यूं तो एडहॉक (तदर्थ) शिक्षकों की बहाली का मूल उद्देश्य शिक्षण कार्यों में निरंतरता बनाए रखने के लिए की गई थी ताकि रिक्त पदों के आलोक में विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित ना हो। दिल्ली विश्वविद्यालय में इस व्यवस्था की एक लंबी परंपरा रही है। विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद के द्वारा एडहॉक नियुक्ति के संदर्भ में समय-समय पर विधिवत दिशा-निर्देश और नियमावली भी जारी करती रही है।
शैक्षणिक योग्यता और अन्य शतरे के आधार पर हरेक विभाग में प्रत्येक वर्ष एडहॉक नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करते हैं। रिक्त पदों पर एडहॉक नियुक्ति के लिए नियमों और प्रक्रियाओं का पालन भी किया जाता है और ये विज्ञापन, साक्षात्कार और नियुक्ति समिति के प्रक्रिया से होकर गुजरती है। स्थायी शिक्षक की तुलना में एडहॉक शिक्षक के कार्यभार और वेतनमान भी एक समान होते हैं। ये व्यवस्था इस मायने में बेहद तार्किक और सकारात्मक दिखलाई पड़ेगी, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में शिक्षकों के लिए एडहॉक की लंबी पारी काफी पीड़ादायक रही है।
चिकित्सा छुट्टी, महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश के साथ-साथ कई प्रकार की सेवा-सुविधा से वंचित रहकर नौकरी करना मानसिक उत्पीड़न से परिपूर्ण रहती है। लंबे अरसे से एडहॉक से स्थाई नियुक्ति की उम्मीद में एडहॉक शिक्षक समूह अपने बौद्धिक जीवन के महत्त्वपूर्ण दस-पंद्रह साल गवां दिए हैं। इस दौरान कॉलेजों और विश्वविद्यालय में रिक्त पदों के लिए विज्ञापन भी आए और फॉर्म भी भरे गए मगर साक्षात्कार नहीं हुए। एडहॉक शिक्षकों को हरेक चार महीने बाद नियुक्ति पत्र मिलती रही और कॉलेज में अकादमिक गतिविधियां चलती रही। इनके पढ़ाने और अन्य अकादमिक योगदान से विद्यार्थीसमूहों के पठन-पाठन में वाकई कोई संकट नहीं आया मगर इन शिक्षकों के कार्मिंक-जीवन में स्थायित्व की समस्या एक विकराल रूप धारण करती गई। 28 अगरत 2019 को निर्गत एक सरकारी सकरुलर एडहॉक शिक्षकों के कॅरियर के लिए एक मृत्यु-फरमान की तरह आया, जिसमें एडहॉक नियुक्ति की जगह पर अतिथि शिक्षक बहाल करने का प्रावधान किया गया था। एडहॉक की तुलना में वेतन भी आधी से भी कम होने की संभावना थी।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के संबंध में सरकार की तरफ से संसद की पटल पर पहली बार पूर्व मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक साल की समय सीमा के तहत भर्ती पूरा करने का आश्वासन दिया था, जबकि वर्तमान मंत्री रमेश पोखिरयाल निशंक ने तो छह माह के भीतर ही स्थायी भर्ती पूरी कर लेने की बात दोहराई। परंतु इस दिशा में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। ऐसी परिस्थिति में समायोजन सहित स्थाई नियुक्ति, प्रोन्नति में पूरी एडहॉक अनुभव का जोड़ना और 28 अगस्त 2019 के सकरुलर की वापसी को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने 4 दिसम्बर 2019 से पूर्ण बंद का आह्वान किया। आंदोलित शिक्षकों ने वीसी कार्यालय पर कब्जा कर लिया। शिक्षक आंदोलन के दबाव में सरकार ने कुछ मांगों को माना, जिसमें स्थाई नियुक्ति होने तक एडहॉक शिक्षकों की सेवा जारी रखना और पहले दो प्रोन्नति में एडहॉक अनुभव को जुड़ने के साथ-साथ ही बाकी मुद्दों के समाधान करने का वायदा किया गया था।
विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और मानव संसाधन मंत्रालय के तरफ से किए गए ये वायदे कब तक पूरे होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है। मगर एडहॉक शिक्षकों के समायोजन की मांग को लेकर अभी भी आंदोलन जारी है, जिसे सरकार ने फिलहाल खारिज कर दिया है। उपर्युक्त मुद्दों को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक वर्षो से परेशानी झेल रहे हैं। सिर्फ वायदों से समस्या का समाधान नहीं होगा। समायोजन की मांग कर रहे एडहॉक शिक्षकों ने भी विज्ञापित पदों पर कई बार फॉर्म भरे हैं किंतु साक्षात्कार के नाम पर सिर्फ इंतजार या फिर नया विज्ञापन आ जाता है। ऐसे में सरकार को समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में कुछ ठोस उपाय तलाशने होंगे अन्यथा शिक्षकों के आंदोलन का दौर यूं ही चलता रहेगा। बड़ी बात है कि यह है कि जिन्हें क्लासरूम में होना चाहिए वो आंदोलन को विवश हैं। यह उनके लिए तो हास्यास्पद मसला है ही, उन बच्चों के लिए भी है जो वहां अध्ययनरत हैं। जब तक अध्यापक खुश नहीं रहेंगे, अध्यापन की बातें भी आधी-अधूरी ही रहेंगी।
शैक्षणिक योग्यता और अन्य शतरे के आधार पर हरेक विभाग में प्रत्येक वर्ष एडहॉक नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करते हैं। रिक्त पदों पर एडहॉक नियुक्ति के लिए नियमों और प्रक्रियाओं का पालन भी किया जाता है और ये विज्ञापन, साक्षात्कार और नियुक्ति समिति के प्रक्रिया से होकर गुजरती है। स्थायी शिक्षक की तुलना में एडहॉक शिक्षक के कार्यभार और वेतनमान भी एक समान होते हैं। ये व्यवस्था इस मायने में बेहद तार्किक और सकारात्मक दिखलाई पड़ेगी, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में शिक्षकों के लिए एडहॉक की लंबी पारी काफी पीड़ादायक रही है।
चिकित्सा छुट्टी, महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश के साथ-साथ कई प्रकार की सेवा-सुविधा से वंचित रहकर नौकरी करना मानसिक उत्पीड़न से परिपूर्ण रहती है। लंबे अरसे से एडहॉक से स्थाई नियुक्ति की उम्मीद में एडहॉक शिक्षक समूह अपने बौद्धिक जीवन के महत्त्वपूर्ण दस-पंद्रह साल गवां दिए हैं। इस दौरान कॉलेजों और विश्वविद्यालय में रिक्त पदों के लिए विज्ञापन भी आए और फॉर्म भी भरे गए मगर साक्षात्कार नहीं हुए। एडहॉक शिक्षकों को हरेक चार महीने बाद नियुक्ति पत्र मिलती रही और कॉलेज में अकादमिक गतिविधियां चलती रही। इनके पढ़ाने और अन्य अकादमिक योगदान से विद्यार्थीसमूहों के पठन-पाठन में वाकई कोई संकट नहीं आया मगर इन शिक्षकों के कार्मिंक-जीवन में स्थायित्व की समस्या एक विकराल रूप धारण करती गई। 28 अगरत 2019 को निर्गत एक सरकारी सकरुलर एडहॉक शिक्षकों के कॅरियर के लिए एक मृत्यु-फरमान की तरह आया, जिसमें एडहॉक नियुक्ति की जगह पर अतिथि शिक्षक बहाल करने का प्रावधान किया गया था। एडहॉक की तुलना में वेतन भी आधी से भी कम होने की संभावना थी।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के संबंध में सरकार की तरफ से संसद की पटल पर पहली बार पूर्व मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक साल की समय सीमा के तहत भर्ती पूरा करने का आश्वासन दिया था, जबकि वर्तमान मंत्री रमेश पोखिरयाल निशंक ने तो छह माह के भीतर ही स्थायी भर्ती पूरी कर लेने की बात दोहराई। परंतु इस दिशा में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। ऐसी परिस्थिति में समायोजन सहित स्थाई नियुक्ति, प्रोन्नति में पूरी एडहॉक अनुभव का जोड़ना और 28 अगस्त 2019 के सकरुलर की वापसी को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने 4 दिसम्बर 2019 से पूर्ण बंद का आह्वान किया। आंदोलित शिक्षकों ने वीसी कार्यालय पर कब्जा कर लिया। शिक्षक आंदोलन के दबाव में सरकार ने कुछ मांगों को माना, जिसमें स्थाई नियुक्ति होने तक एडहॉक शिक्षकों की सेवा जारी रखना और पहले दो प्रोन्नति में एडहॉक अनुभव को जुड़ने के साथ-साथ ही बाकी मुद्दों के समाधान करने का वायदा किया गया था।
विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और मानव संसाधन मंत्रालय के तरफ से किए गए ये वायदे कब तक पूरे होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है। मगर एडहॉक शिक्षकों के समायोजन की मांग को लेकर अभी भी आंदोलन जारी है, जिसे सरकार ने फिलहाल खारिज कर दिया है। उपर्युक्त मुद्दों को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक वर्षो से परेशानी झेल रहे हैं। सिर्फ वायदों से समस्या का समाधान नहीं होगा। समायोजन की मांग कर रहे एडहॉक शिक्षकों ने भी विज्ञापित पदों पर कई बार फॉर्म भरे हैं किंतु साक्षात्कार के नाम पर सिर्फ इंतजार या फिर नया विज्ञापन आ जाता है। ऐसे में सरकार को समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में कुछ ठोस उपाय तलाशने होंगे अन्यथा शिक्षकों के आंदोलन का दौर यूं ही चलता रहेगा। बड़ी बात है कि यह है कि जिन्हें क्लासरूम में होना चाहिए वो आंदोलन को विवश हैं। यह उनके लिए तो हास्यास्पद मसला है ही, उन बच्चों के लिए भी है जो वहां अध्ययनरत हैं। जब तक अध्यापक खुश नहीं रहेंगे, अध्यापन की बातें भी आधी-अधूरी ही रहेंगी।
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