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Thursday 4 May 2017

प्रोबेशनर्स को सैलरी पूरी देनी पड़ी तो राज्य सरकार पर आएगा 9 हजार करोड़ का भार

जयपुर. प्रोबेशन पीरियड में मानदेय के बदले पूरा वेतन दिए जाने को लेकर सरकार और कर्मचारियों के बीच सुप्रीम कोर्ट में चल रही लड़ाई पर 9 मई को सुनवाई होगी। मामला कर्मचारियों के पक्ष में जाता है तो सरकार के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है। हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहता है तो सरकार को 2006 से अब तक भर्ती किए गए 2 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को एरियर के रूप में करीब 9948 करोड़ रुपए देने पड़ेंगे। वित्त विभाग के अफसरों का कहना है कि इस मामले में सरकार का रुख कमजोर नजर रहा है और अगर कर्मचारियों के पक्ष में फैसला जाता है तो सातवें वेतनमान पर भी इसका असर सकता है।
3 राज्यों में ही है प्रेशर्स को मानदेय देने के प्रावधान
प्रोबेशनर्स को मानदेय देने का प्रावधान सिर्फ तीन राज्यों में ही है। इसमें राजस्थान, गुजरात और पंजाब शामिल हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने जगजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि रेग्यूलर सेंक्शन पदों पर समान काम के लिए पे स्केल दी जाएगी। इसमें कर्मचारी को न्यूनतम बेसिक सेलेरी मिलनी चाहिए। राज्य सरकार ने 2006 के नोटिफिकेशन में जो मानदेय तय किया था वह न्यूनतम पे स्केल से कम था।
एसएलपीमें सरकार का जवाब
एसएलपीमें यह भी कहा गया है कि पद की वैधानिक शक्तियां केवल नियमित कर्मचारी के पास होती है प्रोबेशनर के पास नहीं। पुलिस सब इंस्पेक्टर को पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें उसे लॉ ऑर्डर से जुड़े विभिन्न कानूनों की जानकारी दी जाती है।
राजस्थान वन सेवा के अधिकारियों को फॉरेस्ट ट्रेनिंग कॉलेज में 18 माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद 6 महीने का फील्ड ट्रेनिंग दी जाती है। राजस्थान अधीनस्थ वन सेवा में 18 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसी तरह तहसीलदार को 15 महीने की, पटवारी को 9 महीने की, पुलिस कांस्टेबल को 9 महीने, आरएएस को 67 सप्ताह की, आरएसीएस को 52 सप्ताह की तथा आरपीएस को 102 सप्ताह की ट्रेनिंग दी जाती है।
प्रोबेशनर्सने विरोध में यह दी दलील
सरकारके इस जवाब का विरोध करने वाले प्रोबेशनर्स का कहना है कि नियुक्ति के दौरान अधिकांश प्रोबेशनर्स को कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती। उनसे वही काम लिया जाता है तो नियमित कर्मचारियों से लिया जाता है। प्रोबेशन पर नियुक्त शिक्षकों, व्याख्याताओं, प्रधानाध्यापकों तथा चिकित्सकों को कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। वे पहले दिन से ही नियमित कर्मचारियों की तरह काम करते हैं।
सिफारिशेंलागू करने के लिए समय बढ़ाया जा सकता है
सरकारको करीब 6 लाख नियमित कर्मचारियों और साढ़े तीन लाख पेंशनर्स को सातवें वेतनमान देना है। इसके लिए भी करीब 7 हजार करोड़ रुपए का वित्तीय भार आएगा। अगर प्रोबेश्नर्स को मानदेय की जगह पे स्केल देनी पड़ी तो वेतनमान की सिफारिशों को लागू करने के लिए वित्तीय प्रबंध करने में काफी परेशानी सकती है। ऐसे में सिफारिशें लागू करने के लिए समय बढ़ाया जा सकता है या एरियर का भुगतान के लिए जीपीएफ और मेडिकल पेंशन फंड में कटौतियां बढ़ाई जा सकती हैं।

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