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20 साल पहले फर्जीवाड़े से नौकरी पाने वाले 1896 शिक्षकों को निकालने की तैयारी

दरअसल सरकार की ओर से मामला वित्त विभाग में इसलिए अटक गया है कि जिन्हें हटाना है, वह कोर्ट में लड़ रहे है, लेकिन जो पात्र होने के बावजूद चयनित नहीं हो पाए है, वह नियुक्ति मांग रहे है।
ऐसे में अभी चुनावी वर्ष है। यदि हटाया जाता है तो भी इसका असर किसी न किसी रूप से चुनाव में सरकार के खिलाफ जाएगा। ऐसे में सरकार फिलहाल हटाना चाहकर भी हटा नहीं पा रही है।

वित्त विभाग की रिपोर्ट पर होगा एक्शन

भास्कर संवाददाता|डूंगरपुर

पिछले 20 सालों से स्कूलों में बतौर शिक्षक बनकर सेवाएं दे रहे 1998 शिक्षक भर्ती प्रकरण से जुड़े शिक्षकों को हटाने की सरकार ने तैयारियां कर ली है। डूंगरपुर जिले में 33 सहित प्रदेश में 1896 के आस पास शिक्षक इस भर्ती घोटाले के दायरे में आए थे। हालांकि इन में से कई शिक्षकों के खिलाफ पहले ही सरकार द्वारा कार्रवाई कर ली थी, लेकिन बाद में मामला हाईकोर्ट में चले जाने के कारण यथावत स्थिति हो गई थी। इस बीच राज्य सरकार की आरे से गठित कमेटी ने तमाम जांच प्रकरणों की जांच करने के बाद यह तय किया है कि इनकी नियुक्तियां पूरी तरह से फर्जी हुई थी। हालांकि सूत्रों के अनुसार जांच रिपोर्ट सरकार को नहीं भेजी गई है। लेकिन इस प्रकरण में वित्त विभाग की ओर से अंतिम फैसला किया जाना है। इसके बाद ही अंतिम रूप से हटाने का निर्णय किया जाएगा। इस प्रकरण में केबिनेट मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़, शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी की अगुवाई में सरकार की कमेटी का निर्णय भी प्रभावी होगा। यदि आचार संहिता लगने से पहले आ गया तो।

ऐसे किया खेल: मेरिट में पीछे थे, लेकिन नियुक्तियों में आगे रहे

1998 में शिक्षक भर्ती जिला परिषदों के माध्यम से हुई थी। उस समय बड़े स्तर पर जिला परिषदों में धांधली हुई थी। तब नियुक्ति से पहले तैयार की गई मेरिट सूची में हेरफेर कर भर्तियां की गई थी। उदाहरण के अनुसार जिस अभ्यर्थी का मेरिट में पीछे नंबर था, उसके मेरिट सूची में अंक बढ़ाकर आग ले आए और नियुक्ति पत्र जारी किया था। जो मेरिट सूची में आ रहा था, वह भर्ती से वंचित रह गया था। बाद में पात्रता रखने वाले प्रदेश में करीब 1800 से ज्यादा अभ्यर्थियों की ओर से याचिका दाखिल की गई थी।

रिकॉल : डूंगरपुर में कोर्ट के आदेश के बाद 24 को बर्खास्त किया था

2017 में कोर्ट के आदेश आने के बाद स्थानीय डूंगरपुर की जिला परिषद की ओर से 24 शिक्षकों को बर्खास्त किया था। हालांकि बाद में ये लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। इस कारण मामला एक बार फिर से अधरझूल में रह गया। लेकिन तब सीईओ रहे मोहनलाल वर्मा ने कोतवाली थाने में भी प्रकरण दर्ज कराया था। पुलिस जांच में भी साबित हो गया था कि मिलीभगत कर नियुक्ति आदेश जारी किए गए थे। वहीं प्रारंभ में ही 2 शिक्षक वर्ष 1998 में ही निकाल दिए गए थे। 1 शिक्षक की मौत हो गई। 6 शिक्षक कट ऑफ में दोषी पाए गए थे।

सरकार द्वारा नई नियुक्ति देने से पड़ेगा करोड़ों का भार, हटाने पर होगा चुनाव में असर

पिछली मीटिंग में 1998 भर्ती की सूचनाओं को लेकर बताया था। एक प्रारूप तैयार होगा और जो सबसे पहले जिला परिषद में आएगा। मांगी गई सूचनाएं भेजी जाएगी। फिर आगे से जो भी निर्देश होंगे, उसकी पालना होगी। एमएल छगण, डीईओ

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