अजमेर. प्रदेश में संस्कृत शिक्षा वेंटीलेटर पर है। 33 सरकारी संस्कृत कॉलेज
में महज 85 शिक्षक कार्यरत हैं। ये ही व्याख्याता, रीडर, प्रोफेसर और
प्राचार्य का कामकाज संभाले हुए हैं। कई कॉलेज में गिनती के लायक भी शिक्षक
नहीं है। संस्कृत कॉलेज में 13 साल से नई भर्ती का अता-पता नहीं है। सरकार
को बदहाल संस्कृत शिक्षा का भविष्य संवारने की फुर्सत नहीं है।
प्रदेश में अजमेर सहित कोटा, उदयपुर, नाथद्वारा, डूंगरपुर, बीकानेर, सीकर, जोधपुर, जयपुर सहित अन्य जिलों में सरकारी संस्कृत कॉलेज हैं। शुरुआत में यह कॉलेज स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन थे। पिछले चार साल से इन्हें उच्च शिक्षा विभाग के अधीन किया गया है। कॉलेज में 2000-01 तक शिक्षकों की स्थिति ठीक रही, लेकिन इसके बाद हालात बिगड़ते चले गए।
पहले यूं चलता था काम...
2004-05 से पहले तक संस्कृत शिक्षा के कॉलेज में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त थी। दरअसल सरकारी संस्कृत स्कूल के शिक्षकों को अनुभव और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के आधार पर कॉलेज में व्याख्याता बनाया जाता रहा था। 2005 में देश के सभी कॉलेज में यूजीसी नियम लागू होने के बाद यह सिलसिला बंद हो गया। पिछले 13 साल में तो संस्कृत कॉलेज के हालात बिल्कुल बिगड़ गए हैं।
पर्यावरण और कम्प्यूटर शिक्षा बदहाल
संस्कृत कॉलेज में अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास और अन्य विषयों के अलावा पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय भी संचालित है। प्रदेश के इक्का-दुक्का कॉलेज को छोडकऱ कहीं भी कम्प्यूटर और पर्यावरण विज्ञान विषय पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं है। कहीं हिंदी-अंग्रेजी तो कहीं वेद, व्यारकरण, वांग्मय के शिक्षकों को पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं।
नहीं हुई 2005 से नई भर्ती
अधिकृत सूत्रों की मानें तो संस्कृत शिक्षा कॉलेज में 2005 से नई भर्ती नहीं हुई। मौजूदा वक्त 33 संस्कृत कॉलेज में 85 शिक्षक कार्यरत हैं। ये शिक्षक ही प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर और प्राचार्य का पदभार संभाले हुए हैं। इन कॉलेज में करीब 6 हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। राजस्थान लोक सेवा आयोग और सरकार के स्तर पर विभागीय पदोन्नति भी नहीं हुई है।
निदेशक से ज्यादा प्राचार्य का वेतन!
यूजीसी वेतनमान लागू होने के बाद देश के सभी कॉलेज-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के वेतनमान बढ़ चुके हैं। संस्कृत शिक्षा निदेशालय में हालात उल्टे हैं। यहां निदेशक का वेतनमान संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य के वेतनमान से कम है। दोनों के वेतन में करीब 50 से 60 हजार रुपए का फर्क है।
ये है कॉलेज की परेशानियां...
-अजमेर सहित कई कॉलेज में नहीं हैं स्थाई प्राचार्य
-यूजीसी के नियमानुसार 1 प्रोफेसर, 2 रीडर और तीन लेक्चरर नहीं
-सभी कॉलेज में शिक्षकों के न्यूनतम 5 से 10 पद खाली
-मंत्रालयिक और सहायक कर्मचारियों के पद रिक्त
-डीपीसी नहीं होने से अटकी हैं पदोन्नतियां
प्रदेश में अजमेर सहित कोटा, उदयपुर, नाथद्वारा, डूंगरपुर, बीकानेर, सीकर, जोधपुर, जयपुर सहित अन्य जिलों में सरकारी संस्कृत कॉलेज हैं। शुरुआत में यह कॉलेज स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन थे। पिछले चार साल से इन्हें उच्च शिक्षा विभाग के अधीन किया गया है। कॉलेज में 2000-01 तक शिक्षकों की स्थिति ठीक रही, लेकिन इसके बाद हालात बिगड़ते चले गए।
पहले यूं चलता था काम...
2004-05 से पहले तक संस्कृत शिक्षा के कॉलेज में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त थी। दरअसल सरकारी संस्कृत स्कूल के शिक्षकों को अनुभव और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के आधार पर कॉलेज में व्याख्याता बनाया जाता रहा था। 2005 में देश के सभी कॉलेज में यूजीसी नियम लागू होने के बाद यह सिलसिला बंद हो गया। पिछले 13 साल में तो संस्कृत कॉलेज के हालात बिल्कुल बिगड़ गए हैं।
पर्यावरण और कम्प्यूटर शिक्षा बदहाल
संस्कृत कॉलेज में अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास और अन्य विषयों के अलावा पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय भी संचालित है। प्रदेश के इक्का-दुक्का कॉलेज को छोडकऱ कहीं भी कम्प्यूटर और पर्यावरण विज्ञान विषय पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं है। कहीं हिंदी-अंग्रेजी तो कहीं वेद, व्यारकरण, वांग्मय के शिक्षकों को पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं।
नहीं हुई 2005 से नई भर्ती
अधिकृत सूत्रों की मानें तो संस्कृत शिक्षा कॉलेज में 2005 से नई भर्ती नहीं हुई। मौजूदा वक्त 33 संस्कृत कॉलेज में 85 शिक्षक कार्यरत हैं। ये शिक्षक ही प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर और प्राचार्य का पदभार संभाले हुए हैं। इन कॉलेज में करीब 6 हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। राजस्थान लोक सेवा आयोग और सरकार के स्तर पर विभागीय पदोन्नति भी नहीं हुई है।
निदेशक से ज्यादा प्राचार्य का वेतन!
यूजीसी वेतनमान लागू होने के बाद देश के सभी कॉलेज-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के वेतनमान बढ़ चुके हैं। संस्कृत शिक्षा निदेशालय में हालात उल्टे हैं। यहां निदेशक का वेतनमान संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य के वेतनमान से कम है। दोनों के वेतन में करीब 50 से 60 हजार रुपए का फर्क है।
ये है कॉलेज की परेशानियां...
-अजमेर सहित कई कॉलेज में नहीं हैं स्थाई प्राचार्य
-यूजीसी के नियमानुसार 1 प्रोफेसर, 2 रीडर और तीन लेक्चरर नहीं
-सभी कॉलेज में शिक्षकों के न्यूनतम 5 से 10 पद खाली
-मंत्रालयिक और सहायक कर्मचारियों के पद रिक्त
-डीपीसी नहीं होने से अटकी हैं पदोन्नतियां
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