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विधानसभा चुनाव से दो साल पहले मुख्यमंत्री का इतना विरोध पहली बार!

जयपुर। प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अब भी 23 महीनें बाकी हैं, लेकिन इतने समय पहले राज्य की मुख्यमंत्री का विरोध शुरू हो गया है। विरोध भी एक दो जगह नहीं, वरन सरकार के तीन साल के जश्न में जहां भी कार्यक्रम हो रहे हैं वहीं सीएम को विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
माना जा रहा है कि राजस्थान में जिन उम्मीदों के साथ जनता ने भाजपा को वोट देकर भारी बहुमत देकर सदन में भेजा था, वे उम्मीदें पूरी होती नजर नहीं आ रही है। शायद यही कारण है कि सीएम राजे का इतना विरोध हो रहा है।
हर संभाग में सरकार के तीन साल पूरे होने का जलसा हुआ है। सबसे पहले अलवर में, उसके बाद सीकर और जोधपुर में भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इन सरकारी जलसों में विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि सभी जगह ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी। राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ और राजस्थान विद्यार्थी मित्र शिक्षक संघ के लाखों युवा सीएम व सरकार की अनदेखी के कारण बेहद खफा हैं। जहां भी सीएम राजे जा रही हैं, वहीं पर वे काले झंड़े और पुतले फूंककर जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सीकर में जो हुआ सबको पता है। जिस राज्य के मुख्यमंत्री को बीच कार्यक्रम में अपना भाषण छोड़कर चल दें, तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके खिलाफ माहौल कितना बिगड़ चुका है। इतने पर भी समझ में यह नहीं आ रहा है कि सीएम का सलाहकार मंड़ल राजस्थान में उनको राहुल गांधी बनाने पर क्यूं तुला है?
जिनसे किया वादा, उनको दिखाया ठेंगा
याद है जब 2013 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। विद्यार्थी मित्र और बेरोजगार युवा नियुक्तियों को लेकर तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ हो गए थे। जिसका फायदा उठाते हुए वर्तमान सीएम राजे ने 15 लाख नौकरियां देने और 24163 विद्यार्थी मित्रों को नियमित करने का वादा किया था। लेकिन जब सरकार बनी तो उसके महज 5 माह के भीतर सरकार ने संविदा पर कार्यकरत विद्यार्थी मित्रों को नौकरी से निकाल दिया। तब से लेकर अब तक वे सैकड़ों बार धरने—प्रदर्शन कर चुके हैं। राजस्थान विद्यार्थी मित्र शिक्षक संघ के प्रदेश संयोजक अशोक सिहाग का कहना है कि सरकार ने नौकरी नहीं दी, जिसके कारण आज भी वे लोग दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं, इतना ही नहीं बल्कि इस दौरान 24 हजार से ज्यादा विद्यार्थी मित्रों में से अब तक 26 जनों की नौकरी की आस में जान जा चुकी है। लेकिन सरकार केवल वादा करती है, नौकरी के लिए ठोस कदम नहीं उठाती है। इधर, राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष उपेन यादव का कहना है कि तमाम नौकरियों को गहलोत सरकार की तरह कोर्ट में अटका दिया गया है। किसी भी नौकरी को साफ सुथरी करने की सरकार की नियत ही नहीं है। उसमें भी सरकार के मंत्री अपना मुनाफा ढूंढ़ रहे हैं।
लफंगे बोलने पर बढ़ा बवाल
सीकर सभा के दौरान जब बेरोजगार सीएम को काले झ़ंड़े दिखाकर प्रदर्शन कर नारेबाजी कर रहे थे, तब सीएम को गुस्सा आ गया। अपने भाषण में व्यवधान से आहत सीएम ने नारेबाजी करने वाले बेबस बेरोजगारों को लफंगा कहकर अपमानित किया। जिसके बाद विवाद और बढ़ गया। आखिर सीएम को अपना भाषण बीच में छोड़कर भागना पड़ा।
जयपुर में नहीं आईं कार्यक्रम में
तीन जगह पर विरोध के बाद राजधानी जयपुर में जनता के एकत्रित होने की उम्मीद थीं, लेकिन संभावना से कम भीड़ होने के कारण सीएम कार्यक्रम में ही नहीं आईं। यहां पर केंद्रीय मंत्री राज्यर्धन राठौड़ और प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने मोर्चा संभाला। मजेदार बात ये रही कि जैसे ही प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी बोलने के लिए खड़े हुए तो आए हुए चंद कार्यकर्ता भी चलते बने।
उल्लेखनीय योजना नहीं, ढिंढोरा किसका पीटें?
सीएम राजे और सरकार के साथ सबसे बड़ी मुसीबत स्वयं की पैदा की हुई है। सरकार ने तीन साल के कार्यकाल में ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया, जिसका ढिंढ़ोरा पीटकर जनता को बताया जा सके। ऐसे में सरकार केवल समय निकाल रही है। मंत्रियों का जनता को जवाब देते नहीं बन रहा है। जनता की उम्मीदें पूरी नहीं कर पाने के कारण विधायक अपने क्षेत्र में जाने से कतराने लगे हैं। जहां भी एमएलए जाते हैं जनता हाथ धोकर पीछे पड़ जाती हैं। अब भाजपा को सत्ता में लोटने के लिए राज्य में एकबार फिर पीएम नरेंद्र मोदी से ही करिश्में की उम्मीदें बची है।

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