जोधपुर.जेएनवीयू शिक्षक भर्ती-2013 की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद 154 शिक्षकों के नियुक्ति आदेश दो चरणों में जारी हुए थे। ये आदेश नियमित रजिस्ट्रार, जो आरएएस अफसर होता है, की बजाय एक सेक्शन ऑफिसर प्रभुराम भाटी के हस्ताक्षर से जारी हुए थे।
दरअसल, शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के दौरान ही तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा का तबादला सरदार पटेल पुलिस यूनिवर्सिटी में कुलसचिव पद पर हो गया था। इसके बाद प्रक्रिया पूर्ण नहीं होने तक यहां नए रजिस्ट्रार की नियुक्ति ही नहीं की गई। बाद में तत्कालीन कुलपति प्रो. बीएस राजपुरोहित ने सेक्शन ऑफिसर प्रभुलाल भाटी को लिखित में रजिस्ट्रार के पॉवर दे नियुक्ति आदेशों पर हस्ताक्षर करवाए। गौरतलब है कि निर्मला मीणा एसीबी को दिए अपने बयान में कह चुकी हैं कि उन्होंने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तो उन्हें नियुक्ति प्रक्रिया से अलग कर दिया गया। उन्होंने शिक्षक भर्ती में पैसों के लेनदेन का भी आरोप लगाया है।
12 साल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहे थे भाटी
शिक्षक भर्ती के साक्षात्कारों के बाद चयन समिति की अनुशंसाओं को लिफाफों में बंद कर दिया गया था, जिन्हें सिंडिकेट की दो बैठकों में खाेला गया। इन दोनों सिंडिकेट में रजिस्ट्रार मौजूद नहीं थे। ऐसे में भाटी को रजिस्ट्रार के पॉवर देकर नियुक्तियों के आदेश जारी करवाए गए।
भाटी की नियुक्ति 20 नवंबर 1976 को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर हुई थी। वर्ष 1988 में वे पदोन्नति से एलडीसी और बाद में यूडीसी व असिस्टेंट भी बने। वर्ष 2010 में वे सेक्शन ऑफिसर बन गए। उन्होंने सिंडिकेट के निर्णय के आधार पर 12 फरवरी 2013 को 87 असिस्टेंट प्रोफेसर, 26 एसोसिएट प्रोफेसर व 17 प्रोफेसर, जबकि 23 फरवरी 2013 को 24 असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति आदेश जारी किए।
भाटी से पहले वित्त नियंत्रक व पीआरओ से साइन करवाने चाहे, वे छुट्टी पर चले गए
तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा के तबादले के बाद वित्त नियंत्रक सीएल सोलंकी के पास कुलसचिव का अतिरिक्त कार्यभार था, लेकिन वे शिक्षक भर्ती से जुड़े आदेशों पर हस्ताक्षर करने से कतराते रहे। इसको लेकर वे अक्सर अवकाश पर चले जाते थे। सोलंकी की गैर मौजूदगी के कारण 23 जनवरी 2013 को जेएनवीयू के पीआरओ रामनिवास चौधरी को रजिस्ट्रार का कार्यभार सौंपा गया, लेकिन नियुक्ति आदेश जारी करने वाले दिन वे भी छुट्टी पर चले गए।
भाटी बोले- वीसी का लिखित में आदेश था, तब किए हस्ताक्षर
रजिस्ट्रार पद पर कोई नहीं था तो तत्कालीन वीसी प्रो. राजपुरोहित के लिखित आदेश पर मैंने यह कार्यभार संभाला और उन्हीं के लिखित आदेश पर नियुक्तियों के आदेशों पर साइन किए। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। - प्रभुराम भाटी, तत्कालीन कार्यवाहक रजिस्ट्रार, जेएनवीयू
राजपुरोहित ने अपनी स्कॉलर यामिनी शर्मा के लिए बनाया विशेष नियम
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती-2013 को लेकर कोर्ट में पेश चार्जशीट में शामिल तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा के बयान के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रो. बीएस राजपुरोहित की स्कॉलर यामिनी शर्मा की नियुक्ति के लिए विशेष नियम बनाया गया। इसकी जांच में भी पुष्टि हुई।
जांच में यह भी सामने आया कि सिंडिकेट के नियमों से परे जाकर साक्षात्कार में निर्धारित से अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को बुलाया गया, इससे अभ्यर्थियों को अपनी पूरी बात कहने का मौका नहीं मिला। अभ्यर्थियों की ग्रेडिंग की सूची नहीं बनाई गई। चार्जशीट में इस बात का भी उल्लेख है कि उत्तर प्रदेश के सुरेंद्र कुमार को राजस्थान मूल का नहीं होने की वजह से 500 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट जमा करवाना था, लेकिन उसने 250 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट जमा करवाया। इसके बावजूद नियमों को ताक में रखकर उसका एससी कैटेगरी के तहत म्यूजिक विभाग में चयन कर लिया गया।
20 अंक का फायदा सिर्फ वीसी की स्कॉलर को
चार्जशीट के अनुसार मैनेजमेंट विभाग के लिए तय शैक्षणिक योग्यता के अनुसार यामिनी शर्मा मेरिट लिस्ट में 162 नंबर पर होती, लेकिन उसने 5 मई 2012 को पीएचडी पूरी की और 11 दिसंबर 2012 को अपनी पीएचडी की डिग्री तत्कालीन कुलपति राजपुरोहित की ई-मेल पर भेजी। पीएचडी के आधार पर 20 अंक का वेटेज केवल यामिनी शर्मा को ही मिला।
इससे यामिनी मेरिट में 44वें स्थान पर आ गई। इस नियम का विषय विशेषज्ञ प्रो. जेके जैन, मैनेजमेंट के प्रो. एसबी शुक्ला, प्रो. एचके सिंह व प्रो. बीए प्रजापति, प्रो. सुनीता कुंभट के अलावा राजनीतिक विज्ञान की तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. पूनम बावा ने भी विरोध किया, लेकिन उन्हें सुना ही नहीं गया।
दरअसल, शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के दौरान ही तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा का तबादला सरदार पटेल पुलिस यूनिवर्सिटी में कुलसचिव पद पर हो गया था। इसके बाद प्रक्रिया पूर्ण नहीं होने तक यहां नए रजिस्ट्रार की नियुक्ति ही नहीं की गई। बाद में तत्कालीन कुलपति प्रो. बीएस राजपुरोहित ने सेक्शन ऑफिसर प्रभुलाल भाटी को लिखित में रजिस्ट्रार के पॉवर दे नियुक्ति आदेशों पर हस्ताक्षर करवाए। गौरतलब है कि निर्मला मीणा एसीबी को दिए अपने बयान में कह चुकी हैं कि उन्होंने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तो उन्हें नियुक्ति प्रक्रिया से अलग कर दिया गया। उन्होंने शिक्षक भर्ती में पैसों के लेनदेन का भी आरोप लगाया है।
12 साल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहे थे भाटी
शिक्षक भर्ती के साक्षात्कारों के बाद चयन समिति की अनुशंसाओं को लिफाफों में बंद कर दिया गया था, जिन्हें सिंडिकेट की दो बैठकों में खाेला गया। इन दोनों सिंडिकेट में रजिस्ट्रार मौजूद नहीं थे। ऐसे में भाटी को रजिस्ट्रार के पॉवर देकर नियुक्तियों के आदेश जारी करवाए गए।
भाटी की नियुक्ति 20 नवंबर 1976 को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर हुई थी। वर्ष 1988 में वे पदोन्नति से एलडीसी और बाद में यूडीसी व असिस्टेंट भी बने। वर्ष 2010 में वे सेक्शन ऑफिसर बन गए। उन्होंने सिंडिकेट के निर्णय के आधार पर 12 फरवरी 2013 को 87 असिस्टेंट प्रोफेसर, 26 एसोसिएट प्रोफेसर व 17 प्रोफेसर, जबकि 23 फरवरी 2013 को 24 असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति आदेश जारी किए।
भाटी से पहले वित्त नियंत्रक व पीआरओ से साइन करवाने चाहे, वे छुट्टी पर चले गए
तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा के तबादले के बाद वित्त नियंत्रक सीएल सोलंकी के पास कुलसचिव का अतिरिक्त कार्यभार था, लेकिन वे शिक्षक भर्ती से जुड़े आदेशों पर हस्ताक्षर करने से कतराते रहे। इसको लेकर वे अक्सर अवकाश पर चले जाते थे। सोलंकी की गैर मौजूदगी के कारण 23 जनवरी 2013 को जेएनवीयू के पीआरओ रामनिवास चौधरी को रजिस्ट्रार का कार्यभार सौंपा गया, लेकिन नियुक्ति आदेश जारी करने वाले दिन वे भी छुट्टी पर चले गए।
भाटी बोले- वीसी का लिखित में आदेश था, तब किए हस्ताक्षर
रजिस्ट्रार पद पर कोई नहीं था तो तत्कालीन वीसी प्रो. राजपुरोहित के लिखित आदेश पर मैंने यह कार्यभार संभाला और उन्हीं के लिखित आदेश पर नियुक्तियों के आदेशों पर साइन किए। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। - प्रभुराम भाटी, तत्कालीन कार्यवाहक रजिस्ट्रार, जेएनवीयू
राजपुरोहित ने अपनी स्कॉलर यामिनी शर्मा के लिए बनाया विशेष नियम
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती-2013 को लेकर कोर्ट में पेश चार्जशीट में शामिल तत्कालीन रजिस्ट्रार निर्मला मीणा के बयान के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रो. बीएस राजपुरोहित की स्कॉलर यामिनी शर्मा की नियुक्ति के लिए विशेष नियम बनाया गया। इसकी जांच में भी पुष्टि हुई।
जांच में यह भी सामने आया कि सिंडिकेट के नियमों से परे जाकर साक्षात्कार में निर्धारित से अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को बुलाया गया, इससे अभ्यर्थियों को अपनी पूरी बात कहने का मौका नहीं मिला। अभ्यर्थियों की ग्रेडिंग की सूची नहीं बनाई गई। चार्जशीट में इस बात का भी उल्लेख है कि उत्तर प्रदेश के सुरेंद्र कुमार को राजस्थान मूल का नहीं होने की वजह से 500 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट जमा करवाना था, लेकिन उसने 250 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट जमा करवाया। इसके बावजूद नियमों को ताक में रखकर उसका एससी कैटेगरी के तहत म्यूजिक विभाग में चयन कर लिया गया।
20 अंक का फायदा सिर्फ वीसी की स्कॉलर को
चार्जशीट के अनुसार मैनेजमेंट विभाग के लिए तय शैक्षणिक योग्यता के अनुसार यामिनी शर्मा मेरिट लिस्ट में 162 नंबर पर होती, लेकिन उसने 5 मई 2012 को पीएचडी पूरी की और 11 दिसंबर 2012 को अपनी पीएचडी की डिग्री तत्कालीन कुलपति राजपुरोहित की ई-मेल पर भेजी। पीएचडी के आधार पर 20 अंक का वेटेज केवल यामिनी शर्मा को ही मिला।
इससे यामिनी मेरिट में 44वें स्थान पर आ गई। इस नियम का विषय विशेषज्ञ प्रो. जेके जैन, मैनेजमेंट के प्रो. एसबी शुक्ला, प्रो. एचके सिंह व प्रो. बीए प्रजापति, प्रो. सुनीता कुंभट के अलावा राजनीतिक विज्ञान की तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. पूनम बावा ने भी विरोध किया, लेकिन उन्हें सुना ही नहीं गया।
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