सीकर। संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा विभाग ने अलग से संस्कृत स्कूल तो खोल दिए हैं लेकिन इन स्कूलों में व्यवस्थाओं की कभी सुध नहीं ली। जिले में भी एक ऐसा स्कूल है जिसमें छात्र तो एक भी नहीं हैं लेकिन शिक्षक चार हैं।
मामला है सीकर जिले के कांवट कस्बे के प्रतापपुरा गांव की राजकीय संस्कृत उच्च प्राथमिक विद्यालय का। इस स्कूल में वर्ष 2015 में 50 से ज्यादा छात्र अध्ययन के लिए आते थे लेकिन जुलाई 2016 से स्कूल का नामांकन शून्य हो गया और एक भी छात्र यहां नहीं आता है।
पिछले दो साल से इस स्कूल में चार शिक्षक कार्यरत हैं लेकिन छात्र एक भी नहीं हैं। स्कूल आनेवाले शिक्षक भी अपनी मनमर्जी से आते हैं। शिक्षकों का कहना है कि वे पेड़-पौधों में पानी डालकर, झाड़ू निकालकर सरकारी कुर्सियों पर बैठकर ही चले जाते हैं।
राजकीय संस्कृत उच्च प्राथमिक की पड़ताल की तो चौंका देने वाली स्थिति सामने आई। दरअसल, प्रतापपुरा के इस स्कूल में नामांकन शून्य होने के बावजूद भी यहां पर शिक्षा विभाग ने एक प्रधानाध्यापक सहित तीन शिक्षकों को नियुक्त कर रखा है। जिन्हें सकरार लाखों रुपयों की पगार देती है। शिक्षकों ने अपनी ड्यूटी को भी बांट रखा है। सरकारी तंत्र में पोल तो ऐसी है कि एक दिन दो शिक्षक आते हैं तो दूसरे दिन दूसरे दो शिक्षक आते है। शिक्षको को भी फोकट की तनख्वाह दी जा रही है।
अध्यापकों की मानें तो इस गांव की आबादी भी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 300 के लगभग है और इस गांव में चार बालक हैं जो आठवी कक्षा में पढ़ने के लिए अन्य निजी स्कूल में आते हैं। एक शिक्षिका का कहना है कि बिना बच्चों के इस स्कूल में उनके लिए टाइम पास करना भी बड़ा मुश्किल सा हो गया है।
मामला है सीकर जिले के कांवट कस्बे के प्रतापपुरा गांव की राजकीय संस्कृत उच्च प्राथमिक विद्यालय का। इस स्कूल में वर्ष 2015 में 50 से ज्यादा छात्र अध्ययन के लिए आते थे लेकिन जुलाई 2016 से स्कूल का नामांकन शून्य हो गया और एक भी छात्र यहां नहीं आता है।
पिछले दो साल से इस स्कूल में चार शिक्षक कार्यरत हैं लेकिन छात्र एक भी नहीं हैं। स्कूल आनेवाले शिक्षक भी अपनी मनमर्जी से आते हैं। शिक्षकों का कहना है कि वे पेड़-पौधों में पानी डालकर, झाड़ू निकालकर सरकारी कुर्सियों पर बैठकर ही चले जाते हैं।
राजकीय संस्कृत उच्च प्राथमिक की पड़ताल की तो चौंका देने वाली स्थिति सामने आई। दरअसल, प्रतापपुरा के इस स्कूल में नामांकन शून्य होने के बावजूद भी यहां पर शिक्षा विभाग ने एक प्रधानाध्यापक सहित तीन शिक्षकों को नियुक्त कर रखा है। जिन्हें सकरार लाखों रुपयों की पगार देती है। शिक्षकों ने अपनी ड्यूटी को भी बांट रखा है। सरकारी तंत्र में पोल तो ऐसी है कि एक दिन दो शिक्षक आते हैं तो दूसरे दिन दूसरे दो शिक्षक आते है। शिक्षको को भी फोकट की तनख्वाह दी जा रही है।
अध्यापकों की मानें तो इस गांव की आबादी भी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 300 के लगभग है और इस गांव में चार बालक हैं जो आठवी कक्षा में पढ़ने के लिए अन्य निजी स्कूल में आते हैं। एक शिक्षिका का कहना है कि बिना बच्चों के इस स्कूल में उनके लिए टाइम पास करना भी बड़ा मुश्किल सा हो गया है।
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