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सर सलामत तो पगड़ी पचास...सब बोले, डॉक्टर-इंजीनियर बनना ही अंतिम विकल्प नहीं

कोटा. । ध्यान, धारणा व समाधि से मिलकर बना संस्कृत शब्द सम्यमा। कोचिंग नगरी कोटा में इसी शीर्षक से यूआईटी ऑडिटोरियम में रविवार को कार्यशाला आयोजित की गई। कोचिंग विद्यार्थी, शिक्षक, प्रबंधक, सामाजिक संस्थाएं, हॉस्टल संचालक, डॉक्टर्स और अभिभावकों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों ने छह घंटे तक विद्यार्थियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति दूर करने को लेकर मंथन किया।

इस दौरान सबसे बड़ी बात जो सामने आई वो थी सर सलामत तो पगड़ी पचास...। कहावत कही नगर निगम आयुक्त शिवप्रसाद नकाते ने। इसी बात को कई वक्ताओं ने अपने-अपने अंदाज में कहा। मतलब एक ही था, डॉक्टर-इंजीनियर बनना ही जीवन का अंतिम विकल्प नहीं है। राहें और भी हैं जहां सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कार्यशाला सिर्फ मंच पर मौजूद वक्ताओं के भाषणों तक ही सीमित नहीं रही। इसमें श्रोताओं के भी 15 समूह बनाए गए। समूहों ने आपस में चर्चा की और मंच पर प्रजेन्टशन दिया। इसके बाद वक्ताओं ने इन सुझावों पर बातचीत की। बाद में सभी समूहों के प्रतिनिधियों को पुरस्कृत किया गया। जिला प्रशासन द्वारा विद्यार्थियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को लेकर पहली बार इतने बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कितनी आत्महत्याएं
वर्ष युवक - युवतियां - कुल
2013 - 9 - 4 - 13
2014 - 5 - 3 - 08
2015 - 7 - 3 - 10
31 में से 5 राजस्थान के।
26 राजस्थान से बाहर के।
जहरीला पदार्थ खाने से : 3
आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में कोटा जिले का एक भी नहीं।
मई-जून में आधे मामले, क्योंकि प्रवेश व परिणाम का समय रहता है।
1.14 लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं कोटा के कोचिंग संस्थानों में।
सुबह-शाम आत्महत्या की दर ज्यादा। शरीर की केमिकल बॉडिंग के कारण।
मूल बात
कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो मूल बात सामने आई, उसमें हर वर्ग की भूमिका जरूरी है। बात शुरू हुई, अच्छी पढ़ाई से तो इसके लिए अच्छा मानसिक स्वास्थ्य चाहिए। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए शरीर बेहतर चाहिए।
शरीर को अच्छा पोषण मिलेगा तभी स्वस्थ्ता रहेगी और पोषण अच्छे वातावरण से मिलेगा तो उसका असर ज्यादा अच्छा दिखेगा। ऐसे में कोचिंग संस्थान में पढ़ाई से लेकर मैस का खाना, हॉस्टल में रहन-सहन और गली-मोहल्ले का माहौल तक इसमें शामिल हो गया।
इन्होंने किया सम्बोधित
अध्यक्षता जिला कलक्टर डॉ. रविकुमार सुरपुर ने की। पुलिस अधीक्षक एस.एस. गोदारा, पुलिस अधीक्षक (एसीबी) डॉ. अमनदीप सिंह कपूर, नगर निगम आयुक्त शिवप्रसाद नकाते, एमबीएस अस्पताल अधीक्षक डॉ. विजय सरदाना, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक शारदा, डॉ. सी.बी. दासगुप्ता, सीजेएम संजय त्रिपाठी, डॉ. देवेन्द्र विजयवर्गीय, डॉ. आर.सी. साहनी, एलेन कॅरियर इंस्टीट्यूट के प्रतिनिधि सी.आर. चौधरी, हॉस्टल एसोसिएशन अध्यक्ष गजेन्द्र यादव ने सम्बोधित किया। अंत में एडीएम सिटी सुनीता डागा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
डॉक्टर्स पहचान सकते हैं
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक शारदा ने कहा कि डॉक्टर कुछ लक्षणों के आधार पर तय कर सकते हैं कि बालक अवसाद में है। सिर-पेट व बदन दर्द, खाते ही उल्टी आ जाना, नींद नहीं आना, मन नहीं लगना, उठते ही उचकारे आना समेत कई ऐसे कारण हैं जो बच्चों में अवसाद को दर्शाते हैं। हमें ऐसे बच्चों की काउंसलिंग या कोचिंग को सूचित करना चाहिए।
ग्रुप में ये आए सुझाव
स्कूलों व कोचिंगों में प्रतिदिन सुबह ध्यान, योगा कराया जाए।
पढ़ाई के अलावा खेल व अन्य गतिविधियां कराई जाएं।
संडे को एग्जाम नहीं हो, छुट्टी रखी जाए, टेस्ट दूसरे दिन हो।
हॉस्टलों में दिए जाने वाले भोजन की क्वालिटी सुधरे।
यदि बच्चा नहीं पढऩा चाहता तो उसकी एडमिशन फीस लौटाई जाए।
पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है तो उसकी काउंसलिंग कर उसे घर भेजा जाए।
कोचिंगों में चल रही रैंक प्रवृत्ति को रोका जाए।
हॉस्टलों में बच्चों के उपस्थिति रजिस्टर लागू किया जाएं।
हॉस्टलों व कोचिंगों के पास दुकानों पर बिकने वाले धूम्रपान पर पाबंदी लगाई जाए।
विद्यार्थी थाने की स्थापना की जाए।
हैल्पलाइन सेंटर खोला जाए।
कोचिंगों में शिकायत बॉक्स रखा जाए, शिकायतों पर समाधान किया जाए।
कोचिंगों में सुबह दो मिनट जीवन संवारने की शपथ दिलाए जाए।
कोचिंगों में विद्यार्थियों की स्वास्थ्य जांच कराई जाए।
मोहल्लेवार वरिष्ठजनों की कमेटी बने।

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