विद्यालय योजना निर्माण से पूर्व संस्था प्रधान द्वारा की जाने वाली तैयारी-
शिक्षालय केंद्र बिंदु है जहा अधिगम प्रथम लक्ष्य , शिक्षार्थी केंद्र बिंदु , शिक्षक सर्वाधिक उपयोगी संसाधन व वातावरण सर्वोच्च सहायक है। सैद्धांतिक रूप से " विद्यालय योजना" एक अभिलेख है एवम इसका प्रारूप सर्वत्र समान होता है लेकिन विभिन्नता के कारण प्रत्येक विद्यालय की योजना अलग होती है।
एक संस्था प्रधान को विद्यालय योजना के निर्माण से पूर्व विद्यालय, स्थानीय समुदाय, परिस्तिथियों एवम संसाधनों का विहंगम अवलोकन कर निम्नानुसार जानकारी एकत्र कर लेनी चाहिए-
1. क्षेत्रवार समस्याओ की सूचि बनाये यथा- शैक्षिक, सहशैक्षिक, भौतिक, वातावरण, विभागीय कार्यक्रम व अन्य क्षेत्र।
2. क्षेत्रवार समस्या सूचि तैयार होने पर " उन्नयन बिन्दुओ " का निर्धारण।
क्षेत्रवार समस्याएं व उन्नयन बिंदु प्रतिवर्ष परिवर्तित हो सकते है।
3. प्राथमिकता का निर्धारण, संस्था प्रधान संस्था की स्तिथि के अनुसार प्राथमिकता का चयन करने हेतु स्वतंत्र है, लेकिन प्राथमिकता चयन के समय यह ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि हमारा प्राथमिक उद्देश्य परीक्षा परिणाम व शैक्षणिक स्तर में गुणात्मक अभिवर्धि है अतः ऐसी प्रवतियो का चयन प्राथमिकता से करे जिनका इनसे सीधा सम्बन्ध हो तथा जो विद्यार्थी अधिगम को सहज विकास प्रदान करे। इस हेतु तत्कालीन समय में संचालित होने वाले विभागीय कार्यक्रमों व शिक्षा दर्शन को प्रथमिकता प्रदान करे।
4. प्राथमिकता चयन के पश्चात प्रत्येक प्राथमिकता हेतु लक्ष्य निर्धारण किया जाता हैं। लक्ष्य के दो पक्ष होते है- कार्यपूर्ती पक्ष व समय सीमा पक्ष।इन दोनों पक्षों का उचित समावेश आवश्यक हैं। एक संस्था प्रधान को सर्वप्रथम कार्यपूर्ती पक्ष की विभागीय व मानक अपेक्षाएं ज्ञात रहनी चाहिए। मानक अपेक्षाओं को हम आवश्यकता के रूप में भी समझ सकते हैं। इन मानक अपेक्षाओं Pको हमें लिखित रूप प्रदान कर देना चाहिए।
इसके पश्चात हमें मानक अपेक्षाओं की तुलना उपलब्ध संसाधनों से करनी है एवम कमियो या आवश्यकताओं के क्रम में प्राथमिकता चयन व निर्धारण करना हैं। इस निर्धारण कार्य हेतु हमें विभिन्न शीर्षकानुसार सुचियो का निर्माण करना होता हैं। इन सुचियो में आवश्यक व उपलब्ध संसाधनों को दर्शाना हैं।
लक्ष्य निर्धारण वास्तविकता के धरातल पर रहते हुए करना चाहिए अन्यथा नैराश्य भाव प्राप्त हो सकता है। प्रत्येक उन्नयन बिंदु हेतु प्रभारी नियुक्ति भी रूचि, योग्यता व समर्पण आधार पर की जानी चाहिए।
शिक्षालय केंद्र बिंदु है जहा अधिगम प्रथम लक्ष्य , शिक्षार्थी केंद्र बिंदु , शिक्षक सर्वाधिक उपयोगी संसाधन व वातावरण सर्वोच्च सहायक है। सैद्धांतिक रूप से " विद्यालय योजना" एक अभिलेख है एवम इसका प्रारूप सर्वत्र समान होता है लेकिन विभिन्नता के कारण प्रत्येक विद्यालय की योजना अलग होती है।
एक संस्था प्रधान को विद्यालय योजना के निर्माण से पूर्व विद्यालय, स्थानीय समुदाय, परिस्तिथियों एवम संसाधनों का विहंगम अवलोकन कर निम्नानुसार जानकारी एकत्र कर लेनी चाहिए-
1. क्षेत्रवार समस्याओ की सूचि बनाये यथा- शैक्षिक, सहशैक्षिक, भौतिक, वातावरण, विभागीय कार्यक्रम व अन्य क्षेत्र।
2. क्षेत्रवार समस्या सूचि तैयार होने पर " उन्नयन बिन्दुओ " का निर्धारण।
क्षेत्रवार समस्याएं व उन्नयन बिंदु प्रतिवर्ष परिवर्तित हो सकते है।
3. प्राथमिकता का निर्धारण, संस्था प्रधान संस्था की स्तिथि के अनुसार प्राथमिकता का चयन करने हेतु स्वतंत्र है, लेकिन प्राथमिकता चयन के समय यह ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि हमारा प्राथमिक उद्देश्य परीक्षा परिणाम व शैक्षणिक स्तर में गुणात्मक अभिवर्धि है अतः ऐसी प्रवतियो का चयन प्राथमिकता से करे जिनका इनसे सीधा सम्बन्ध हो तथा जो विद्यार्थी अधिगम को सहज विकास प्रदान करे। इस हेतु तत्कालीन समय में संचालित होने वाले विभागीय कार्यक्रमों व शिक्षा दर्शन को प्रथमिकता प्रदान करे।
4. प्राथमिकता चयन के पश्चात प्रत्येक प्राथमिकता हेतु लक्ष्य निर्धारण किया जाता हैं। लक्ष्य के दो पक्ष होते है- कार्यपूर्ती पक्ष व समय सीमा पक्ष।इन दोनों पक्षों का उचित समावेश आवश्यक हैं। एक संस्था प्रधान को सर्वप्रथम कार्यपूर्ती पक्ष की विभागीय व मानक अपेक्षाएं ज्ञात रहनी चाहिए। मानक अपेक्षाओं को हम आवश्यकता के रूप में भी समझ सकते हैं। इन मानक अपेक्षाओं Pको हमें लिखित रूप प्रदान कर देना चाहिए।
इसके पश्चात हमें मानक अपेक्षाओं की तुलना उपलब्ध संसाधनों से करनी है एवम कमियो या आवश्यकताओं के क्रम में प्राथमिकता चयन व निर्धारण करना हैं। इस निर्धारण कार्य हेतु हमें विभिन्न शीर्षकानुसार सुचियो का निर्माण करना होता हैं। इन सुचियो में आवश्यक व उपलब्ध संसाधनों को दर्शाना हैं।
लक्ष्य निर्धारण वास्तविकता के धरातल पर रहते हुए करना चाहिए अन्यथा नैराश्य भाव प्राप्त हो सकता है। प्रत्येक उन्नयन बिंदु हेतु प्रभारी नियुक्ति भी रूचि, योग्यता व समर्पण आधार पर की जानी चाहिए।
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