शहर के बालिका सीनियर सैकंडरी स्कूल में कार्यरत गणित के वरिष्ठ शिक्षक
घर्मपाल सिंह चौधरी बेटियों को पढ़ाने के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोवर गढ़ पैलेस
की सार-संभाल भी कर रहे हैं।
इन्होने महल के एक भाग जनानी ड्योढ़ी की साफ-सफाई कर इसको चमका दिया है। कभी महल के इस भाग में चमगादड़ों का बसेरा बना हुआ था और इनकी बदबू से महल के इस भाग में घुसना भी दुश्वार था, लेकिन अब महल का यह भाग शिक्षक चौधरी के प्रयास से साफ-सुथरा हो गया है।
शिक्षक घर्मपाल चौधरी ने बताया कि अक्टूबर 2017 में बालिका सीनियर सैकंडरी स्कूल में नियुक्त हुई थी, तब विद्यालय के नीचे एक तरफ काफी गंदगी हो रही थी। इस स्थान पर पत्थर पर उकेरी एक प्रतिमा भी लगी हुई थी। यह देखकर उन्होंने इस स्थान की साफ-सफाई की। इसके बाद इसके ऊपर बने महल के एक भाग जिसे जनानी ड्योढ़ी के नाम से जाना जाता है। इसको देखा तो वहां काफी गंदगी बदबू व चमगादड़ों का बसेरा बना हुआ था। यह देखकर मैंने इस स्थान को इसको साफ-सुथरा करने की ठानी। इसके बाद वह इसकी साफ-सफाई में जुट गया और अब पूरा भाग साफ-सुथरा हो गया है।
चमक उठी चित्रकारी
जनानी ड्योढ़ी में एक कक्ष बना हुआ है। इसकी छत पर प्लास्टर में आकर्षक बेल-बूटियां उकेरी हुई हैं। इस कक्ष की चारों दीवारों पर ताकें बनी हुई है। इनकी बाउंड्री पर आकर्षक चित्रकारी हो रही है। शिक्षक की साफ-सफाई के बाद यह चित्रकारी सुंदर लगने लगी है। तत्कालीन चित्रकार खेमा जी ने हाथ से बनाई रंगो से महलों में चित्रकारी की है, जो अमिट है, साथ ही स्थापत्य कला के शिल्पी गोपीलाल ने महलों में शिल्प का कार्य किया था।
ऐतिहासिक धरोधर की कर रहे सार-संभाल, कभी यहां गंदगी के कारण जाना मुहाल था, अब हुई सफाई
नैनवां. रानी कक्ष की चित्रकारी दिखाते शिक्षक घर्मपाल चौधरी।
नैनवां. रानी के कक्ष में ताकों पर हो रही चित्रकारी।
12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला
इतिहास के जानकार सेवानिवृत्त व्याख्याता भंवानी सिंह सोलंकी ने बताया कि विक्रम संवत 1440 से 1640 तक नाथावत सोलंकी के कार्यकाल में नैनवां में महलों का निर्माण करवाया था। इन महलों का निर्माण 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जो टोंक जिले के टोडारायसिंह के महलों से मिलता-जुलता है। महल तीन भागों में बना हुआ है। जिनके नाम मर्दाना महल, हवा महल, व जनानी ड्योढ़ी कहलाते हैं। तत्कालीन चित्रकार खेमा ने महल में विभिन्न स्थानों पर आकर्षक चित्रकारी बना रखी है, जो मर्दाना महल के चित्रकला कक्ष में हो रही आकर्षक चित्रकारी वक्त के थपेड़ों व सार-संभाल के अभाव में नष्ट होती जा रही है।
इन्होने महल के एक भाग जनानी ड्योढ़ी की साफ-सफाई कर इसको चमका दिया है। कभी महल के इस भाग में चमगादड़ों का बसेरा बना हुआ था और इनकी बदबू से महल के इस भाग में घुसना भी दुश्वार था, लेकिन अब महल का यह भाग शिक्षक चौधरी के प्रयास से साफ-सुथरा हो गया है।
शिक्षक घर्मपाल चौधरी ने बताया कि अक्टूबर 2017 में बालिका सीनियर सैकंडरी स्कूल में नियुक्त हुई थी, तब विद्यालय के नीचे एक तरफ काफी गंदगी हो रही थी। इस स्थान पर पत्थर पर उकेरी एक प्रतिमा भी लगी हुई थी। यह देखकर उन्होंने इस स्थान की साफ-सफाई की। इसके बाद इसके ऊपर बने महल के एक भाग जिसे जनानी ड्योढ़ी के नाम से जाना जाता है। इसको देखा तो वहां काफी गंदगी बदबू व चमगादड़ों का बसेरा बना हुआ था। यह देखकर मैंने इस स्थान को इसको साफ-सुथरा करने की ठानी। इसके बाद वह इसकी साफ-सफाई में जुट गया और अब पूरा भाग साफ-सुथरा हो गया है।
चमक उठी चित्रकारी
जनानी ड्योढ़ी में एक कक्ष बना हुआ है। इसकी छत पर प्लास्टर में आकर्षक बेल-बूटियां उकेरी हुई हैं। इस कक्ष की चारों दीवारों पर ताकें बनी हुई है। इनकी बाउंड्री पर आकर्षक चित्रकारी हो रही है। शिक्षक की साफ-सफाई के बाद यह चित्रकारी सुंदर लगने लगी है। तत्कालीन चित्रकार खेमा जी ने हाथ से बनाई रंगो से महलों में चित्रकारी की है, जो अमिट है, साथ ही स्थापत्य कला के शिल्पी गोपीलाल ने महलों में शिल्प का कार्य किया था।
ऐतिहासिक धरोधर की कर रहे सार-संभाल, कभी यहां गंदगी के कारण जाना मुहाल था, अब हुई सफाई
नैनवां. रानी कक्ष की चित्रकारी दिखाते शिक्षक घर्मपाल चौधरी।
नैनवां. रानी के कक्ष में ताकों पर हो रही चित्रकारी।
12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला
इतिहास के जानकार सेवानिवृत्त व्याख्याता भंवानी सिंह सोलंकी ने बताया कि विक्रम संवत 1440 से 1640 तक नाथावत सोलंकी के कार्यकाल में नैनवां में महलों का निर्माण करवाया था। इन महलों का निर्माण 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जो टोंक जिले के टोडारायसिंह के महलों से मिलता-जुलता है। महल तीन भागों में बना हुआ है। जिनके नाम मर्दाना महल, हवा महल, व जनानी ड्योढ़ी कहलाते हैं। तत्कालीन चित्रकार खेमा ने महल में विभिन्न स्थानों पर आकर्षक चित्रकारी बना रखी है, जो मर्दाना महल के चित्रकला कक्ष में हो रही आकर्षक चित्रकारी वक्त के थपेड़ों व सार-संभाल के अभाव में नष्ट होती जा रही है।
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