उतीर्ण कर ली। इसके बाद अंजू ने शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। यहां भी महंगी किताबों के खर्च ने उसे हताश किया, लेकिन इसके लिए वह निजी स्कूल में अध्यापन कराने लगी। वहां से मिलने वाले पारिश्रमिक से अंजू किताबें खरीदती और पढ़ाई के साथ घर के कामकाज में मां का हाथ बंटाती।
हताशा के बाद मिली सफलता-
इस बीच वर्ष 2013 में अंजू ने शिक्षक भर्ती परीक्षा दी, लेकिन रीट के अंकों के विवाद के चलते परीक्षा परिणाम पर न्यायालय ने रोक लगा दी। इससे वह एक बार फिर से हताश हो गई। लेकिन वर्ष 2017 में परीक्षा का परिणाम आया तो अंजू ही नहीं वरन पूरे परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह अब तृतीय श्रेणी शिक्षिका जो बन चुकी थी। सरकार ने 2 नवम्बर 2017 को धौलपुर जिले के सैपऊ उपखंड के कोलुआ पुरा स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में उसे नियुक्ति दे दी। लेकिन इसके ठीक पांच माह बाद ही उसके पिता हरीबाबू की सडक़ हादसे में मृत्यु हो गई।
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