भास्कर न्यूज | मदनगंज-किशनगढ़ मार्बल मंडी के साथ ही बणी ठणी के जरिये कला की नगरी के रूप में
विख्यात किशनगढ़ के कलाकार माध्यमिक शिक्षा में कला शिक्षा की उपेक्षा से
व्यथित हैं।
कहने को कला शिक्षा को भी शारीरिक स्वास्थ्य शिक्षा के साथ अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया गया है लेकिन 11 दिसंबर से शुरू हो रहीं अर्द्धवार्षिक परीक्षा के टाइम टेबल में कला शिक्षा नदारद है। कला शिक्षा काे संस्था प्रधानों के विवेक पर छोेड़ दिया गया है। सरकारी स्कूलाें के लिए प्रकाशित कला शिक्षा की तीन लाख पुस्तकें बांटी ही नहीं गईं। कला शिक्षकों की नियुक्ति गत 25 वर्षाें से नहीं हो पाई है।
अर्द्धवार्षिक परीक्षा के टाइम टेबिल में स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, सूचना प्रो. अवधारणा आदि को तो शामिल किया गया। लेकिन कला शिक्षा का कोई टाइम टेबिल तक नहीं है। जबकि कला शिक्षा की पुस्तक में सिद्धांतिक एवं प्रायोगिक परीक्षा के अंक तक का भी हवाला दिया गया है। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि कला शिक्षा का विद्यालय स्तर पर मूल्यांकन कर लिया जाता है।
अनिवार्य विषय है कला शिक्षा फिर भी टाइम टेबल से नदारद
अनिवार्य विषय फिर परीक्षा क्यों नहीं
बेरोजगार कला शिक्षक संगठन सहित किशनगढ कला अकादमी के अध्यक्ष रविन्द्र दोसाया, बिरदीचंद मालाकार, मुकेश कुमावत आदि ने बताया कि कला शिक्षा (चित्रकला, संगीत) नियमानुसार तो सैद्धांतिक प्रायोगिक परीक्षा होनी चाहिए। प्रकाशित पुस्तक में 15 नंबर का सैद्धांतिक पेपर दिया है। जब स्वास्थ्य शिक्षा का पेपर हो रहा है, तो कला शिक्षा का भी होना चाहिए। किताबें बंटी, ना टीचर है और ना ही मूल्यांकन होता है। केवल खानापूर्ति होती हीं नजर रही है।
नहीं है कोई रिकॉर्ड
कला शिक्षा की परीक्षा ही नहीं इसको लेकर स्कूलों में कोई मूल्यांकन तक नहीं होता है। इसका किसी भी सरकारी स्कूल के पास कोई रिकार्ड नहीं है। ये दावा कला शिक्षा को बढावा देने वाले संगठनों के पदाधिकारियों ने किया है। इस दावे के संबंध में शिक्षा अधिकारी भी कुछ कहने की स्थिति में नजर नहीं रहे हैं। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि न केवल किशनगढ़ अपितु राज्य में कला शिक्षा व अन्य केवल नाममात्र की ही बनी हुई है।
कला शिक्षा में 92 से नहीं हुई भर्ती
कलाशिक्षा में तृतीय एवं द्वितीय श्रेणी में कला शिक्षकों की भर्ती 1992 से नहीं हो पाई है। जबकि कला शिक्षा अनिवार्य है, बोर्ड की परीक्षा की अंक तालिका में ग्रेड भी दी जाती है। जबकि मूल्यांकन आदि के लिए पात्र शिक्षक तक नहीं है।
कहने को कला शिक्षा को भी शारीरिक स्वास्थ्य शिक्षा के साथ अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया गया है लेकिन 11 दिसंबर से शुरू हो रहीं अर्द्धवार्षिक परीक्षा के टाइम टेबल में कला शिक्षा नदारद है। कला शिक्षा काे संस्था प्रधानों के विवेक पर छोेड़ दिया गया है। सरकारी स्कूलाें के लिए प्रकाशित कला शिक्षा की तीन लाख पुस्तकें बांटी ही नहीं गईं। कला शिक्षकों की नियुक्ति गत 25 वर्षाें से नहीं हो पाई है।
अर्द्धवार्षिक परीक्षा के टाइम टेबिल में स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, सूचना प्रो. अवधारणा आदि को तो शामिल किया गया। लेकिन कला शिक्षा का कोई टाइम टेबिल तक नहीं है। जबकि कला शिक्षा की पुस्तक में सिद्धांतिक एवं प्रायोगिक परीक्षा के अंक तक का भी हवाला दिया गया है। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि कला शिक्षा का विद्यालय स्तर पर मूल्यांकन कर लिया जाता है।
अनिवार्य विषय है कला शिक्षा फिर भी टाइम टेबल से नदारद
अनिवार्य विषय फिर परीक्षा क्यों नहीं
बेरोजगार कला शिक्षक संगठन सहित किशनगढ कला अकादमी के अध्यक्ष रविन्द्र दोसाया, बिरदीचंद मालाकार, मुकेश कुमावत आदि ने बताया कि कला शिक्षा (चित्रकला, संगीत) नियमानुसार तो सैद्धांतिक प्रायोगिक परीक्षा होनी चाहिए। प्रकाशित पुस्तक में 15 नंबर का सैद्धांतिक पेपर दिया है। जब स्वास्थ्य शिक्षा का पेपर हो रहा है, तो कला शिक्षा का भी होना चाहिए। किताबें बंटी, ना टीचर है और ना ही मूल्यांकन होता है। केवल खानापूर्ति होती हीं नजर रही है।
नहीं है कोई रिकॉर्ड
कला शिक्षा की परीक्षा ही नहीं इसको लेकर स्कूलों में कोई मूल्यांकन तक नहीं होता है। इसका किसी भी सरकारी स्कूल के पास कोई रिकार्ड नहीं है। ये दावा कला शिक्षा को बढावा देने वाले संगठनों के पदाधिकारियों ने किया है। इस दावे के संबंध में शिक्षा अधिकारी भी कुछ कहने की स्थिति में नजर नहीं रहे हैं। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि न केवल किशनगढ़ अपितु राज्य में कला शिक्षा व अन्य केवल नाममात्र की ही बनी हुई है।
कला शिक्षा में 92 से नहीं हुई भर्ती
कलाशिक्षा में तृतीय एवं द्वितीय श्रेणी में कला शिक्षकों की भर्ती 1992 से नहीं हो पाई है। जबकि कला शिक्षा अनिवार्य है, बोर्ड की परीक्षा की अंक तालिका में ग्रेड भी दी जाती है। जबकि मूल्यांकन आदि के लिए पात्र शिक्षक तक नहीं है।
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