जयपुर:
प्रदेश में हर साल राज्य सरकार शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों को
निशुल्क शिक्षा देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती है ताकि जिन बच्चों तक
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं पहुंची उन्हें भी शिक्षा प्राप्त हो सके लेकिन
समय समय पर प्रदेश में कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जिसके चलते कई बार इस
आरटीई की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं. चाहे वो निजी स्कूलों
द्वारा आरटीई का दुरुपयोग हो या फिर अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों का अच्छे
स्कूल में एडमिशन करवाने को लेकर फर्जीवाड़ा हो लेकिन इस साल शिक्षा विभाग
ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे ना सिर्फ निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम
लगेगी साथ ही फर्जीवाड़ा कर रहे अभिभावकों में भी डर पैदा होगा.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की पालना में राजस्थान में निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2011 लागू में लागू हुआ और शुरूआती दौर से ही इस नियम को काफी सफलता मिली. पिछले साल करीब ढाई लाख से ज्यादा बच्चों ने प्रवेश के लिए आवेदन किया था लेकिन इस साल ये आंकड़ा बढ़कर करीब चार लाख पहुंच गया है. जिससे इस अधिकार के तहत मिलने वाली शिक्षा की लोकप्रियता देखी जा सकती है.
समसा आयुक्त प्रदीप बोर्ड का कहना है कि पिछले कई सालों से ये शिकायत मिल रही है जिसके चलते या तो बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जाता है या फिर ऐसे बच्चों को अन्य बच्चों से दूर बैठाया जाता है. साथ ही कई स्कूल सिर्फ फीस के लिए ही बच्चो को प्रवेश देते हैं. सके साथ ही ऐसी शिकायत भी मिलती रही है कि सक्षम अभिभावक भी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए इस नियम का दुरुपयोग करते हैं. ऐसे में अब शिक्षा विभाग ने स्कूलों की जांच के लिए कमेटी का गठन किया है.
प्रिंसीपल सैकेट्री के निर्देशों के बाद शिक्षा विभाग में ऐसी कमेटियों का गठन कर दिया गया है. जो समय समय पर स्कूलों का दौरा करेगी साथ ही मिलने वाली शिकायतों का भी निस्तारण का जिम्मा इन कमेटियों पर रहेगा.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की पालना में राजस्थान में निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2011 लागू में लागू हुआ और शुरूआती दौर से ही इस नियम को काफी सफलता मिली. पिछले साल करीब ढाई लाख से ज्यादा बच्चों ने प्रवेश के लिए आवेदन किया था लेकिन इस साल ये आंकड़ा बढ़कर करीब चार लाख पहुंच गया है. जिससे इस अधिकार के तहत मिलने वाली शिक्षा की लोकप्रियता देखी जा सकती है.
समसा आयुक्त प्रदीप बोर्ड का कहना है कि पिछले कई सालों से ये शिकायत मिल रही है जिसके चलते या तो बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जाता है या फिर ऐसे बच्चों को अन्य बच्चों से दूर बैठाया जाता है. साथ ही कई स्कूल सिर्फ फीस के लिए ही बच्चो को प्रवेश देते हैं. सके साथ ही ऐसी शिकायत भी मिलती रही है कि सक्षम अभिभावक भी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए इस नियम का दुरुपयोग करते हैं. ऐसे में अब शिक्षा विभाग ने स्कूलों की जांच के लिए कमेटी का गठन किया है.
प्रिंसीपल सैकेट्री के निर्देशों के बाद शिक्षा विभाग में ऐसी कमेटियों का गठन कर दिया गया है. जो समय समय पर स्कूलों का दौरा करेगी साथ ही मिलने वाली शिकायतों का भी निस्तारण का जिम्मा इन कमेटियों पर रहेगा.
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