अमर उजाला, शिमला हिमाचल शिक्षा विभाग के तहत साल 2000 में नियुक्त हुए 1600 विद्या उपासक पेंशन पाने के हकदार बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार की रिव्यू पिटीशन को खारिज कर दिया है। राज्य सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जून 2015 में दिए गए फैसले पर मोहर लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने जोगा सिंह और अन्य द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए हिमाचल हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर वाली खंडपीठ के फैसले को सही ठहराया है।
सरकार की ओर से दी गई थी ये दलीलें
हिमाचल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जून 2015 में राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि विद्या उपासक योजना के तहत लगे अध्यापकों के नियमितीकरण तक की सेवा अवधि को पेंशन, सालाना वृद्धि और अन्य सेवा लाभों के लिए गिना जाए।
याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को विद्या उपासक योजना के तहत साल 2000 में विद्या उपासक नियुक्त किया था। उनकी सेवाओं को साल 2007 में नियमित किया था। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि चूंकि 2003 को और इसके बाद नियुक्त किए गए कर्मचारियों को पेंशन का लाभ नहीं दिया जाएगा।
उन्हें कंट्रीब्यूटरी पेंशन योजना (2006) के तहत लाभ दिया जाएगा। प्रार्थियों की सेवाओं को साल 2007 में नियमित किया गया, ऐसे में वह पेंशन के हकदार नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये फरमान, मिलेगी पेंशन
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि प्रार्थियों की नियुक्ति साल 2000 में ही निर्धारित चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी। ऐसे में इनकी नियुक्ति साल 2000 से ही मानी जाएगी।
अदालत ने पेंशन नियम 1972 को स्पष्ट करते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति उसी दिन से गिनी जाएगी, जिस दिन से उसने पद संभाला हो चाहे वह अस्थायी तौर पर ही क्यों न हों। यदि बीच के सेवा काल में कोई रुकावट न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी मोहर लगाते हुए विद्या उपासकों को बड़ी राहत दी है। उधर, राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा साल 2003 के बाद नियुक्त कर्मियों को भी पेंशन मिलनी चाहिए। संघ इस मामले को सरकार के साथ-साथ कोर्ट के समक्ष भी उठाएगा।
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सरकार की ओर से दी गई थी ये दलीलें
हिमाचल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जून 2015 में राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि विद्या उपासक योजना के तहत लगे अध्यापकों के नियमितीकरण तक की सेवा अवधि को पेंशन, सालाना वृद्धि और अन्य सेवा लाभों के लिए गिना जाए।
याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को विद्या उपासक योजना के तहत साल 2000 में विद्या उपासक नियुक्त किया था। उनकी सेवाओं को साल 2007 में नियमित किया था। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि चूंकि 2003 को और इसके बाद नियुक्त किए गए कर्मचारियों को पेंशन का लाभ नहीं दिया जाएगा।
उन्हें कंट्रीब्यूटरी पेंशन योजना (2006) के तहत लाभ दिया जाएगा। प्रार्थियों की सेवाओं को साल 2007 में नियमित किया गया, ऐसे में वह पेंशन के हकदार नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये फरमान, मिलेगी पेंशन
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि प्रार्थियों की नियुक्ति साल 2000 में ही निर्धारित चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी। ऐसे में इनकी नियुक्ति साल 2000 से ही मानी जाएगी।
अदालत ने पेंशन नियम 1972 को स्पष्ट करते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति उसी दिन से गिनी जाएगी, जिस दिन से उसने पद संभाला हो चाहे वह अस्थायी तौर पर ही क्यों न हों। यदि बीच के सेवा काल में कोई रुकावट न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी मोहर लगाते हुए विद्या उपासकों को बड़ी राहत दी है। उधर, राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा साल 2003 के बाद नियुक्त कर्मियों को भी पेंशन मिलनी चाहिए। संघ इस मामले को सरकार के साथ-साथ कोर्ट के समक्ष भी उठाएगा।
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