शिक्षा विभाग ने आखिरकार स्कूल बस्तों के वजन को कम करने के लिए कड़े कदम
उठाते हुए जिला शिक्षा अधिकारी को दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करने का
आदेश दिया है। जिला शिक्षा अधिकारी से कहा गया है कि बस्तों के वजन की
जांच के लिए निरीक्षकों की टीम बनाई जाए, जो सप्ताह में तीन बार स्कूलों का
निरीक्षण करे। बस्तों के वजन को लेकर स्कूलों ने नियमों का पालन किया है
या नहीं, इसकी जांच की जाए और पालन नहीं करने वाले स्कूलों को नोटिस जारी
किया जाए।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बस्तों का वजन कम करने के लिए मार्गदर्शिका जारी की थी। राज्य शिक्षा विभाग ने पहले सिर्फ इस मार्गदर्शिका का पालन करने की सूचना जारी कर दी थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मार्गदर्शिका से सूरत के विद्यार्थियों को राहत तो मिली थी, लेकिन मार्गदर्शिका के पालन को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे। राजस्थान पत्रिका ने इस मामले में अभियान चला कर बस्ते के वजन से विद्यार्थियों और अभिभावकों की परेशानी को उजागर किया। अभियान का असर यह हुआ कि अब शिक्षा विभाग ने बस्तों का वजन कम करने के लिए कड़े दिशा निर्देश जारी किए हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी को इन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करने का आदेश दिया गया है। इन नियमों का सरकारी, अनुदानित और सभी निजी स्कूलों को पालन करना होगा। जिला शिक्षा अधिकारी को निरीक्षण के बाद स्कूल की रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इसमें निरीक्षक और जांच की जानकारी देनी होगी। निरीक्षण के दौरान नजर आई खामियों का भी रिपोर्ट में उल्लेख करने का आदेश दिया गया है। उन खामियों पर की गई कार्रवाई की जानकारी शिक्षा विभाग को देनी होगी।
शिक्षा विभाग ने बनाए यह नियम
कक्षा 1 से 12 तक सभी कक्षाओं में सरकार से मान्य किताबें ही पढ़ाई जाएं। बगैर मान्यता वाली किताबों, स्वाध्याय पोथी, नक्शा पोथी, निबंध माला, चित्र पोथी और अन्य सामग्री पर रोक।
स्कूल का टाइम टेबल इस तरह तैयार किया जाए कि एक ही दिन विद्यार्थियों को सारी किताबें न लानी पड़ें।
बोम्बे प्राइमरी एक्ट के अनुसार कक्षा 1 और 2 के विद्यार्थियों को होम वर्क नहीं दिया जाए।
कक्षा कार्य और गृह कार्य की एक ही कॉपी रखी जाए।
कक्षा 3 से 5 के विद्यार्थियों को आधे घंटे और 6 से 8 के विद्यार्थियों को एक घंटे का ही होमवर्क दिया जाए।
प्राथमिक और माध्यमिक शाला में अन्य प्रकाशन की किताबों का उपयोग नहीं किया जाए।
निबंध लेखन के लिए अलग कॉपी नहीं हो। विषय की कॉपी में ही निबंध लेखन करवाया जाए।
पानी की बोतल का वजन कम करने के लिए स्कूल में स्वच्छ पानी की सुविधा का विकास किया जाए।
निरीक्षकों के लिए निर्देश
स्कूलों में निरीक्षण के लिए जाने वाले निरीक्षकों को बस्ते का वजन कम करने के बारे में सभी नियमों की जानकारी होनी चाहिए।
गैर मान्यता वाली किताबों पढ़ाने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई की जाए।
विद्यार्थियों की कॉपियों का निरीक्षण किया जाए, जिससे पता चले कि रोजाना कितना गृह कार्य दिया जा रहा है।
गृह कार्य शिक्षकों ने जांचा है या नहीं, इसका भी निरीक्षण किया जाए।
अतिरिक्त गृह कार्य देने और गृह कार्य की जांच नहीं करने पर शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
सप्ताह में तीन बार जिले की स्कूलों का निरीक्षण किया जाए।
निरीक्षण के बाद बस्तों के वजन को लेकर रिपोर्ट तैयार कर शिक्षा विभाग को सौंपी जाए।
बस्तों का वजन कम करने के लिए स्कूलों को निर्देश दिए जाएं। अमल नहीं होने पर स्कूलों को नोटिस दिया जाए।
राजस्थान पत्रिका के सभी मुद्दे दिशा निर्देशों में किए गए शामिल
राजस्थान पत्रिका ने 28 नवम्बर से भार विना नु भरणतर के साथ अभियान की शुरुआत की थी। इसमें अन्य प्रकाशनों की अतिरिक्त किताबों के कारण बस्तों का वजन बढऩे का मामला उठाया गया था। शिक्षा विभाग ने इसे महत्व दिया है और अन्य प्रकाशनों की किताबों पर रोक लगा दी है। अभियान के दूसरे भाग में 29 नवम्बर को राजस्थान पत्रिका ने परिपत्र के बारे में फरमान तो कई निकले, भारी बस्तों से बच्चों को नहीं मिल पाई राहत शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। इस पर भी नियम बनाया गया है। फरमान का पालन हो रहा है या नहीं, इसकी जांच के लिए निरीक्षकों को नियुक्त करने का आदेश दिया गया है। अभियान के तीसरे भाग में 30 नवम्बर को राजस्थान पत्रिका ने बच्चों की राय जानने का प्रयास किया। बच्चों ने बताया कि अतिरिक्त वजन से शरीर-दिमाग के साथ उनके दिल पर भी बोझ बढ़ा है। इस पर नियम बनाते हुए शिक्षा विभाग ने बगैर मान्यता वाली किताबों पर रोक लगा दी है और बस्तों का वजन बच्चों के वजन से अधिक नहीं होने का आदेश दिया है। अभियान के चौथे भाग में 1 दिसम्बर को राजस्थान पत्रिका ने डीइओ की ओर से मात्र परिपत्र जारी करने की रस्म निभाने पर खबर प्रकाशित की। इस पर शिक्षा विभाग ने स्पष्ट नियम बनाया है कि जिला शिक्षा अधिकारी को सप्ताह में तीन दिन जिले की स्कूलों का निरीक्षण करना होगा और रिपोर्ट तैयार करनी होगी। अभियान के पांचवे भाग में 2 दिसम्बर को बच्चों ने बताया था कि पढ़ाई कम, तकलीफें ज्यादा हैं। गृह और कक्षा कार्य की अलग-अलग किताबें हंै। नक्शा पोथी, चित्रपोथी, स्वाध्याय पोथी जैसी अतिरिक्त किताबें रोजाना साथ ले जानी पड़ती हैं। स्कूल का टाइम टेबल व्यवस्थित नहीं है। स्कूल में पानी की उचित व्यवस्था नहीं होने से बोतल ले जानी पड़ती है। बच्चों की इन बातों को ध्यान में रख कर शिक्षा विभाग ने इनके बारे में स्कूलों को उचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बस्तों का वजन कम करने के लिए मार्गदर्शिका जारी की थी। राज्य शिक्षा विभाग ने पहले सिर्फ इस मार्गदर्शिका का पालन करने की सूचना जारी कर दी थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मार्गदर्शिका से सूरत के विद्यार्थियों को राहत तो मिली थी, लेकिन मार्गदर्शिका के पालन को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे। राजस्थान पत्रिका ने इस मामले में अभियान चला कर बस्ते के वजन से विद्यार्थियों और अभिभावकों की परेशानी को उजागर किया। अभियान का असर यह हुआ कि अब शिक्षा विभाग ने बस्तों का वजन कम करने के लिए कड़े दिशा निर्देश जारी किए हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी को इन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करने का आदेश दिया गया है। इन नियमों का सरकारी, अनुदानित और सभी निजी स्कूलों को पालन करना होगा। जिला शिक्षा अधिकारी को निरीक्षण के बाद स्कूल की रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इसमें निरीक्षक और जांच की जानकारी देनी होगी। निरीक्षण के दौरान नजर आई खामियों का भी रिपोर्ट में उल्लेख करने का आदेश दिया गया है। उन खामियों पर की गई कार्रवाई की जानकारी शिक्षा विभाग को देनी होगी।
शिक्षा विभाग ने बनाए यह नियम
कक्षा 1 से 12 तक सभी कक्षाओं में सरकार से मान्य किताबें ही पढ़ाई जाएं। बगैर मान्यता वाली किताबों, स्वाध्याय पोथी, नक्शा पोथी, निबंध माला, चित्र पोथी और अन्य सामग्री पर रोक।
स्कूल का टाइम टेबल इस तरह तैयार किया जाए कि एक ही दिन विद्यार्थियों को सारी किताबें न लानी पड़ें।
बोम्बे प्राइमरी एक्ट के अनुसार कक्षा 1 और 2 के विद्यार्थियों को होम वर्क नहीं दिया जाए।
कक्षा कार्य और गृह कार्य की एक ही कॉपी रखी जाए।
कक्षा 3 से 5 के विद्यार्थियों को आधे घंटे और 6 से 8 के विद्यार्थियों को एक घंटे का ही होमवर्क दिया जाए।
प्राथमिक और माध्यमिक शाला में अन्य प्रकाशन की किताबों का उपयोग नहीं किया जाए।
निबंध लेखन के लिए अलग कॉपी नहीं हो। विषय की कॉपी में ही निबंध लेखन करवाया जाए।
पानी की बोतल का वजन कम करने के लिए स्कूल में स्वच्छ पानी की सुविधा का विकास किया जाए।
निरीक्षकों के लिए निर्देश
स्कूलों में निरीक्षण के लिए जाने वाले निरीक्षकों को बस्ते का वजन कम करने के बारे में सभी नियमों की जानकारी होनी चाहिए।
गैर मान्यता वाली किताबों पढ़ाने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई की जाए।
विद्यार्थियों की कॉपियों का निरीक्षण किया जाए, जिससे पता चले कि रोजाना कितना गृह कार्य दिया जा रहा है।
गृह कार्य शिक्षकों ने जांचा है या नहीं, इसका भी निरीक्षण किया जाए।
अतिरिक्त गृह कार्य देने और गृह कार्य की जांच नहीं करने पर शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
सप्ताह में तीन बार जिले की स्कूलों का निरीक्षण किया जाए।
निरीक्षण के बाद बस्तों के वजन को लेकर रिपोर्ट तैयार कर शिक्षा विभाग को सौंपी जाए।
बस्तों का वजन कम करने के लिए स्कूलों को निर्देश दिए जाएं। अमल नहीं होने पर स्कूलों को नोटिस दिया जाए।
राजस्थान पत्रिका के सभी मुद्दे दिशा निर्देशों में किए गए शामिल
राजस्थान पत्रिका ने 28 नवम्बर से भार विना नु भरणतर के साथ अभियान की शुरुआत की थी। इसमें अन्य प्रकाशनों की अतिरिक्त किताबों के कारण बस्तों का वजन बढऩे का मामला उठाया गया था। शिक्षा विभाग ने इसे महत्व दिया है और अन्य प्रकाशनों की किताबों पर रोक लगा दी है। अभियान के दूसरे भाग में 29 नवम्बर को राजस्थान पत्रिका ने परिपत्र के बारे में फरमान तो कई निकले, भारी बस्तों से बच्चों को नहीं मिल पाई राहत शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। इस पर भी नियम बनाया गया है। फरमान का पालन हो रहा है या नहीं, इसकी जांच के लिए निरीक्षकों को नियुक्त करने का आदेश दिया गया है। अभियान के तीसरे भाग में 30 नवम्बर को राजस्थान पत्रिका ने बच्चों की राय जानने का प्रयास किया। बच्चों ने बताया कि अतिरिक्त वजन से शरीर-दिमाग के साथ उनके दिल पर भी बोझ बढ़ा है। इस पर नियम बनाते हुए शिक्षा विभाग ने बगैर मान्यता वाली किताबों पर रोक लगा दी है और बस्तों का वजन बच्चों के वजन से अधिक नहीं होने का आदेश दिया है। अभियान के चौथे भाग में 1 दिसम्बर को राजस्थान पत्रिका ने डीइओ की ओर से मात्र परिपत्र जारी करने की रस्म निभाने पर खबर प्रकाशित की। इस पर शिक्षा विभाग ने स्पष्ट नियम बनाया है कि जिला शिक्षा अधिकारी को सप्ताह में तीन दिन जिले की स्कूलों का निरीक्षण करना होगा और रिपोर्ट तैयार करनी होगी। अभियान के पांचवे भाग में 2 दिसम्बर को बच्चों ने बताया था कि पढ़ाई कम, तकलीफें ज्यादा हैं। गृह और कक्षा कार्य की अलग-अलग किताबें हंै। नक्शा पोथी, चित्रपोथी, स्वाध्याय पोथी जैसी अतिरिक्त किताबें रोजाना साथ ले जानी पड़ती हैं। स्कूल का टाइम टेबल व्यवस्थित नहीं है। स्कूल में पानी की उचित व्यवस्था नहीं होने से बोतल ले जानी पड़ती है। बच्चों की इन बातों को ध्यान में रख कर शिक्षा विभाग ने इनके बारे में स्कूलों को उचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं।
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