अजमेर । महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय प्रशासन ने फिर कमाल कर दिखाया। एक छात्र की कॉपी नहीं जांची थी, तब भी 7 अंक दिए और अब कॉपी जांच ली गई तो भी 7 ही अंक दिए हैं। यहां तक कि विवि प्रशासन का दावा है कि जिस छात्र की पूर्व में कॉपी जांचें बिना रह गई थी, उसकी कॉपी दो परीक्षकों से दुबारा जंचवाई गई, लेकिन अंकों में कोई बदलाव नहीं आया। एेसे में विवि की उत्तर पुस्तिका जांच प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में है।
यह है मामला
बीए तृतीय वर्ष के छात्र टोंक निवासी राकेश कुमार खोखर को अंग्रेजी साहित्य विषय में बिना कॉपी जांचे ही 7 अंक देकर फेल घोषित कर दिया गया। छात्र ने कॉपी देखी तो पता चला कि केवल मुखपृष्ठ पर 7 अंक दिए गए हैं, लेकिन अंदर के पृष्ठों पर कॉपी नहीं जांची गई थी। राजस्थान पत्रिका ने गत 6 अक्टूबर के अंक में इस संबंध में खबर प्रकाशित की। उसके बाद विवि प्रशासन हरकत में आया।
न्यायालय की लेगा शरण
छात्र राकेश वायुसेना में कार्यरत है। उसका कहना है कि वायुसेना में अंग्रेजी काफी आवश्यक होती है। उसकी अंग्रेजी अच्छी है। यही कारण है कि प्रथम व द्वितीय वर्ष में उसने प्रथम श्रेणी के अंक प्राप्त किए। तृतीय वर्ष में विवि की लापरवाही से वह फेल हुआ। राकेश का कहना है कि वह इस संबंध में उच्च न्यायालय में अपील करेगा।
पत्रिका व्यू
ताज्जुब की बात है कि एक परीक्षक ने आंखें बंद करके कॉपी जांच दी और विश्वविद्यालय प्रशासन यह साबित करने में लगा है कि उनके परीक्षक ने कोई गलती नहीं की। कैसे यह संभव हुआ कि एक कॉपी को तीन अलग-अलग परीक्षकों के पास जांच के लिए भेजा गया और सभी ने उस पर समान अंक दे दिए। बिना मिलीभगत के एेसा संभव नहीं है। हर परीक्षक का दीमाग एक जैसा नहीं होता।
विश्वविद्यालय ने अगर वाकई कॉपी फिर से जंचवाई है तो उसमें कुछेक अंकों का फर्क जरूर होता। भले ही अंक कम या ज्यादा हो। एेसे में यह सवाल खड़ा होता है कि कहीं खुद ही इज्जत बचाने के लिए विवि प्रशासन ने परीक्षकों पर दवाब तो नहीं बनाया या फिर कॉपियां जंचवाई ही नहीं गई। एक सवाल यह भी है कि कॉपी जंचवाई गई है या केवल री-टोटलिंग की गई है। अगर री-टोटलिंग ही की गई है तो फिर छात्र के भविष्य के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ नहीं हो सकता।
इनका कहना है
विद्यार्थी की कॉपी दो बार विभिन्न परीक्षकों से जंचवा ली गई है, अंकों में कोई बदलाव नही हुआ है।
डॉ. जे.आर मीणा, परीक्षा नियंत्रक,मदस विवि
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