नई दिल्ली।
शिक्षा के क्षेत्र में भारत के सुधार की रफ्तार यदि ऐसी ही रही तो उसे
विकसित देशों की तरह अपनी शिक्षा के स्तर को शीर्ष पर ले जाने में 126 साल
का समय लगेगा। उद्योग संगठन एसोचैम ने मंगलवार को जारी एक अध्ययन पत्र में
यह बात कही है। एसोचैमने कहा- हालांकि भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में तेज
प्रगति की है। शिक्षा के स्तर में मौजूदा खाई तब तक भरती नहीं दिखती, जब तक
विकसित देश इस मद में अपना व्यय कम नहीं कर देते।
खर्च में कंजूसी
इसमें
कहा गया है कि भारत अभी शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.83
प्रतिशत खर्च कर रहा है, जो अपर्याप्त है। अध्ययन पत्र के अनुसार यदि
शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव नहीं किया गया तो विकसित देशों के स्तर पर
पहुंचने में छह पीढिय़ों या 126 साल का समय लग सकता है।
अमेरिका से सीखें
एसोचैम
ने बताया कि शिक्षा पर अमेरिका अपनी जीडीपी का 5.22 प्रतिशत, जर्मनी 4.95
प्रतिशत तथा ब्रिटेन 5.72 प्रतिशत खर्च करता है। इन देशों का जीडीपी भारत
के मुकाबले काफी ज्यादा होने के कारण शिक्षा पर इनका वास्तविक खर्च भारत की
तुलना में कई गुना है।
संयुक्त राष्ट्र के मानदंड
रिपोर्ट
में कहा गया है कि भारत में संशाधनों की कमी एक हकीकत है लेकिन उसे कम से
कम संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई अनुसंशा के अनुसार शिक्षा पर खर्च करना
चाहिये। इस हिसाब से शिक्षा बजट बढ़ाकर जीडीपी का छह प्रतिशत करना होगा।
देश में 31 करोड़ 50 लाख छात्र
यदि
हम शिक्षा पर बजट बढ़ाते हैं तो भारत दुनिया के लिए प्रतिभा का बड़ा स्रोत
बनकर उभर सकता है। इस समय देश में 31 करोड़ 50 लाख छात्र हैं, जो दुनिया
में सर्वाधिक छात्र आबादी है और देश के पक्ष में है।
योग्य शिक्षकों की कमी
एसोचैम
ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती अच्छे शिक्षकों की कमी
है। वर्तमान में 14 लाख शिक्षकों की कमी है। इसके अलावा 20 प्रतिशत
शिक्षकों की योग्यता राष्ट्रीय शिक्षक योग्यता परिषद् के मानकों के अनुरूप
नहीं है। अध्ययन पत्र में कहा गया है कि कौशल विकास पर ध्यान के अभाव में
भारत सबसे कम कौशल वाले देशों में से एक है। देश में सिर्फ 4.7 प्रतिशत
कामगारों को ही औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त हैं, जबकि जापान में यह आंकड़ा
80 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 95 प्रतिशत, जर्मनी में 75 प्रतिशत, ब्रिटेन
में 68 प्रतिशत तथा अमेरिका में 52 प्रतिशत है।
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