बांसवाड़ा में अब भी नियमानुसार ही वेतनमान मिल रहा है। जांच में हमारे
डीईओ ने साफ कहा कि यहां नियमानुसार ही है। लेकिन, डूंगरपुर में गलत भुगतान
किया है, इसलिए वसूली के आदेश हुए हैं। अब स्टे खारिज हो गया है। विभाग को
वसूली करनी चाहिए।
ऐसा नहीं होता है तो संगठन आंदोलन करेगा। लालसिंहचौहान, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक
इसलिए मामले को दबाया, कई अधिकारी होते दोषी
विभागीयसूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले को लेकर विभाग ने ठंडे बस्ते में इसलिए डाल दिया, क्योंकि तत्कालीन समय में कार्यरत कई बीईईओ और अधिकारी दोषी पाए जाएंगे। इधर निदेशालय भी इस पूरे मामले में आदेश जारी करने के बाद अब तक कार्रवाई नहीं की है। देखना होगा कि वसूली को लेकर आगे विभाग और निदेशालय मिलकर क्या करते है। वहीं शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक एक बार फिर आंदोलन करने में मुड़ में हैं।
^यह मामला मेरे से पहले का है और अभी पूरी जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन नियमानुसार कोर्ट का स्टे खारिज हुआ है तो पहले वाला वसूली का आदेश प्रभावी है। नियमानुसार ही कार्रवाई करेंगे। मणिलालछगण, डीईओ, प्रारंभिक शिक्षा
दूसरी ओर स्थानीय प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने स्टे खारिज होने के दो माह का समय बीत जाने के बाद भी वसूली को लेकर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की है। इस कारण प्रारंभिक शिक्षा विभाग में इस मामले से संबंधित कार्मिक सहित आला अधिकारी भी संदेश के घेरे में है। क्योंकि वसूली की फाइल एक तरह से विभाग में बंद पड़ी हुई है। करोड़ों रुपए ज्यादा दिए, लेकिन वापस लेने के लिए तो डीईओ आदेश जारी कर रहे हैं और ही ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अपने अधीन शिक्षकों को लेकर कार्रवाई कर रहे हैं।
हेमंत पंड्या| डूंगरपुर
शिक्षाविभाग प्रारंभिक ने अपने ही विभाग में कार्यरत 161 शिक्षकों को 5 साल से ज्यादा समय तक प्रति माह तय तनख्वाह के अलावा 24 हजार रुपए का ज्यादा भुगतान किया।
इसी मामले में जांच होने के बाद सरकार ने वसूली के आदेश दिए, लेकिन विभाग द्वारा वसूली हो, उसके पहले ही 95 शिक्षक कोर्ट में चले गए और स्टे लगा दिया गया। अब कोर्ट ने इस स्टे को खारिज कर दिया है और वसूली का पूर्व आदेश फिर से लागू हो गया। ऐसे में स्थानीय शिक्षा विभाग के आला अधिकारी इन शिक्षकों से तो वसूली कर रहे हैं और ही इसकी जानकारी विभाग को दे रहे हैं। साथ ही एक पूर्व डीईओ को बचाने के चक्कर में पूरे मामले को ही गोलमाल किया जा रहा है। एक शिक्षिका की तो सर्विस बुक ही गायब कर दी गई है। प्रति शिक्षक औसत 10 से 12 लाख रुपए की वसूली की जानी है और सभी के मिलाकर करीब 15 करोड़ 60 लाख से ज्यादा की राशि बन रही है।
यहथा मामला
दरअसल1984 से 88 के बीच संविदा पर शिक्षकों की नियुक्तियां की थी। बाद में उन्हें पुन: नियुक्त किया गया, लेकिन तब तक ये शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हुए थे। इस कारण इन्हें नियमानुसार चयनित वेतनमान और अन्य विभागीय परिलाभ नहीं दिए जा सकते थे। इसके बावजूद डूंगरपुर शिक्षा विभाग में तत्कालीन डीईओ बंशीलाल के कार्यकाल में कुछ अधिकारियों ने मिलीभगत कर नियुक्ति तिथि 1984-88 से ही वेतनमान सहित अन्य परिलाभ देकर शिक्षकों को लाभ दे दिया। जबकि इसी समय बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में 196 शिक्षकों की नियुक्तियां हुई थी, परंतु बांसवाड़ा और डूंगरपुर के शिक्षकों का उक्त परिलाभ शिक्षकों को 2008 में प्रशिक्षण प्राप्त होने के बाद दिया गया है। ऐसे में सवाल उठा कि एक ही समय में नियुक्ति पाने वाले शिक्षकों को दो जिलों में अलग-अलग वेतनमान कैसे मिला। बाद में शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक की शिकायत पर जांच हुई। जांच में डूंगरपुर जिले में शिक्षकों को मिले वेतनमान और अन्य परिलाभ गलत तरीके से दिए गए थे। आखिर निदेशालय 31 अक्टूबर 2015 को वसूली के आदेश दिए। इसी आदेश पर प्रभावित शिक्षकों ने कोर्ट का सहारा लिया और कोर्ट ने 24 नवंबर 2015 को कोर्ट ने 31 दिसंबर 2015 के आदेश पर स्टे दे दिया। इसके बाद मामला कोर्ट में चलता रहा। करीब दो माह पहले 21 अगस्त 2017 को कोर्ट पूर्व के आदेश पर स्टे खारिज कर दिया। इसके साथ ही वसूली का आदेश बहाल हो गया।
ऐसा नहीं होता है तो संगठन आंदोलन करेगा। लालसिंहचौहान, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक
इसलिए मामले को दबाया, कई अधिकारी होते दोषी
विभागीयसूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले को लेकर विभाग ने ठंडे बस्ते में इसलिए डाल दिया, क्योंकि तत्कालीन समय में कार्यरत कई बीईईओ और अधिकारी दोषी पाए जाएंगे। इधर निदेशालय भी इस पूरे मामले में आदेश जारी करने के बाद अब तक कार्रवाई नहीं की है। देखना होगा कि वसूली को लेकर आगे विभाग और निदेशालय मिलकर क्या करते है। वहीं शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक एक बार फिर आंदोलन करने में मुड़ में हैं।
^यह मामला मेरे से पहले का है और अभी पूरी जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन नियमानुसार कोर्ट का स्टे खारिज हुआ है तो पहले वाला वसूली का आदेश प्रभावी है। नियमानुसार ही कार्रवाई करेंगे। मणिलालछगण, डीईओ, प्रारंभिक शिक्षा
दूसरी ओर स्थानीय प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने स्टे खारिज होने के दो माह का समय बीत जाने के बाद भी वसूली को लेकर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की है। इस कारण प्रारंभिक शिक्षा विभाग में इस मामले से संबंधित कार्मिक सहित आला अधिकारी भी संदेश के घेरे में है। क्योंकि वसूली की फाइल एक तरह से विभाग में बंद पड़ी हुई है। करोड़ों रुपए ज्यादा दिए, लेकिन वापस लेने के लिए तो डीईओ आदेश जारी कर रहे हैं और ही ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अपने अधीन शिक्षकों को लेकर कार्रवाई कर रहे हैं।
हेमंत पंड्या| डूंगरपुर
शिक्षाविभाग प्रारंभिक ने अपने ही विभाग में कार्यरत 161 शिक्षकों को 5 साल से ज्यादा समय तक प्रति माह तय तनख्वाह के अलावा 24 हजार रुपए का ज्यादा भुगतान किया।
इसी मामले में जांच होने के बाद सरकार ने वसूली के आदेश दिए, लेकिन विभाग द्वारा वसूली हो, उसके पहले ही 95 शिक्षक कोर्ट में चले गए और स्टे लगा दिया गया। अब कोर्ट ने इस स्टे को खारिज कर दिया है और वसूली का पूर्व आदेश फिर से लागू हो गया। ऐसे में स्थानीय शिक्षा विभाग के आला अधिकारी इन शिक्षकों से तो वसूली कर रहे हैं और ही इसकी जानकारी विभाग को दे रहे हैं। साथ ही एक पूर्व डीईओ को बचाने के चक्कर में पूरे मामले को ही गोलमाल किया जा रहा है। एक शिक्षिका की तो सर्विस बुक ही गायब कर दी गई है। प्रति शिक्षक औसत 10 से 12 लाख रुपए की वसूली की जानी है और सभी के मिलाकर करीब 15 करोड़ 60 लाख से ज्यादा की राशि बन रही है।
यहथा मामला
दरअसल1984 से 88 के बीच संविदा पर शिक्षकों की नियुक्तियां की थी। बाद में उन्हें पुन: नियुक्त किया गया, लेकिन तब तक ये शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हुए थे। इस कारण इन्हें नियमानुसार चयनित वेतनमान और अन्य विभागीय परिलाभ नहीं दिए जा सकते थे। इसके बावजूद डूंगरपुर शिक्षा विभाग में तत्कालीन डीईओ बंशीलाल के कार्यकाल में कुछ अधिकारियों ने मिलीभगत कर नियुक्ति तिथि 1984-88 से ही वेतनमान सहित अन्य परिलाभ देकर शिक्षकों को लाभ दे दिया। जबकि इसी समय बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में 196 शिक्षकों की नियुक्तियां हुई थी, परंतु बांसवाड़ा और डूंगरपुर के शिक्षकों का उक्त परिलाभ शिक्षकों को 2008 में प्रशिक्षण प्राप्त होने के बाद दिया गया है। ऐसे में सवाल उठा कि एक ही समय में नियुक्ति पाने वाले शिक्षकों को दो जिलों में अलग-अलग वेतनमान कैसे मिला। बाद में शिक्षक संघ प्राथमिक और माध्यमिक की शिकायत पर जांच हुई। जांच में डूंगरपुर जिले में शिक्षकों को मिले वेतनमान और अन्य परिलाभ गलत तरीके से दिए गए थे। आखिर निदेशालय 31 अक्टूबर 2015 को वसूली के आदेश दिए। इसी आदेश पर प्रभावित शिक्षकों ने कोर्ट का सहारा लिया और कोर्ट ने 24 नवंबर 2015 को कोर्ट ने 31 दिसंबर 2015 के आदेश पर स्टे दे दिया। इसके बाद मामला कोर्ट में चलता रहा। करीब दो माह पहले 21 अगस्त 2017 को कोर्ट पूर्व के आदेश पर स्टे खारिज कर दिया। इसके साथ ही वसूली का आदेश बहाल हो गया।
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