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Thursday 23 November 2017

PhD करना अब नहीं है आसान, बदल गया है तरीका

करीब ढाई महीने पहले तीन सितंबर को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च-शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले डॉ़ सत्यपाल सिंह का कहना है कि विभाग के सामने कई चुनौतियां हैं।
लेकिन हमारी कोशिश है कि उनका तत्काल ऐसा समाधान ढूंढा जाएगा। जिसके बाद उच्च-शिक्षा की पहुंच देश के निचले पायदान पर मौजूद जरूरतमंद तबके तक आसानी से हो सकेगी।

लेकिन यह भी सही है कि शासन निवेदन से नहीं चल सकता। दंड से ही प्रजा पर शासन किया जा सकता है। मैं तेजी से काम करने वाला व्यक्ति हूं। विभाग मैं भी मेरी यही गति रहेगी। डॉ़ सिंह ने जोर देकर कहा कि अब देश में कॉपी-पेस्ट करके पीएचडी की डिग्री नहीं ली जा सकेगी। इसके लिए यूजीसी ने एक सॉफ्टफेयर विकसित किया है। यहां हरिभूमि संवाददाता कविता जोशी को दिए विशेष साक्षात्कार में डॉ़ सिंह ने देश की उच्च-शिक्षा से जुड़े कई अन्य प्रश्नों के भी बेबाक जवाब दिए। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।

देश में कॉपी-पेस्ट के जरिए पीएचडी करने के मामले को लेकर विभाग ने क्या कदम उठाया है? 

यह एक बेहद गंभीर समस्या है, जिसके बारे में मंत्रालय को पूरी जानकारी है। कॉपी-पेस्ट के जरिए की जाने वाली पीएचडी से जुड़े मामलों की पड़ताल करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इससे ऐसी किसी भी गड़बड़ी को आसानी से पकड़ा जा सकता है। कॉपी-पेस्ट की पद्वति की वजह से कई लोग न केवल अस्सिटेंट प्रोफेसर बन गए। बल्कि कई प्रोफेसर भी बन चुके हैं।
हमारे देश में यह सब इतना आसान हो गया है कि लोग यह समझने लगे हैं कि पीएचडी केवल डिग्री लेने के लिए की जाती है। जबकि सही मायने में पीएचडी का अर्थ किसी व्यक्ति के द्वारा समाज या देश को किया जाने वाला योगदान होता है। यूजीसी के इस सॉफ्टवेयर के जरिए मुझे यह उम्मीद है कि देश में जारी इस चलन में जरूर बदलाव आएगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति कब तक देश के सामने होगी?

अगले महीने दिसंबर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर एचआरडी मंत्रालय द्वारा डॉ़ कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित की गई समिति द्वारा की जाने वाली सिफारिशें मंत्रालय को सौंपी जाएंगी। इसके बाद मंत्रालय में इनपर विचार-विमर्श किया जाएगा। इसमें सभी भागीदारों को शामिल किया जाएगा। इस प्रक्रिया के खत्म होने के बाद मुझे उम्मीद है कि अगले वर्ष 2018 के मध्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश के सामने आ सकती है।
अभी एनईपी को लेकर विभाग में बातचीत का दौर चल रहा है। व्यापक स्तर पर देखें तो नीति को लेकर कुल दो लाख लोगों ने अपने सुझाव दिए हैं। बीते मंगलवार को भी मैंने करीब 25 शिक्षाविदों के साथ एक व्यापक बैठक की और सभी के सुझाव लिए हैं। यह सिलसिला आगे भी चलेगा। 

उच्च-शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को कैसे दूर किया जाएगा?

आंकड़ों के हिसाब से उच्च-शिक्षण संस्थानों में 40 फीसदी फैकेल्टी की कमी है। मंत्रालय इस समस्या के तत्काल हल पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस संदर्भ में हमने कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाएं हैं, जिससे संस्थान और छात्रों दोनों को लाभ होगा। इसके अलावा एचआरडी मंत्रालय अकेडमिक परफॉरमेंस इंडीकेटर (एपीआई) को बदलने पर भी विचार कर रहा है। इसके लिए एपीआई की समीक्षा भी की जा सकती है।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर आईआईटी सरीखे संस्थानों में खाली पड़े शिक्षकों के पदों को भरने के लिए एक नई प्रक्रिया अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है। इसमें बिना डिग्री के केवल विषय की समझ रखने वाले व्यक्तियों को शिक्षक के तौर पर भर्ती किए जाने पर भी चर्चा जारी है। इन सबके बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। ऐसा नहीं है कि केवल पीएचडी करने वाला ही अच्छा शिक्षक हो सकता है।
अनौपचारिक तंत्र से आने वाला व्यक्ति भी अच्छा शिक्षक हो सकता है। इंडस्ट्री का व्यक्ति भी आकर शिक्षक के तौर पर पढ़ा सकता है। इन तमाम बिंदुओं पर चिंतन चल रहा है। धीरे-धीरे इनपर आगे बढ़ा जाएगा। आज शिक्षक तैयार करने वाले प्रशिक्षण संस्थानों की हालत भी देश में बहुत अच्छी नहीं है। इसके लिए मंत्रालय द्वारा इनकी समीक्षा की जा रही है। शिक्षकों की शिक्षण गुणवत्ता में सुधार करने के लिए एचआरडी ने स्वयंप्रभा चैनल, मूक्स प्लेटफॉर्म, ज्ञान योजना की शुरूआत की है।

यूजीसी-एआईसीटीई के अधिकार, भूमिका तय करने वाला विधेयक कब तक आएगा? 

सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि हमारे नियामक प्राधिकरण अच्छा काम नहीं कर रहे हैं। इसपर सरकार दोबारा विचार करे। इसे देखते हुए मंत्रालय इस मामले पर विचार कर रहा है। अगर कुछ बड़ा बदलाव लाना है तो बिल तो लाना ही पड़ेगा। क्योंकि यूजीसी, एआईसीटीई कानून के तहत बनाई गई संस्थाएं हैं। इन्हें समाप्त करने या फिर इनमें कोई बदलाव करने से पहले बिल तो लाना ही होगा।
लेकिन इससे पहले ठोस विचार-विमर्श करना बेहद जरूरी है। अभी मंत्रालय में इस बाबत मंत्रणा का दौर चल रहा है। लेकिन दूसरी ओर इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि दोनों संस्थाओं के बीच कई विषयों में दोहराव हो रहा है। जैसे फॉर्मास्युटिकल कोर्स को मंजूरी देने के मामले से लेकर एक्रीडेशन तक में गड़बड़ है। इसके लिए क्या एक  एजेंसी बनाई जा सकती है? जो नियामक प्राधिकरण की शत-प्रतिशत भूमिका अदा करेगी।
इस पर भी चर्चा चल रही है। अभी मंत्रालय ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) बनाई है। यह बिलकुल साफ है कि यह एजेंसी सिविल सेवाओं से जुड़ी हुई प्रवेश परीक्षा नहीं कराएगी। इसका काम केवल एमबीबीएस, आईआईटी-जेईई जैसी प्रवेश परीक्षाएं कराने का ही होगा। वर्ष 2018 से एनटीए पहली बार देश में प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराएगी।     

इंप्रिट को लेकर समाज को फायदा पहुंचाने वाला कोई बड़ा शोध आईआईटी ने किया है? 

इसकी जानकारी इंप्रिंट की जल्द होने वाली समीक्षा के बाद ही पता लगेगी। लेकिन किसी भी शोध में परिणाम लाने के लिए पहले माहौल बनाना पड़ता है, जिसकी शुरूआत हमने कर दी है। देश में शोध को लेकर माहौल बन रहा है। माहौल की कमी की वजह से ही हमारे बच्चे देश के बजाय अमेरिका में जाकर शोध करना पसंद कर रहे थे। लेकिन इसे बदलने के लिए हम माहौल बना रहे हैं, प्रयोगशालाएं दे रहे हैं और वह तमाम सुविधाएं दे रहे हैं, जिनकी छात्रों को आवश्यकता है। इसके बाद मुझे उम्मीद है कि निश्चित तौर पर हमारे सामने सकारात्मक परिणाम जरूर आएंगे। 

उच्च-शिक्षा विभाग के मंत्री होने के नाते आपने क्या लक्ष्य तय किए हैं?

शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं। इसमें कुछ बिंदुओं पर हम मुख्यतौर पर ध्यान दे रहे हैं। इसमें सबसे पहले हम देखेंगे कि उच्च-शिक्षा का स्तर कैसे अच्छा करें, इसकी पहुंच कैसे बढ़ाएं? अभी देश में उच्च शिक्षा की पहुंच केवल साढ़े चौबीस प्रतिशत बच्चों तक ही है। इसके बाद बचे हुए बच्चों को उच्च-शिक्षा देने के लिए हमारे पास संसाधनों की कमी है। हमारे शोध का स्तर खराब है। जो पीएचडी हम करते हैं।
उससे दुनिया में हमारा योगदान बेहद कम बना हुआ है। शोध-अनुसंधान के मामले में भी भारत पीछे है। उच्च-शिक्षा काफी महंगी है। गरीब का बच्चा मेडिकल, इंजीनियरिंग या आईआईटी की पढ़ाई नहीं कर सकता है। शिक्षकों की काफी कमी हैं। जवाबदेही की सबसे बड़ी समस्या है। इसके अलावा एक अन्य क्षेत्र है जिसपर काम किया जाना चाहिए। वह है फ्रंटीयर तकनीक। इसमें तेल, गैस, न्यूलियर व एटॉमिक एनर्जी की फील्ड शामिल हैं, जिसमें भी हम बहुत पीछे हैं। रोजगार की समस्या भी है। इन सभी क्षेत्रों में काफी काम करने की जरूरत है। हम काम कर भी रहे हैं। मंत्रालय ने स्थितियों को बदलने के लिए कवायद शुरू की है।

पुष्पक विमान को लेकर दिया गया आपका बयान शिक्षा में रूढ़िवाद को बढ़ावा नहीं देता है? 

मेरा कहना सिर्फ इतना है कि भारत सरकार के इंडियन इंस्ट्टीट्यूट ऑफ साइंस बैंग्लुरु (आईआईएससी) ने एक किताब छापी है। ‘एयरक्राफ्टस इन एनसिएंट इंडिया’। इसमें प्राचीन भारत में बनाए गए कई विमानों के बारे में बताया गया है। मैंने कहा कि उनसे भी सीखना चाहिए। हमें हमारे बच्चों को यह भी पढ़ाना चाहिए कि जब राइटस बदर्स ने विदेश में पहली बार विमान उड़ाया।
तो उससे 8 साल पहले मुंबई के चौपाटी पर भी किसी ने विमान उड़ाने की कोशिश की थी। इसमें मैंने कहीं भी पुराण, पुराण-संग्रह के बारे में चर्चा नहीं की थी। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं कभी भी कोई गलत बात नहीं कहता। जो भी कहता हूं। वह पूरी जिम्मेदारी और तथ्यों के आधार पर करता हूं।

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