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तकनीकी शिक्षा विभाग में डायरेक्टर पद की योग्यता बदलकर कैबिनेट को धोखा

जयपुर. सूचना क्रांति के जमाने में सरकारी तंत्र में फाइल पर चुके तथ्यों को क्या कोई मनमर्जी से बदल कर छुपा सकता है? वो भी सरकार में सर्वोच्च नीति निर्धारक माने जाने वाले राज्य मंत्रिमंडल से? जवाब मिलेगा नहीं। लेकिन, राज्य के तकनीकी शिक्षा विभाग के बेखौफ अफसरों ने यह कारनामा कर दिखाया। चहेतों को लाभ देने के लिए इंजीनियरिंग तकनीकी शिक्षा से जुड़े सैकड़ों कॉलेजों पर नियंत्रण रखने वाले विभाग के मुखिया यानी डायरेक्टर के पद के लिए आरपीएससी, वित्त कार्मिक विभाग द्वारा अनुमोदित की गई एम.टेक पीएचडी की योग्यता को दरकिनार कर मात्र तीन साल के एक्सपीरियंस वाले प्रिसिंपल को इस पद पर काबिज होने का रास्ता खोल दिया गया।
ऐसा करने के लिए कैबिनेट को यहां तक झूठ बोला गया कि नियमों में संशोधन का जो ड्राफ्ट कैबिनेट को भेजा जा रहा है वह आरपीएससी, वित्त और कार्मिक विभाग से मंजूर है, जबकि इन विभागों से जो ड्राफ्ट मंजूर हुआ था उसमें फाइल पर बिना उल्लेख किए जालसाजी करके बदल दिया गया। भास्कर ने सेवा नियमों में संशोधन की इस गोपनीय फाइल को खंगाला तो यह हैरत अंगेज गड़बड़झाला सामने आया।
क्या होना था और क्या हो गया?
एआईसीटीईके छठे वेतनमान के लिए तय गाइडलाइन के अनुसार राजस्थान तकनीकी शिक्षा (इंजीनियरिंग) सेवा नियम 2010 में संशोधन किया जाना था। तकनीकी शिक्षा विभाग ने नियमों में संशोधन के तैयार ड्राफ्ट में डायरेक्टर की शैक्षणिक योग्यताएं प्रिसिंपल की शैक्षणिक योग्यताओं के समान एमटेक इंजीनियरिंग में पीएचडी निर्धारित की थी। साथ ही बतौर प्रिसिंपल तीन साल का अनुभव भी जरूरी किया।

हमने सही किया, डायरेक्टर के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं : संयुक्त सचिव
मामला चार विभागों से जुड़ा हुआ था, फाइल इधर से उधर कई बार आई और गई। पता नहीं किसने क्या जोड़ा, क्या हटाया। हमने कोई गलत नहीं किया। जो किया है, सही किया है। वैसे, डायरेक्टर के लिए किसी प्रकार की शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य नहीं है। -एमएमसेतिया, संयुक्त सचिव, तकनीकी शिक्षा विभाग

यह योग्यता अनुमोदित हुई
11 फरवरी 2013: तकनीकीशिक्षा, वित्त, कार्मिक विधि विभाग की संयुक्त बैठक में एमटेक, पीएचडी तीन साल के अनुभव वाले प्रिसिंपल को डायरेक्टर बनाने की शर्त वाला ड्राफ्ट अनुमोदन के बाद आरपीएसी को भेजा गया।
11 दिसंबर 2013 : आरपीएससीने मंजूरी देकर फाइल भेजी।
8 जनवरी 2015 : तकनीकीशिक्षा सचिव की अध्यक्षता में कार्मिक, वित्त विधि विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के अफसरों की बैठक में भी यही योग्यताएं बरकरार रखी गई।
3 सितंबर 2015 : वित्तविभाग के प्रमुख सचिव ने निदेशक की एमटेक पीएचडी योग्यता को अनुमोदित कर दिया।
29 सितंबर 2015 : योग्यताको कार्मिक विभाग के सचिव ने भी अनुमोदित कर दिया।
8 दिसंबर 2015 : आरपीएससी,वित्त कार्मिक से मंजूरी के बाद तकनीकी शिक्षा विभाग ने फाइल विधि विभाग को भेजी।
14 दिसंबर 2015: विधिविभाग ने योग्यता को बरकरार रखते हुए सेवा नियमों को एआईसीटीई की अधिसूचना की तारीख 5 मार्च 2010 से लागू करने पर आपत्ति की।
और यहां से शुरू हुआ धोखे का खेल
24 नवंबर 2016 :विधिविभाग की आपत्ति के बाद तकनीकी शिक्षा विभाग ने फाइल डीओपी भेजी। संयुक्त सचिव एमएम सेतिया ने फाइल के साथ भेजे अधिप्रमाणित ड्राफ्ट में वे योग्यताएं हटा दीं, जो आरपीएससी, वित्त, कार्मिक ने अनुमोदित की थीं। फाइल पर आश्वासन भी दिया कि यह वही ड्राफ्ट है, जो पूर्व में तीनों विभागों से अनुमोदित है।
26 दिसंबर 2016 :विधिविभाग ने फाइल पर यह लिखते हुए तकनीकी शिक्षा विभाग को चेताया कि कैबिनेट के सामने मामला रखने से पहले यह देख लें कि ड्राफ्ट आरपीएससी, वित्त और कार्मिक विभाग की सहमति के अनुसार है या नहीं।
8 फरवरी 2017 :विधिविभाग की चेतावनी के बावजूद मंत्रिमंडल के सामने वही प्रस्ताव पेश करके मंजूर करवा लिया जो वास्तव में आरपीएससी, वित्त, विधि और कार्मिक विभाग से अनुमोदित नहीं था।

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