जैसलमेर. विश्वविख्यात पर्यटन स्थल जैसलमेर आज भी ‘काले पानी’ जैसी सजा का स्थान ही बना हुआ है। इसकी बानगी एक बार फिर देखने में आई है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा विभाग ने
प्रदेश के ऐसे सात विद्यालयों के संस्था प्रधानों को जैसलमेर जिले की
विभिन्न स्कूलों में स्थानांतरित किया है, जिनके विद्यालयों का परिणाम
बोर्ड की उच्च माध्यमिक और माध्यमिक कक्षाओं की परीक्षा में अत्यंत न्यून
रहा है।
उन्हें सजा के तौर पर जैसलमेर जिले में पदस्थापित करने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह सरकारी आदेश यहां सोशल मीडिया पर भी चर्चा के केंद्र में रहा है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक ने इस संबंध में जारी आदेश में चित्तौडग़ढ़, सवाई माधोपुर, बाड़मेर और बीकानेर के 5 उच्च माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों और 2 माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को जैसलमेर जिले के सोढ़ाकोर, नाचना, पारेवर, बोड़ाना, देवा, मोहनगढ़ और बासनपीर जूनी स्थित विद्यालयों में तुरंत प्रभाव से पदस्थापित किया है। जारी आदेश में बताया गया कि इन विद्यालयों का कक्षा 10 व 12 का परीक्षा परिणाम अति न्यून रहा है। यह संस्था प्रधानों की पदीय कर्तव्यों में लापरवाही, शिक्षण कार्य में अरुचि और पर्यवेक्षणीय निष्क्रियता का द्योतक है।
सवाल जो मांग रहा जवाब
सवाल यह उठ रहा है कि जब शिक्षा विभाग की नजर में उपरोक्त विद्यालयों के प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक कार्य के प्रति इतने लापरवाह हैं तो वे जैसलमेर जैसे शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े जिले में भला कितने उपयोगी साबित होंगे?
कब जाएगी यह मानसिकता?
सीमावर्ती जैसलमेर और बाड़मेर जिलों को जयपुर में बैठे सत्ताधारी नेता और उच्चाधिकारी काले पानी की सजा के तौर पर देखते रहे हैं। समय-समय पर वे अपने अधीनस्थ अधिकारियों व कार्मिकों को काम नहीं करने पर जैसलमेर अथवा बाड़मेर जिलों में स्थानांतरित करने की धमकियां देते रहे हैं। इस मानसिकता के कारण ही जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में स्थानांतरित होने के बाद सरकारी कार्मिक किसी भी तरह से स्थानांतरण निरस्त करवाने में जुट जाते हैं और बहुत जरूरी होने पर यहां अनमने भाव से कार्यभार ग्रहण करने पहुंचते हैं।
उन्हें सजा के तौर पर जैसलमेर जिले में पदस्थापित करने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह सरकारी आदेश यहां सोशल मीडिया पर भी चर्चा के केंद्र में रहा है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक ने इस संबंध में जारी आदेश में चित्तौडग़ढ़, सवाई माधोपुर, बाड़मेर और बीकानेर के 5 उच्च माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों और 2 माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को जैसलमेर जिले के सोढ़ाकोर, नाचना, पारेवर, बोड़ाना, देवा, मोहनगढ़ और बासनपीर जूनी स्थित विद्यालयों में तुरंत प्रभाव से पदस्थापित किया है। जारी आदेश में बताया गया कि इन विद्यालयों का कक्षा 10 व 12 का परीक्षा परिणाम अति न्यून रहा है। यह संस्था प्रधानों की पदीय कर्तव्यों में लापरवाही, शिक्षण कार्य में अरुचि और पर्यवेक्षणीय निष्क्रियता का द्योतक है।
सवाल जो मांग रहा जवाब
सवाल यह उठ रहा है कि जब शिक्षा विभाग की नजर में उपरोक्त विद्यालयों के प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक कार्य के प्रति इतने लापरवाह हैं तो वे जैसलमेर जैसे शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े जिले में भला कितने उपयोगी साबित होंगे?
कब जाएगी यह मानसिकता?
सीमावर्ती जैसलमेर और बाड़मेर जिलों को जयपुर में बैठे सत्ताधारी नेता और उच्चाधिकारी काले पानी की सजा के तौर पर देखते रहे हैं। समय-समय पर वे अपने अधीनस्थ अधिकारियों व कार्मिकों को काम नहीं करने पर जैसलमेर अथवा बाड़मेर जिलों में स्थानांतरित करने की धमकियां देते रहे हैं। इस मानसिकता के कारण ही जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में स्थानांतरित होने के बाद सरकारी कार्मिक किसी भी तरह से स्थानांतरण निरस्त करवाने में जुट जाते हैं और बहुत जरूरी होने पर यहां अनमने भाव से कार्यभार ग्रहण करने पहुंचते हैं।
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