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प्रतिबंधित जिलों में 20 साल से और तृतीय श्रेणी शिक्षकों के 8 साल से तबादले नहीं

प्रतिबंधित जिलों के शिक्षकों के तबादलों पर 20 साल से और तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादलों पर 8 साल से प्रतिबंध लगा है। इस कारण ना तो शिक्षक खुश हैं और ना ही इन शिक्षकों से जुड़े परिजन और भाजपा के कार्यकर्ता। भाजपा संगठन की बैठक में भी कई बार इस संबंध में मुद्दा उठ चुका है।
इसको देखते हुए सरकार दस माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह नाराजगी दूर करने के प्रयास में जुट गई है। शिक्षा राज्यमंत्री कार्यालय की तरफ से दो दिन पहले निकाला गया आदेश भी उसी की एक कड़ी है। सरकार के आठ लाख कर्मचारियों में से करीब 4 लाख कर्मचारी तो अकेले शिक्षा विभाग के पास है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस एक आदेश के पीछे कर्मचारियों के इस बड़े वर्ग को खुश करने की मंशा है। विभाग में लागू की गई काउंसलिंग प्रक्रिया से घटे जनप्रतिनिधियों के महत्व को वापस लौटाने के प्रयास के रूप में भी इसे देखा जा रहा है।

विधायकों के पास तो पहले से ही तबादले के लिए डिजायर लिखने का अधिकार है। जबकि पार्टी के जिलाध्यक्षों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं था। अगर वे लिख भी देते थे तो उसको तवज्जो नहीं दी जाती। इसलिए इस बार तबादलों से सीधे सीधे जिलाध्यक्षों, पार्टी पदाधिकारियों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जोड़ा गया है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए परीक्षाओं के बाद मई-जून में इस बार तबादले खोले जा सकते हैं। विधायक, पार्टी के जिलाध्यक्षों और कार्यकर्ताओं से प्रस्ताव मांगने के पीछे बड़ा कारण माना जा रहा है कि तबादले खोलने से पहले तबादला सूचियां तैयार करने की कवायद पूरी कर ली जाए।

ताकि प्रतिबंध हटते ही तबादला सूचियां जारी करने का काम शुरू कर दिया जाए। मंत्री के इस आदेश से भाजपा के जिलाध्यक्ष और पदाधिकारी खुश है। उनका कहना है कि इससे कार्यकर्ता संगठन को मजबूत करने की दिशा में अधिक उत्साह से काम करेगा।

दो बड़े कारणों से जनप्रतिनिधिओं और शिक्षकों में पनपी नाराजगी

पहला कारण

काउंसलिंग से पदस्थापन से घटा जनप्रतिनिधियों का महत्व - शिक्षा विभाग में किसी भर्ती में चयन के बाद नवीन पदस्थापन हो या पदोन्नति के बाद पदस्थापन। इस मामले को पूरी तरह से पारदर्शी बना दिया गया है। काउंसलिंग के जरिए पोस्टिंग दी जाती है। इसमें अभ्यर्थी खुद उस स्थान का चयन करता है, जहां वह लगना चाहता है। इससे अब पार्टी के विधायक व अन्य जनप्रतिनिधियों और संगठन के पदाधिकारियों के पास पदस्थापन की डिजायर लिखवाने कोई नहीं जाता।

दूसरा कारण

पीपीपी मोड को भी रोक चुकी है सरकार 300 सरकारी स्कूलों को पीपीपी मोड पर देने का भाजपा के जनप्रतिनिधि और शिक्षक विरोध कर रहे थे। उनके विरोध को देखते हुए सरकार पीपीपी मोड को ठंडे बस्ते में डाल चुकी है। तीन मंत्रियों की कमेटी अब इस पर निर्णय करेगी।

तबादलों पर कब से है प्रतिबंध

प्रदेश के 10 प्रतिबंधित जिलों में 1998 में आखरी बार तबादले खोले गए थे। पिछले 20 साल से यहां काम कर रहे शिक्षक तबादले खुलने का इंतजार कर रहे हैं।

तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले 2010 के बाद से आज तक नहीं हुए। अलग अलग जिलों में काम कर रहे तृतीय श्रेणी के शिक्षक 8 साल से तबादले खुलने और गृह जिले में आने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि पिछले दिनों विशेष श्रेणी के कुछ शिक्षकों के तबादले किए गए थे। लेकिन आम शिक्षक आज भी इंतजार कर रहा है। सेकंड ग्रेड शिक्षक, व्याख्याता और प्रिंसिपलों के तबादलों पर मई-जून 2015 में प्रतिबंध हटा था। इसके बाद से यहां भी प्रतिबंध लगा है।

संगठन के कार्यकर्ताओं के तबादले नहीं हो पा रहे थे। इसलिए तबादलों के काम से संगठन को जोड़ा गया है। इससे नीचे तक के कार्यकर्ताओं की तबादला संबंधी समस्या का निराकरण हो सकेगा और संगठन को मजबूती मिलेगी। - संजय जैन, जिलाध्यक्ष, जयपुर शहर भाजपा

दिनरात पार्टी को मजबूती देने में लगे कार्यकर्ता के परिजनों की अगर घर से दूर है और वे घर के नजदीक आते हैं तो कार्यकर्ता अधिक उत्साह से काम करेगा। पार्टी को मजबूती प्रदान करने की दिशा में यह अच्छा कदम साबित होगा। - डीडी कुमावत, जिलाध्यक्ष, जयपुर देहात, भाजपा

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