पाली.मारवाड़ जंक्शन शिक्षिका ऊषा सापेला ने एक दिन घर एक वृद्ध को भोजन मांगते देखा तो उन्होंने वृद्धाश्रम खोलने जैसा निर्णय ही ले लिया। हादसे में पति को खोने के बाद दो बच्चों की परवरिश करने के साथ ऊषा ने इतना बड़ा फैसला तो कर दिया, लेकिन इसके लिए राशि भी जुटानी थी।
आखिरकार शिक्षक पति के निधन के बाद विभाग से मिली राशि, पैतृक संपत्ति व खुद के जेवर तक बेच दिए। इसके बाद भी पैसों की जरूरत हुई तो ऊषा ने कुछ लोगों से उधारी लेने के साथ बैंक से लोन लिया। आखिरकार दो महीने पहले ऊषा की कल्पना साकार भी हो गई और उन्होंने अपने पति राधेश्याम की याद में दो बीघा जमीन पर वृद्धाश्रम खोल दिया। हालांकि इस पर कितना रुपया खर्च हुआ, ऊषा ने यह बताने से इनकार कर दिया। फिलहाल, यहां दो वृद्धजन रह रहे हैं, लेकिन ऊषा ने 15 वृद्धजनों के रहने का इंतजाम किया है। वर्तमान में खारड़ा स्कूल में कार्यरत ऊषा स्कूल की छुट्टी होते ही वृद्धाश्रम पहुंच जाती हैं।
ऊषा का एक पुत्र घनश्याम सापेला में व्याख्याता है तो दूसरा बेटा डाॅ. दिनेश आरएएस है। वे वर्तमान में आसपुर, डूंगरपुर में सहायक कलेक्टर हैं।
ऊषा का कहना है कि खुद के वेतन के अलावा पति के निधन पर विभाग से मिले पैसे भी वृद्धाश्रम के निर्माण पर लगा दिए। इसके बाद भी पैसे कम पड़े तो ऊषा ने अपनी पैतृक संपत्ति बेचने के साथ कुछ लोगों से कर्ज और बैंक से भी लोन लिया। यहां तक कि इसके लिए उन्होंने अपने जेवर भी बेच दिए। आखिरकार करीब 2 बीघा जमीन खरीद कर उन्होंने वृद्धाश्रम का निर्माण कार्य शुरू करा दिया। करीब दो साल तक निर्माण कार्य के बाद हाल ही में उन्होंने यह वृद्धाश्रम वृद्धजनों के लिए खोल दिया। वर्तमान में खारड़ा स्कूल में कार्यरत ऊषा स्कूल की छुट्टी होते ही वृद्धाश्रम पहुंच जाती हैं।
15 वृद्धजनों के रहने की व्यवस्था
हाल ही में शुरू किए गए इस वृद्धाश्रम में वर्तमान में दो वृद्धजन रह रहे हैं, लेकिन ऊषा ने यहां 15 वृद्धजनों के रहने की व्यवस्था की है। साथ ही यहां उनके लिए हर तरह की जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई हैं। बकौल शिक्षिका ऊषा सापेला वे किसी भी वृद्धजन से यहां रहने के बदले में एक रुपया भी नहीं लेगी। हालांकि उन्हें इसके लिए जमीन खरीदने से लेकर वृद्धाश्रम बनाने तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने न तो हार मानी और न ही इस लक्ष्य से पीछे हटी।
खुद बेटा बनकर की अपने माता-पिता की भी सेवा
शिक्षिका ऊषा सापेला अपने माता-पिता की भी इकलौती संतान थी। ऐसे में उन्होंने अपने माता-पिता की सेवा भी खूब की। वो अपने माता-पिता को भी अपने साथ ही रखती थी। साथ ही माता-पिता को कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि उनके कोई बेटा नहीं है।
सेवा करने फल भी मिला, एक बेटा आरएएस, दूसरा लेक्चरर बना
घर की जिम्मेदारी के साथ सेवा को समर्पित ऊषा को इसका फल भी मिला। ऊषा ने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। आज उनका एक पुत्र घनश्याम सापेला के सरकारी स्कूल में व्याख्याता है तो दूसरे पुत्र डाॅ. दिनेश का पिछले बैच में आरएएस में चयन हुआ है। वे वर्तमान में आसपुर, डूंगरपुर में सहायक कलेक्टर हैं।
40 साल से घर से खाना ला मरीजों को खुद परोस रहे है
महात्मा गांधी अस्पताल में शाम होते ही 77 साल के तुलसीदास मूंदड़ा बिना नागा किए मरीजों व उनके रिश्तेदारों को खाना परोसने पहुंच रहे हैं। करीब 40 साल से बिना नागा वे अपने सहयोगियों के साथ अस्पताल में मरीजों व परिजनों को न केवल संबल देते हैं बल्कि मार्गदर्शन भी करते हैं। मूंदड़ा ने बताया, शुरुआती 20 साल तक तो वे अपने स्तर पर सेवा चलती थी, लेकिन पिछले 20 सालों से अस्पताल में केंद्र खोल कर टीम के रूप में सेवाएं दी जा रही हैं। रोगियों को खाना पहुंचाने और उनकी मदद करने की शुरुआत 40 साल पहले संत रामसुखदास महाराज के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से समाजसेवी नैनजी भूतड़ा के साथ की थी।
12 हजार कमाने वाले ने तीनों बच्चों को इंजीनियर बनाया
डीजल इंजन मैकेनिक रसीद वासिद को कोचिंग संस्थानों में आने वाले बच्चों को देखकर जिज्ञासा हुई कि ये आखिर यहां किस चीज की पढ़ाई करने आते हैं। पूछा तो पता चला कि कोटा में पढ़े बच्चे आईआईटी या एमएनआईटी जैसे संस्थानों में पढ़ने के बाद अच्छी नौकरी कर रहे हैं। इसके बाद रसीद ने भी अपने तीनों बच्चों का भविष्य बनाने की ठान ली। बमुश्किल 12 हजार कमाने वाले रसीद ने कर्ज उधार लेकर बच्चों को कोचिंग में एडमिशन दिलाया। आज बड़ा बेटा शाहरूख इंफोसिस में है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
आखिरकार शिक्षक पति के निधन के बाद विभाग से मिली राशि, पैतृक संपत्ति व खुद के जेवर तक बेच दिए। इसके बाद भी पैसों की जरूरत हुई तो ऊषा ने कुछ लोगों से उधारी लेने के साथ बैंक से लोन लिया। आखिरकार दो महीने पहले ऊषा की कल्पना साकार भी हो गई और उन्होंने अपने पति राधेश्याम की याद में दो बीघा जमीन पर वृद्धाश्रम खोल दिया। हालांकि इस पर कितना रुपया खर्च हुआ, ऊषा ने यह बताने से इनकार कर दिया। फिलहाल, यहां दो वृद्धजन रह रहे हैं, लेकिन ऊषा ने 15 वृद्धजनों के रहने का इंतजाम किया है। वर्तमान में खारड़ा स्कूल में कार्यरत ऊषा स्कूल की छुट्टी होते ही वृद्धाश्रम पहुंच जाती हैं।
ऊषा का एक पुत्र घनश्याम सापेला में व्याख्याता है तो दूसरा बेटा डाॅ. दिनेश आरएएस है। वे वर्तमान में आसपुर, डूंगरपुर में सहायक कलेक्टर हैं।
ऊषा का कहना है कि खुद के वेतन के अलावा पति के निधन पर विभाग से मिले पैसे भी वृद्धाश्रम के निर्माण पर लगा दिए। इसके बाद भी पैसे कम पड़े तो ऊषा ने अपनी पैतृक संपत्ति बेचने के साथ कुछ लोगों से कर्ज और बैंक से भी लोन लिया। यहां तक कि इसके लिए उन्होंने अपने जेवर भी बेच दिए। आखिरकार करीब 2 बीघा जमीन खरीद कर उन्होंने वृद्धाश्रम का निर्माण कार्य शुरू करा दिया। करीब दो साल तक निर्माण कार्य के बाद हाल ही में उन्होंने यह वृद्धाश्रम वृद्धजनों के लिए खोल दिया। वर्तमान में खारड़ा स्कूल में कार्यरत ऊषा स्कूल की छुट्टी होते ही वृद्धाश्रम पहुंच जाती हैं।
15 वृद्धजनों के रहने की व्यवस्था
हाल ही में शुरू किए गए इस वृद्धाश्रम में वर्तमान में दो वृद्धजन रह रहे हैं, लेकिन ऊषा ने यहां 15 वृद्धजनों के रहने की व्यवस्था की है। साथ ही यहां उनके लिए हर तरह की जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई हैं। बकौल शिक्षिका ऊषा सापेला वे किसी भी वृद्धजन से यहां रहने के बदले में एक रुपया भी नहीं लेगी। हालांकि उन्हें इसके लिए जमीन खरीदने से लेकर वृद्धाश्रम बनाने तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने न तो हार मानी और न ही इस लक्ष्य से पीछे हटी।
खुद बेटा बनकर की अपने माता-पिता की भी सेवा
शिक्षिका ऊषा सापेला अपने माता-पिता की भी इकलौती संतान थी। ऐसे में उन्होंने अपने माता-पिता की सेवा भी खूब की। वो अपने माता-पिता को भी अपने साथ ही रखती थी। साथ ही माता-पिता को कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि उनके कोई बेटा नहीं है।
सेवा करने फल भी मिला, एक बेटा आरएएस, दूसरा लेक्चरर बना
घर की जिम्मेदारी के साथ सेवा को समर्पित ऊषा को इसका फल भी मिला। ऊषा ने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। आज उनका एक पुत्र घनश्याम सापेला के सरकारी स्कूल में व्याख्याता है तो दूसरे पुत्र डाॅ. दिनेश का पिछले बैच में आरएएस में चयन हुआ है। वे वर्तमान में आसपुर, डूंगरपुर में सहायक कलेक्टर हैं।
40 साल से घर से खाना ला मरीजों को खुद परोस रहे है
महात्मा गांधी अस्पताल में शाम होते ही 77 साल के तुलसीदास मूंदड़ा बिना नागा किए मरीजों व उनके रिश्तेदारों को खाना परोसने पहुंच रहे हैं। करीब 40 साल से बिना नागा वे अपने सहयोगियों के साथ अस्पताल में मरीजों व परिजनों को न केवल संबल देते हैं बल्कि मार्गदर्शन भी करते हैं। मूंदड़ा ने बताया, शुरुआती 20 साल तक तो वे अपने स्तर पर सेवा चलती थी, लेकिन पिछले 20 सालों से अस्पताल में केंद्र खोल कर टीम के रूप में सेवाएं दी जा रही हैं। रोगियों को खाना पहुंचाने और उनकी मदद करने की शुरुआत 40 साल पहले संत रामसुखदास महाराज के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से समाजसेवी नैनजी भूतड़ा के साथ की थी।
12 हजार कमाने वाले ने तीनों बच्चों को इंजीनियर बनाया
डीजल इंजन मैकेनिक रसीद वासिद को कोचिंग संस्थानों में आने वाले बच्चों को देखकर जिज्ञासा हुई कि ये आखिर यहां किस चीज की पढ़ाई करने आते हैं। पूछा तो पता चला कि कोटा में पढ़े बच्चे आईआईटी या एमएनआईटी जैसे संस्थानों में पढ़ने के बाद अच्छी नौकरी कर रहे हैं। इसके बाद रसीद ने भी अपने तीनों बच्चों का भविष्य बनाने की ठान ली। बमुश्किल 12 हजार कमाने वाले रसीद ने कर्ज उधार लेकर बच्चों को कोचिंग में एडमिशन दिलाया। आज बड़ा बेटा शाहरूख इंफोसिस में है।
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