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Tuesday 21 March 2017

मकान किराया 522 प्रतिमाह, उठाए 5216 रुपए, आरएएस मीणा एपीओ

अजमेर. अनुसूचित जाति जनजाति वित्त एवं विकास निगम लि. के अजमेर परियोजना प्रबंधक आरएएस अधिकारी राधेश्याम मीणा को लोहाखान स्थित आफिसर कैंपस में सरकारी बंगला तो आवंटित हुआ 522 रुपए प्रतिमाह में लेकिन इसके विपरीत मीणा ने सरकारी खजाने से हर माह उठा लिए 5216 रुपए। सरकारी खजाने में किराए की राशि भी समय पर और पूरी जमा नहीं करवाई गई।

इनके अलावा भी अन्य आरोपों को लेकर राज्य सरकार ने राधेश्याम मीणा को एपीओ कर दिया है। उन्हें कार्मिक विभाग के लिए कार्यमुक्त किया गया है। सरकार के आदेश पर इस पद का चार्ज भी अधिग्रहण कर लिया गया है। इसका काम अब समाज कल्याण विभाग के उप निदेशक संजय साबलानी देखेंगे। राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मीणा पर आहरण वितरण अधिकारी होते हुए गलत तरीके से सरकारी राशि उठा लेने समेत अन्य आरोप हैं।
अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक संभागीय आयुक्त ने अक्टूबर 2015 में मीणा को लोहाखान कैंपस में 6 टीए सरकारी बंगला आवंटित किया था। नियमों के तहत मीणा को हर माह 522 रुपए सरकारी खजाने में बंगले के किराए के रूप में जमा करवाने थे। लेकिन मीणा ने किराए का भुगतान तो समय पर नहीं किया उल्टा नियमों के परे जाते हुए 20 प्रतिशत एच आरए के हिसाब से हर माह सरकारी खजाने से 5216 रुपए प्रतिमाह उठा लिए।
बताते हैं कि किराया जमा कराने का ज्यादा तकाजा हुआ तो मीणा ने 522 रुपए महीने के हिसाब से चार माह का किराया जमा करा दिया। किराए के अलावा इनकम टैक्स समय पर जमा नहीं करवाने और कैशबुक पर समय पर दस्तखत नहीं करने समेत आफिस का टेलीफोन अपने घर पर लगा लेने का मामला राजस्थान अनुसूचित जाति जनजाति वित्त एवं विकास निगम लि. तक पहुंचा तो आला अधिकारियों के कान खड़े हो गए। इसी माह 6 मार्च को निगम के नेहरू सहकार भवन स्थित हेड आफिस से वित्तीय सलाहकार संतोष गुप्ता अजमेर पहुंचे। बताया जाता है कि किराया का मामला तो उनकी जानकारी में आया ही, कैशबुक पर भी डेढ़-दो साल से मीणा के दस्तखत ही नहीं थे। इस पर उनसे दस्तखत करवाए गए।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट निगम के एमडी बी एल जाटावत को सौंपी। मामले की गंभीरता को देखते हुए यह प्रकरण सामाजिक एवं अधिकारिता विभाग के अति. मुख्य सचिव अशोक कुमार जैन से होते हुए मंत्री अरूण चतुर्वेदी तक पहुंचा और फिर मुख्यमंत्री तक गया। सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए राधेश्याम मीणा काे तुरंत प्रभाव से एपीओ कर दिया। मीणा से चार्ज भी नहीं लिया गया बल्कि चार्ज अधिग्रहण कर लिया गया।

आम तौर पर सरकारी राशि उठाने के हर बिल जिला कोषाधिकारी के पास जाते है। वहां नियमों के तहत ही बिल पास किए जाते है। लेकिन अनुसूचित जाति जनजाति निगम लि. में सेल्फ ट्रेजरी होने के कारण बिल कोषालय में नहीं जाते। सेल्फ ट्रेजरी के आहरण वितरण अधिकारी भी खुद परियोजना प्रबंधक मीणा ही थे, इस वजह से बंगले का किराया भी वह 522 रुपए की जगह 20 प्रतिशत एच आरए के हिसाब से 5216 रुपए हर माह सरकारी खजाने से उठाते रहे। जबकि किराया तो जमा करवाना होता है।
इनका कहना है
मुझे एपीओ क्यूं किया गया यह तो सरकार जाने। सरकार के आदेशों की पालना करनी है। वैसे भी अजमेर में ज्यादा काम नहीं था। यह सही है कि अक्टूबर 2015 में सरकारी आवास आवंटित हो गया था। लेकिन मैंने कब्जा लिया तब से मकान किराया कटवाने लग गया। किराया बाकी होगा और एच आरए ज्यादा उठ गया तो राशि वापस जमा हो जाएगी।
-राधेश्याम मीणा, आरएएस

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