बीकानेर. । कोटा जिले का महेश मारू पोस्ट ग्रेजुएट है। वह प्रादेशिक सेना में भर्ती होने इसलिए आया है कि साल भर बेरोजगार बैठने से अच्छा है कि कम से कम दो माह का रोजगार तो मिले। जयपुर जिले के शमशेर सिंह की भी कमोबेश यही कहानी है। वह गेजुएट है तथा सेना में भर्ती नहीं हो पाया तो अब प्रादेशिक सेना में भाग्य आजमाने आया।
सवाईमाधोपुर जिले का ओमप्रकाश बीए है, वह कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग्य आजमा चुका लेकिन नंबर नहीं आया।
अब यह सोचकर आया है कि स्थाई न सही तो दो माह का रोजगार ही सही। इस तरह के उदाहरण कई हैं।
चाहे करौली का सोहनराम हो या फिर कोटा जिले का लक्ष्मण गोदारा।
यह सब युवा डिग्रीधारी हैं लेकिन बेरोजगारी के मारे हैं। इधर, बेरोजगारी का आलम यह है कि जहां जरूरत सौ की होती है वहां आवेदन करने वालों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है।
बड़ी बात तो यह है कि सामान्य पदों के लिए भी डिग्रीधारी आवेदन कर रहे हैं। बीकानेर में चल रही प्रादेशिक सेना भर्ती देखकर तो ऐसा ही लगता है।
भर्ती प्रक्रिया में शामिल युवकों की संख्या एवं नियुक्ति का अनुपात देखें तो एक पद के लिए तीन सौ से अधिक आवेदक पहुंचे हैं। भर्ती सैनिक व ट्रेडमैन के लिए है।
इसके लिए योग्यता मात्र दसवीं है लेकिन इसमें बड़ी संख्या में आवेदन डिग्रीधारी युवाओं ने भी किया है। इसके पीछे प्रमुख कारण भर्ती के लिए अधिकतम आयु 42 साल होना भी है।
प्रादेशिक सेना भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों को वे सारी सुविधाएं मिलती है जो नियमित जवान को उपलब्ध होती हैं। यही कारण है कि एक साल में दो माह की सेवा होने के बावजूद इस भर्ती को लेकर बेरोजगारों का रुझान रहता है।
मनीष ओझा, लेफ्टिनेंट कर्नल,
सेना प्रवक्ता
मनीष ओझा, लेफ्टिनेंट कर्नल,
सेना प्रवक्ता
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