जयपुर। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भी हाथों में तख्तियां लेकर प्रदर्शन कर अपना समर्थन दिया है। विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सी.बी. यादव की पहल पर सरकार के तीन कृषि विधेयकों के विरोध में आयोजित धरने-प्रदर्शन में राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भाग लिया और एक स्वर में
किसान आंदोलन के प्रति सरकार के दमनकारी रवैये की कड़े शब्दों में आलोचना की। सरकार से खुले मन से किसानों से वार्ता करके किसानों के हित में उचित फैसला लेने की मांग की। डॉ. सी.बी. यादव ने बताया कि संवाद एवं विचार विमर्श लोकतंत्र की सबसे अभिन्न प्रक्रिया है। इन तीन कृषि कानूनों को लागू करने में सरकार ने ना तो किसी किसान संगठन से संवाद किया और न ही संसद में इन पर बहस की। विपक्ष की संसद की सलेक्ट कमेटी को भेजे जाने के प्रस्ताव को भी सरकार ने खारिज कर दिया। इसका परिणाम आज पूरे देश में किसानों के उग्र आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक डॉक्टर लादूराम चौधरी बताया कि यह कानून वस्तुत: अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट के नियंत्रण को स्थापित करने की दृष्टि से बनाए गए हैं। लोक प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष ओम महला ने कहा कि कोरोना संकट के दौरान जहां सरकार से किसान मानवीय संवेदनाओं के तहत आर्थिक सहायता की अपेक्षा कर रहा था, वहीं सरकार ने इस संकट में भी कॉर्पोरेट के हितों को पूरा करने के लिए तीन कृषि कानूनों को लागू किया है। इसका पूरा विश्वविद्यालय का शिक्षक समुदाय निंदा करता है और सरकार से इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी कानून बनाने की मांग करता है। प्रदर्शन में राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. मनीष सिनसिनवार, डॉ. मुकेश वर्मा, डॉ. डी. सुधीर, डॉ. इंदु सांखला, डॉ. आर.डी. चौधरी, डॉ. अखिल कालेर, डॉ. वीरेंद्र यादव, डॉ. सरिता चौधरी, डॉ. निमाली सिंह, डॉ. एकता मीना, डॉ. लक्ष्मी परेवा, डॉ. मीना रानी, डॉ. आसु राम, डॉ. पूराराम, डॉ. संजीव, डॉ. प्रदीप कुमार सहित कई शिक्षकों ने भाग लिया।About Us
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