भास्कर संवाददाता | डूंगरपुर जिलापरिषद की ओर से 1998 शिक्षक भर्ती घोटाले की तस्वीर साफ होने के
बाद भी पात्रता रखने वाले 33 युवाओं को नौकरी नहीं दी जा रही है। जबकि इन
अभ्यर्थियों को लेकर हाईकोर्ट ने स्पष्ट तौर पर आदेश जारी कर दिए हैं।
तत्कालीन जिला परिषद में कार्यरत कुछ बाबुओं और कार्मिकों की मिलीभगत से 33 अभ्यर्थी जिनके पास पात्रता नहीं थी, लेकिन कूटरचित तरीके से फर्जी दस्तावेज तैयार कर उन्हें मेरिट में लाकर नौकरी से नवाजा गया था, परंतु जिनके पास योग्यता थी और मेरिट में स्थान रखते थे, उन्हें बाहर कर दिया था, क्योंकि पदों की संख्या निर्धारित थी।
दूसरी ओर, इस भर्ती घोटाले में प्रभावित हुए अभ्यर्थियों के पक्ष में हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल 2011 को सरकार को नियुक्ति देने के आदेश दिए थे, लेकिन इस आदेश की पालना आज तक जिला परिषद की ओर से नहीं की गई है। आखिर 1 जनवरी 2018 को ये अभ्यर्थी नौकरी की उम्मीद लेकर कलेक्टर और एसीईओ से मिले और एक बार फिर से कोर्ट के आदेश की पालना कराने की गुहार लगाई है।
विधिक परीक्षण कराकर आगे की कार्रवाई करेंगे
^इसमामले की पूरी जानकारी हमें नहीं थी, इन लोगों ने पत्र और ज्ञापन मय दस्तावेज दिए हैं। जिसका विधिक परीक्षण कराकर आगे की कार्रवाई करेंगे। जो भी न्यायिक तौर पर होगा, वह किया जाएगा। -राधेश्याम मीणा, एसीईओ जिला परिषद
^हम पिछले कई वर्षों से मानसिक तनाव में जी रहे हैं। हमारी योग्यता और पात्रता होने के बावजूद कुछ लोगों के प्रभाव में जिला परिषद कोर्ट के आदेश की पालना नहीं कर रही है। हमने आज ज्ञापन देकर हमारी मांग रखी है। -महेशचंद्र रेबारी, पात्र अभ्यर्थी
^हमलोग कोर्ट में गए, जहां से हमारे हक में निर्णय किया गया। कोर्ट ने आदेश भी दिए, लेकिन फिर जांच ओर मार्गदर्शन का बहाना बनाकर तत्कालीन कर्मचारी अधिकारियों ने नियुक्ति के मामले को अटका दिया है। -हितेंद्रकुमार पुरोहित, पात्र अभ्यर्थी।
तत्कालीन भर्ती घोटाले में जिला परिषद की ओर से जारी सामान्य वर्ग की वरीयता 1 से 169 तक के अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई थी। इस नियुक्तियों में 33 अभ्यर्थियों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर नियुक्ति दी गई, लेकिन इनके नाम जोड़ने के बाद अधिशेष हुए 33 अन्य अभ्यर्थी जो पात्र थे, उन्हें मेरिट से बाहर कर दिया गया। जिनका क्रमांक 146 के बाद का था। जिनके प्राप्तांक कम थे, उनके अंकों को कागजों पर बढ़ाया गया। बाद में शिकायत होने के बाद तत्कालीन सीईओ ने मोहनलाल शर्मा द्वारा 2005 में कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया गया।
3 बार अपात्रों को हटाने का आदेश, हर बार बचाने के प्रयास
दूसरीओर, इस मामले में राज्य सरकार ने 33 अपात्र शिक्षकों को हटाने के लिए तीन बार बर्खास्त करने के निर्देश दिए गए, लेकिन हर बार जिला परिषद के कर्मचारियों ने बचाने के प्रयास किए, लेकिन यह मामला पुराना होने के कारण मौजूदा समय में सभी नए कर्मचारी हैं। जिन्हें इस मामले की पूरी जानकारी ही नहीं है।
दूसरी ओर, इस मामले में तत्कालीन सीईओ मोहनलाल शर्मा ने कोतवाली थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद कोतवाली की ओर से तब भी जांच हुई थी और मामले में गड़बड़ पाई गई थी, लेकिन प्रभावशाली लोगों की वजह से तब भी पात्रता रखने वाले 33 अभ्यर्थियों से नौकरी नहीं दी। वहीं नोटशीट के जरिए तत्कालीन जिला परिषद के कार्मिकों ने इस मामले की जांच मार्गदर्शन सरकार से मांग लिया और फिर मामला जांच के दायरे में चला गया। हालांकि मामला शिक्षा विभाग से जुड़ा हुआ था, परंतु नियुक्ति आदेश का काम पंचायतीराज के अधीन जिला परिषद करती थी।
तत्कालीन जिला परिषद में कार्यरत कुछ बाबुओं और कार्मिकों की मिलीभगत से 33 अभ्यर्थी जिनके पास पात्रता नहीं थी, लेकिन कूटरचित तरीके से फर्जी दस्तावेज तैयार कर उन्हें मेरिट में लाकर नौकरी से नवाजा गया था, परंतु जिनके पास योग्यता थी और मेरिट में स्थान रखते थे, उन्हें बाहर कर दिया था, क्योंकि पदों की संख्या निर्धारित थी।
दूसरी ओर, इस भर्ती घोटाले में प्रभावित हुए अभ्यर्थियों के पक्ष में हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल 2011 को सरकार को नियुक्ति देने के आदेश दिए थे, लेकिन इस आदेश की पालना आज तक जिला परिषद की ओर से नहीं की गई है। आखिर 1 जनवरी 2018 को ये अभ्यर्थी नौकरी की उम्मीद लेकर कलेक्टर और एसीईओ से मिले और एक बार फिर से कोर्ट के आदेश की पालना कराने की गुहार लगाई है।
विधिक परीक्षण कराकर आगे की कार्रवाई करेंगे
^इसमामले की पूरी जानकारी हमें नहीं थी, इन लोगों ने पत्र और ज्ञापन मय दस्तावेज दिए हैं। जिसका विधिक परीक्षण कराकर आगे की कार्रवाई करेंगे। जो भी न्यायिक तौर पर होगा, वह किया जाएगा। -राधेश्याम मीणा, एसीईओ जिला परिषद
^हम पिछले कई वर्षों से मानसिक तनाव में जी रहे हैं। हमारी योग्यता और पात्रता होने के बावजूद कुछ लोगों के प्रभाव में जिला परिषद कोर्ट के आदेश की पालना नहीं कर रही है। हमने आज ज्ञापन देकर हमारी मांग रखी है। -महेशचंद्र रेबारी, पात्र अभ्यर्थी
^हमलोग कोर्ट में गए, जहां से हमारे हक में निर्णय किया गया। कोर्ट ने आदेश भी दिए, लेकिन फिर जांच ओर मार्गदर्शन का बहाना बनाकर तत्कालीन कर्मचारी अधिकारियों ने नियुक्ति के मामले को अटका दिया है। -हितेंद्रकुमार पुरोहित, पात्र अभ्यर्थी।
तत्कालीन भर्ती घोटाले में जिला परिषद की ओर से जारी सामान्य वर्ग की वरीयता 1 से 169 तक के अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई थी। इस नियुक्तियों में 33 अभ्यर्थियों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर नियुक्ति दी गई, लेकिन इनके नाम जोड़ने के बाद अधिशेष हुए 33 अन्य अभ्यर्थी जो पात्र थे, उन्हें मेरिट से बाहर कर दिया गया। जिनका क्रमांक 146 के बाद का था। जिनके प्राप्तांक कम थे, उनके अंकों को कागजों पर बढ़ाया गया। बाद में शिकायत होने के बाद तत्कालीन सीईओ ने मोहनलाल शर्मा द्वारा 2005 में कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया गया।
3 बार अपात्रों को हटाने का आदेश, हर बार बचाने के प्रयास
दूसरीओर, इस मामले में राज्य सरकार ने 33 अपात्र शिक्षकों को हटाने के लिए तीन बार बर्खास्त करने के निर्देश दिए गए, लेकिन हर बार जिला परिषद के कर्मचारियों ने बचाने के प्रयास किए, लेकिन यह मामला पुराना होने के कारण मौजूदा समय में सभी नए कर्मचारी हैं। जिन्हें इस मामले की पूरी जानकारी ही नहीं है।
दूसरी ओर, इस मामले में तत्कालीन सीईओ मोहनलाल शर्मा ने कोतवाली थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद कोतवाली की ओर से तब भी जांच हुई थी और मामले में गड़बड़ पाई गई थी, लेकिन प्रभावशाली लोगों की वजह से तब भी पात्रता रखने वाले 33 अभ्यर्थियों से नौकरी नहीं दी। वहीं नोटशीट के जरिए तत्कालीन जिला परिषद के कार्मिकों ने इस मामले की जांच मार्गदर्शन सरकार से मांग लिया और फिर मामला जांच के दायरे में चला गया। हालांकि मामला शिक्षा विभाग से जुड़ा हुआ था, परंतु नियुक्ति आदेश का काम पंचायतीराज के अधीन जिला परिषद करती थी।
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