जयपुर राजस्थान में सरकारी महकमें नींद में गाफिल है। ऐसा लगता है कि
उन्हें विभाग में चल रहे कामकाज का पता नहीं होता, सिर्फ आदेश निकालकर
कागजी कार्रवाई पूरी करने में जुटे रहते है। दौसा से ऐसा ही एक मामला सामने
आया है जिसमें सात माह पहले एक सरकारी शिक्षक की मृत्यु हो गई, लेकिन
विभाग अभी भी उसके नाम से नोटिस जारी कर हाजिर होने के आदेश दे रहा है।
सरकारी विभागों में ऐसी लापरवाही एक नहीं कई दफा सामने आ रही है। काम जब डिजिटलाइजेशन तरीके से हो रहा है तो माना जा रहा था कि महकमें में होने वाले छोटे से छोटे बदलाव को आसानी से अधिकारियों की जानकारी में लाया जा सकेगा, लेकिन इस युग में ऐसी लापरवाही ने तो सरकारी महकमों के अजीबोगरीब हालात बयान कर दिए है।
दरअसल वर्ष 2016-17 में न्यून परीक्षा परिणाम रहने पर अध्यापकों को नोटिस जारी कर अपने पक्ष में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तिगत सुनवाई कर मौका दिया जा रहा है। इसके तहत जिले के 28 शिक्षक अभी तक हुई सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए हैं। अब जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक ने अंतिम मौका देते हुए सभी को 19 सितंबर को सुनवाई के लिए पाबंद किया है।
इसके साथ ही विभाग के अधिकारियों ने नोटिस भी जारी किया है। जिसमें यह भी चेतावनी दी कि अब भी अनुपस्थित रहने पर अध्यापक को प्रकरण में कुछ भी नहीं कहना है मानकर निर्णय किया जाएगा। ऐसे में जिसकी मृत्यु हो गई हो उस शिक्षक की तरफ से विभाग कुछ नहीं कहना मानकर निर्णय करने की आजादी मिल जाएगी।
रोचक तथ्य यह है कि इस सूची में 26वें नंबर पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय कोल्यावास के शिक्षक दिलीपसिंह राजावत का नाम भी है। राजावत का निधन करीब सात माह पूर्व हो चुका है। इसके बाद भी 20 जून के बाद अब फिर उनके नाम से व्यक्तिगत सुनवाई के लिए पत्र जारी पाबंद कर दिया गया है।
यह पत्र शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बन गया है। खास बात यह है कि शिक्षक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति के लिए भी जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कार्यालय से फाइल तैयार कर भेजी गई है और उसी कार्यालय से ही व्यक्तिगत सुनवाई के लिए मृत शिक्षक को बुलाया जा रहा है।
इस पत्र की प्रतिलिपि सीबीईओ, पीईईओ व संस्था प्रधान को भी भेजी गई है। इसके बावजूद भी सूची से मृत शिक्षक का नाम नहीं हटाया गया है।
दौसा के जिला शिक्षा अधिकारी रामप्रसाद बैरवा का कहना है कि निश्चित रूप से यह गलती है। मेरी ध्यान में ऐसा नहीं लाया गया। लिपिक, सीबीईओ सहित अन्य किसी ने भी नहीं बताया। अब ठीक करा दिया जाएगा।
सरकारी विभागों में ऐसी लापरवाही एक नहीं कई दफा सामने आ रही है। काम जब डिजिटलाइजेशन तरीके से हो रहा है तो माना जा रहा था कि महकमें में होने वाले छोटे से छोटे बदलाव को आसानी से अधिकारियों की जानकारी में लाया जा सकेगा, लेकिन इस युग में ऐसी लापरवाही ने तो सरकारी महकमों के अजीबोगरीब हालात बयान कर दिए है।
दरअसल वर्ष 2016-17 में न्यून परीक्षा परिणाम रहने पर अध्यापकों को नोटिस जारी कर अपने पक्ष में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तिगत सुनवाई कर मौका दिया जा रहा है। इसके तहत जिले के 28 शिक्षक अभी तक हुई सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए हैं। अब जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक ने अंतिम मौका देते हुए सभी को 19 सितंबर को सुनवाई के लिए पाबंद किया है।
इसके साथ ही विभाग के अधिकारियों ने नोटिस भी जारी किया है। जिसमें यह भी चेतावनी दी कि अब भी अनुपस्थित रहने पर अध्यापक को प्रकरण में कुछ भी नहीं कहना है मानकर निर्णय किया जाएगा। ऐसे में जिसकी मृत्यु हो गई हो उस शिक्षक की तरफ से विभाग कुछ नहीं कहना मानकर निर्णय करने की आजादी मिल जाएगी।
रोचक तथ्य यह है कि इस सूची में 26वें नंबर पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय कोल्यावास के शिक्षक दिलीपसिंह राजावत का नाम भी है। राजावत का निधन करीब सात माह पूर्व हो चुका है। इसके बाद भी 20 जून के बाद अब फिर उनके नाम से व्यक्तिगत सुनवाई के लिए पत्र जारी पाबंद कर दिया गया है।
यह पत्र शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बन गया है। खास बात यह है कि शिक्षक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति के लिए भी जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कार्यालय से फाइल तैयार कर भेजी गई है और उसी कार्यालय से ही व्यक्तिगत सुनवाई के लिए मृत शिक्षक को बुलाया जा रहा है।
इस पत्र की प्रतिलिपि सीबीईओ, पीईईओ व संस्था प्रधान को भी भेजी गई है। इसके बावजूद भी सूची से मृत शिक्षक का नाम नहीं हटाया गया है।
दौसा के जिला शिक्षा अधिकारी रामप्रसाद बैरवा का कहना है कि निश्चित रूप से यह गलती है। मेरी ध्यान में ऐसा नहीं लाया गया। लिपिक, सीबीईओ सहित अन्य किसी ने भी नहीं बताया। अब ठीक करा दिया जाएगा।
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