अजमेर। राज्य के सबसे पुराने सरकारी कॉलेज में पुरुष लेक्चरर्स का एकाधिकार खत्म हो गया है। अब यहां महिला लेक्चरर्स का दबदबा कायम है। महिलाओं के शैक्षिक एवं सामाजिक उन्नयन, नौकरियों में बढ़ती भागीदारी के बूते यह तस्वीर बदली है।
ब्रिटिशकाल में वर्ष 1836 में अजमेर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय (तब गवर्नमेंट कॉलेज) की स्थापना हुई। यह बरसों तक कलकत्ता, इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा।
मौजूदा वक्त एमडीएस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। 1947 में आजादी के शुरुआती वर्ष तक यहां छात्राओं और महिला शिक्षकों की संख्या गिनने लायक भी नहीं थी।
छात्र और पुरुष लेक्चरर्स ही यहां दिखाई देते थे। यह दौर 60 से 70 के दशक तक बरकरार रहा। 80 के दौर से महिला शिक्षकों और छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी शुरु हुई। सत्र 2016-17 महिला शिक्षकों के लिए सबसे स्वर्णिम दौर है।
190 शिक्षकों में 109 महिला लेक्चरर
जीसीए में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान संकाय में कुल 190 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें महिला लेक्चरर की संख्या 109 है। जबकि पुरुष लेक्चरर्स की संख्या महज 81 हैं। कई विभाग तो ऐसे हैं, जहां पुरुष लेक्चरर्स अल्पसंख्यक (संख्या में कम) नजर आते हैं।
बॉटनी और जूलॉजी में सर्वाधिक महिलाएं
कॉलेज के बॉटनी विभाग में 12 महिलाएं और 7 पुरुष तथा जूलॉजी में 13 महिलाएं और 6 पुरुष लेक्चरर कार्यरत हैं। हिन्दी और अंग्रेजी विभाग में तो महज 1-1 पुरुष लेक्चरर है। दोनों विभागों में7- 7 लेक्चरर महिलाएं हैं।
संस्कृत और उर्दू विभाग में कुल चार लेक्चरर्स में तीन महिलाएं हैं। फिलोसॉफी विभाग में पांच मे से चार, अर्थशास्त्र में 9 में से 4, समाजशास्त्र में 9 में से 7 महिला लेक्चरर कार्यरत हैं।
केवल इन्हीं विभागों में पुरुष ज्यादा
एबीएसटी में 5, ईएएफएम में तीन, गणित में 7, भूगोल में 8, सिंधी में 2, राजस्थानी में 1, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में 4
अभी भी सर्वोच्च पद का इंतजार
भले ही कॉलेज में महिलाएं लेक्चरर ज्यादा हों, पर प्राचार्य पद अब तक महिलाओं से दूर है। 1836 से 68 तक मारकूज हेयर, डॉ. फॉलन, पोर्टर, सी.बुच और प्रो. जे. एल. गोल्डिंग से लेकर 2016-17 में डॉ. एस. के. देव तक यहां पुरुष ही प्राचार्य रहे हैं।
यहां डॉ. कुसुम पालीवाल, डॉ. कल्पना गौड़, डॉ. राजेश्वरी माथुर और अन्य कुछ महिलाएं उपाचार्य रहीं। इनमें से कई स्नातकोत्तर कॉलेजों में प्राचार्य पद तक पहुंची लेकिन एसपीसी-जीसीए में उनकी तैनाती कभी नहीं हुई।
महिलाओं का बढ़ता शैक्षिक वर्चस्व
महिलाओं का शैक्षिक वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। सीबीएसई, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आईएएस और अन्य परीक्षाओं में बेटियां ज्यादा टॉप कर रही हैं। एसपीसी-जीसीए में महिला लेक्चरर्स की संख्या इस बात का द्योतक है।
इसके अतिरिक्त यहां कई महिलाओं के पति सरकारी सेवा में हैं। राज्य और केंद्र सरकार के नियमानुसार पति-पत्नी की एक शहर में तैनाती के चलते भी यहां महिला लेक्चरर्स का तादाद बढ़ रही है।
फैक्ट फाइल
एसपीसी-जीसीए की स्थापना-1836
मौजूदा सत्र में कार्यरत लेक्चरर्स की संख्या-190
कॉलेज में महिला लेक्चरर्स-109
सबसे ज्यादा महिला लेक्चरर वाले विभाग- बॉटनी, जूलॉजी, अंग्रेजी और हिन्दी
कॉलेज में पुरुष लेक्चरर्स- 81
कॉलेज में महिला प्राचार्य- कोई नहीं
- 3rd Grade 2012 : स्थायीकरण ऑर्डर टोंक
- तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती : सफल अभ्यर्थी रो रहे तकदीर का रोना, जिला प्रमुख से बोले, हमारा क्या कसूर
- तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में नियुक्ति देने के आदेश दिए
- विशेस शिक्षको का रिजल्ट जारी...........
- पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा: शारीरिक परीक्षा व दौड़ में 372 हुए सफल, 120 पदों पर साक्षात्कार लिए जाएंगे
- ये योगासन दिला रहा बड़े पैकेज की नौकरी,निकल रहीं बम्पर भर्तियां
- तृतीय श्रेणी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल अध्यापक सीधी भर्ती काउंसलिंग स्थगित
ब्रिटिशकाल में वर्ष 1836 में अजमेर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय (तब गवर्नमेंट कॉलेज) की स्थापना हुई। यह बरसों तक कलकत्ता, इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा।
मौजूदा वक्त एमडीएस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। 1947 में आजादी के शुरुआती वर्ष तक यहां छात्राओं और महिला शिक्षकों की संख्या गिनने लायक भी नहीं थी।
छात्र और पुरुष लेक्चरर्स ही यहां दिखाई देते थे। यह दौर 60 से 70 के दशक तक बरकरार रहा। 80 के दौर से महिला शिक्षकों और छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी शुरु हुई। सत्र 2016-17 महिला शिक्षकों के लिए सबसे स्वर्णिम दौर है।
190 शिक्षकों में 109 महिला लेक्चरर
जीसीए में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान संकाय में कुल 190 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें महिला लेक्चरर की संख्या 109 है। जबकि पुरुष लेक्चरर्स की संख्या महज 81 हैं। कई विभाग तो ऐसे हैं, जहां पुरुष लेक्चरर्स अल्पसंख्यक (संख्या में कम) नजर आते हैं।
बॉटनी और जूलॉजी में सर्वाधिक महिलाएं
कॉलेज के बॉटनी विभाग में 12 महिलाएं और 7 पुरुष तथा जूलॉजी में 13 महिलाएं और 6 पुरुष लेक्चरर कार्यरत हैं। हिन्दी और अंग्रेजी विभाग में तो महज 1-1 पुरुष लेक्चरर है। दोनों विभागों में7- 7 लेक्चरर महिलाएं हैं।
संस्कृत और उर्दू विभाग में कुल चार लेक्चरर्स में तीन महिलाएं हैं। फिलोसॉफी विभाग में पांच मे से चार, अर्थशास्त्र में 9 में से 4, समाजशास्त्र में 9 में से 7 महिला लेक्चरर कार्यरत हैं।
केवल इन्हीं विभागों में पुरुष ज्यादा
एबीएसटी में 5, ईएएफएम में तीन, गणित में 7, भूगोल में 8, सिंधी में 2, राजस्थानी में 1, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में 4
अभी भी सर्वोच्च पद का इंतजार
भले ही कॉलेज में महिलाएं लेक्चरर ज्यादा हों, पर प्राचार्य पद अब तक महिलाओं से दूर है। 1836 से 68 तक मारकूज हेयर, डॉ. फॉलन, पोर्टर, सी.बुच और प्रो. जे. एल. गोल्डिंग से लेकर 2016-17 में डॉ. एस. के. देव तक यहां पुरुष ही प्राचार्य रहे हैं।
यहां डॉ. कुसुम पालीवाल, डॉ. कल्पना गौड़, डॉ. राजेश्वरी माथुर और अन्य कुछ महिलाएं उपाचार्य रहीं। इनमें से कई स्नातकोत्तर कॉलेजों में प्राचार्य पद तक पहुंची लेकिन एसपीसी-जीसीए में उनकी तैनाती कभी नहीं हुई।
महिलाओं का बढ़ता शैक्षिक वर्चस्व
महिलाओं का शैक्षिक वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। सीबीएसई, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आईएएस और अन्य परीक्षाओं में बेटियां ज्यादा टॉप कर रही हैं। एसपीसी-जीसीए में महिला लेक्चरर्स की संख्या इस बात का द्योतक है।
इसके अतिरिक्त यहां कई महिलाओं के पति सरकारी सेवा में हैं। राज्य और केंद्र सरकार के नियमानुसार पति-पत्नी की एक शहर में तैनाती के चलते भी यहां महिला लेक्चरर्स का तादाद बढ़ रही है।
फैक्ट फाइल
एसपीसी-जीसीए की स्थापना-1836
मौजूदा सत्र में कार्यरत लेक्चरर्स की संख्या-190
कॉलेज में महिला लेक्चरर्स-109
सबसे ज्यादा महिला लेक्चरर वाले विभाग- बॉटनी, जूलॉजी, अंग्रेजी और हिन्दी
कॉलेज में पुरुष लेक्चरर्स- 81
कॉलेज में महिला प्राचार्य- कोई नहीं
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