31 दिसम्बर 2008 से नई स्कीम लागू हो गई। इस तिथि के बाद योग्य शिक्षक नई स्कीम में आते, जिसके अनुसार कई शिक्षक पदोन्नति के लिए योग्य नहीं होते। - विवि ने इनकी पदोन्नति तिथि 19 मई 2001 से मनमाने तरीके से कुछ साल पीछे कर दी। - वर्ष में 2001 में सीएएस में पदोन्नति की नई स्कीम आई। इसके बाद राज्य सरकार द्वारा इसकी अधिसूचना जारी की गई, जिसके अनुसार प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में पदोन्नतियां नई स्कीम के तहत होंगी और इसको लागू करने की तिथि 19 मई 2001 तय की गई।
इसका अर्थ है कि इस आदेश के अनुसार, इस स्कीम के तहत जिन योग्य शिक्षकों को पदोन्नति दी जानी थीं, उनकी पदोन्नति 19 मई 2001 से पहले नहीं हो सकती थी। 1996 में असिस्टेंट प्रोफेसर, विवि ने 1998 में बनाया एसोसिएट प्रोफेसर वैसे तो करीब 14 शिक्षकों को गलत तरीके से पदोन्नति मिली है। इसका एक उदाहरण : एक शिक्षिका की जेएनवीयू में 7 अगस्त 1996 की नियुक्ति तिथि है। 2001 में पदोन्नति के लिए साक्षात्कार हुए। मामला कोर्ट में पहुंच गया। कोर्ट से मामले का निस्तारण होने के बाद विवि ने 19 अप्रेल 2007 को आदेश जारी कर उनको एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया। आदेश में कहा गया कि यह पदोन्नति 19 मई 2001 से लागू होगी। यूजीसी के नियमानुसार, प्रोफेसर पद पर पदोन्नति के लिए बतौर रीडर पद पर 8 साल का अनुभव आवश्यक है। यह शिक्षिका वर्ष 2009 में प्रोफेसर पद के लिए योग्य होती, लेकिन 31 दिसम्बर 2008 से नई स्कीम लागू हो गई। इस तिथि के बाद योग्य शिक्षक नई स्कीम में आते हैं। पुरानी स्कीम का फायदा लेने के लिए विवि ने शिक्षिका को एसोएिसट प्रोफेसर 27 जुलाई 1998 से मान लिया। इसके बाद उनको 2011 में पदोन्नत कर दिया गया। इसी तरह अन्य 13 शिक्षकों की रीडर पद पर पदोन्नत तिथि को विवि ने बदल दिया। बैकडेट में निकाला आदेश इन 14 शिक्षकों को एसोसिएट पद पर पदोन्नत तिथि बदलने के मामले में यूजीसी ने आपत्ति की और दस्तावेज पेश करने के लिए कहा। विवि ने बैकडेट में 30 दिसम्बर 2010 में जारी आदेश में बताया कि पहले जारी हुए सभी आदेश निरस्त किए जाते हैं, इन शिक्षकों की रीडर पद की नई पदोन्नत तिथि तय कर दी गई है। इस फर्जीवाड़े का खुलासा ऐसे हुआ कि इस तिथि का जो आदेश क्रमांक विवि ने अंकित किया, वह क्रमांक का आदेश पहले ही अन्य किसी मामले में जारी हो चुका था, यानी डिस्पैच रजिस्टर में फर्जीवाड़ा किया गया। फिलहाल उन्हीं शिक्षकों के फिक्सेशन के आदेश जारी किए गए हैं, जिनपर यूजीसी की किसी भी तरह की आपत्ति नहीं है। - गोविंद सिंह चारण, कुलसचिव, जेएनवीयू
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इसका अर्थ है कि इस आदेश के अनुसार, इस स्कीम के तहत जिन योग्य शिक्षकों को पदोन्नति दी जानी थीं, उनकी पदोन्नति 19 मई 2001 से पहले नहीं हो सकती थी। 1996 में असिस्टेंट प्रोफेसर, विवि ने 1998 में बनाया एसोसिएट प्रोफेसर वैसे तो करीब 14 शिक्षकों को गलत तरीके से पदोन्नति मिली है। इसका एक उदाहरण : एक शिक्षिका की जेएनवीयू में 7 अगस्त 1996 की नियुक्ति तिथि है। 2001 में पदोन्नति के लिए साक्षात्कार हुए। मामला कोर्ट में पहुंच गया। कोर्ट से मामले का निस्तारण होने के बाद विवि ने 19 अप्रेल 2007 को आदेश जारी कर उनको एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया। आदेश में कहा गया कि यह पदोन्नति 19 मई 2001 से लागू होगी। यूजीसी के नियमानुसार, प्रोफेसर पद पर पदोन्नति के लिए बतौर रीडर पद पर 8 साल का अनुभव आवश्यक है। यह शिक्षिका वर्ष 2009 में प्रोफेसर पद के लिए योग्य होती, लेकिन 31 दिसम्बर 2008 से नई स्कीम लागू हो गई। इस तिथि के बाद योग्य शिक्षक नई स्कीम में आते हैं। पुरानी स्कीम का फायदा लेने के लिए विवि ने शिक्षिका को एसोएिसट प्रोफेसर 27 जुलाई 1998 से मान लिया। इसके बाद उनको 2011 में पदोन्नत कर दिया गया। इसी तरह अन्य 13 शिक्षकों की रीडर पद पर पदोन्नत तिथि को विवि ने बदल दिया। बैकडेट में निकाला आदेश इन 14 शिक्षकों को एसोसिएट पद पर पदोन्नत तिथि बदलने के मामले में यूजीसी ने आपत्ति की और दस्तावेज पेश करने के लिए कहा। विवि ने बैकडेट में 30 दिसम्बर 2010 में जारी आदेश में बताया कि पहले जारी हुए सभी आदेश निरस्त किए जाते हैं, इन शिक्षकों की रीडर पद की नई पदोन्नत तिथि तय कर दी गई है। इस फर्जीवाड़े का खुलासा ऐसे हुआ कि इस तिथि का जो आदेश क्रमांक विवि ने अंकित किया, वह क्रमांक का आदेश पहले ही अन्य किसी मामले में जारी हो चुका था, यानी डिस्पैच रजिस्टर में फर्जीवाड़ा किया गया। फिलहाल उन्हीं शिक्षकों के फिक्सेशन के आदेश जारी किए गए हैं, जिनपर यूजीसी की किसी भी तरह की आपत्ति नहीं है। - गोविंद सिंह चारण, कुलसचिव, जेएनवीयू
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