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सरकारी कर्मियों के समान होगा निजी स्कूली शिक्षकों का वेतन

जयपुर. राज्य सरकार ने प्रदेश के 37 हजार निजी स्कूलों पर नियंत्रण बढ़ाने की तैयारी कर ली है। इसके तहत निजी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन-भत्ता सरकारी कर्मियों के समान किया जाएगा। इतना ही नहीं, निजी स्कूल मनमर्जी से बंद भी नहीं हो सकेंगे।
स्कूल संचालकों
को संपत्तियों का विवरण भी
देना होगा। दरअसल, सरकार
राजस्थान गैर-सरकारी
शैक्षिक संस्था
अधिनियम-1989 में संशोधन
करने जा रही है। संशोधन का
ड्राफ्ट जारी कर दिया गया
है।
इस पर 15 दिसंबर तक सुझाव
मांगे गए हैं। पहले यह एक्ट
अनुदानित संस्थाओं पर लागू
था। सरकार अनुदानित संस्थाओं
के कर्मचारियों को सरकारी
सेवा में समायोजित कर चुकी है।
ऐसे में एक्ट का कोई औचित्य
नहीं था। सरकार अब एक्ट के
दायरे में मान्यता प्राप्त
निजी स्कूलों को दायरे में लाने
की तैयारी कर रही है। ऐसे में न
सिर्फ मान्यता प्राप्त स्कूल,
बल्कि उच्च शिक्षा के कॉलेज
भी शामिल होंगे।
सरकारी कर्मियों के समान
वेतन
इससे निजी स्कूलों के शिक्षक व
कर्मचारियों के वेतन में चार
गुना तक वृद्धि होगी। माना
जा रहा है यह भार सीधे-सीधे
अभिभावकों पर पड़ेगा। जो
स्कूल सरकारी नियमानुसार
वेतनमान नहीं दे सकेंगे, उन्हें
स्कूल बंद करना होगा।
भर्ती-सेवा शर्तें तय करेगी
सरकार
प्रावधान इन संस्थाओं की
स्वायत्तता में दखल होगा। यह
सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पाई
फाउंडेशन के 2002 के निर्णय के
विरुद्ध होगा। जिसमें सेवा
शर्तें तय करने का अधिकार इन
संस्थाओं को दिया गया है।
हटाए गए कर्मी को अपील का
हक नहीं
कर्मचारी को हटाने के लिए
निदेशक की अनुमति की भी
जरूरत नहीं होगी। कर्मचारी
को भी अधिकरण की बजाय
सिविल कोर्ट में जाना होगा।
शेष | पेज 6
स्कूल बंद तो संपत्ति सरकार
की
इसमें यह स्पष्ट नहीं किया
गया कि केवल सरकार से
रियायती दर पर जमीन लेने
वाले ही संपत्ति का कब्जा
सौंपेंगे या जो स्कूल संचालक
निजी भूमि पर भवन बनाकर
स्कूल चला रहे हैं उन्हें भी अपनी
जमीन सरकार को सौंपनी
होगी।
देना होगा संपत्ति का विवरण
स्कूलों को हर साल जुलाई में
अपनी संपत्तियों का विवरण
शिक्षा निदेशक को देना
होगा। हालांकि फीस
निर्धारण एक्ट में ही निजी
स्कूलों ने अपनी संपत्तियों का
विवरण पेश नहीं किया था।
प्रावधान की पालना भी
मुश्किल लग रही है।
प्रस्तावित संशोधन किसी के
हित में नहीं
> अनएडेड सोसायटी फॉर
प्राइवेट स्कूल ऑफ राजस्थान के
अध्यक्ष दामोदर प्रसाद
गोयल का कहना है कि
प्रस्तावित संशोधन बिना
सोचे समझे किए जा रहे हैं। यह न
तो स्कूल संचालकों के हित में है
और न ही शिक्षक व अभिभावक
के हित में।

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