अजमेर। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की उत्तरपुस्तिकाओं में सुरक्षा की दृष्टि से बार कोडिंग व्यवस्था परेशानी का सबब बन गई है। अगले वर्ष से सभी विषयों की उत्तरपुस्तिकाओं में बार-कोडिंग लागू करने की घोषणा करने वाले बोर्ड का अनुभव इस बारे में अच्छा नहीं रहा है।
बार कोडिंग की वजह से दसवीं के परिणाम में हुई अनावश्यक देरी को देखते हुए अब व्यवस्था लागू करने पर पुनर्विचार किया जा रहा है।
परीक्षकों और विद्यालय संचालकों के बीच सांठ-गांठ की आशंका को देखते हुए बोर्ड ने इस साल दसवीं के अंग्रेजी विषय की उत्तरपुस्तिकाओं में सुरक्षा की दृष्टि से बार कोडिंग का प्रयोग किया था। इस व्यवस्था के तहत परीक्षक को जांचने के लिए भेजने वाली कॉपी में रोल नंबर की जगह बार कोडिंग की गई थी।
अटक गया था दसवीं का परिणाम
बोर्ड की बार कोडिंग की व्यवस्था केवल दसवीं के अंग्रेजी विषय की लगभग 12 लाख उत्तरपुस्तिकाओं में लागू हुई थी। जबकि सभी विषयो की उत्तरपुस्तिकाओं की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है।
सुरक्षा की दृष्टि से बोर्ड की नजर में यह प्रयोग सफल तो रहा लेकिन तकनीकी रूप से बार कोडिंग से रोल नंबर पहचानने की धीमी प्रक्रिया के कारण दसवीं का परिणाम निकालने में काफी वक्त लग गया। यही नहीं, उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा (री-टोटलिंग) में भी बोर्ड को बार कोडिंग की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
एक करोड़ कॉपियों पर लागू करना मुश्किल
बोर्ड की अगले साल होने वाली मुख्य परीक्षाओं के लिए 20 लाख विद्यार्थियों ने आवेदन किया है। इस हिसाब से बोर्ड को सभी विषयों की लगभग एक करोड़ 20 लाख उत्तरपुस्तिकाएं जंचवानी होगी। सभी उत्तरपुस्तिकाओं में बार कोडिंग हुई तो बोर्ड को भी आशंका है कि परीक्षाओं का नतीजा आने में काफी देरी हो जाएगी।
लिहाजा अब इस संबंध में पुनर्विचार किया जा रहा है। बोर्ड प्रशासन ने एक तरह से बार कोडिंग को लागू नहीं करने का मानस बना भी लिया है।
इनका कहना है
इस साल दसवीं के सिर्फ एक विषय में बार कोडिंग का प्रयोग किया गया था। अगले साल से सभी विषयों की उत्तरपुस्तिकाओं में यह व्यवस्था लागू करनी थी। लेकिन अब इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है। तकनीकी रूप से सक्षम फर्म नहीं मिली तो बार कोडिंग की व्यवस्था लागू करना जरूरी नहीं है।
प्रो. बी. एल. चौधरी, अध्यक्ष माशिबो राजस्थ
बार कोडिंग की वजह से दसवीं के परिणाम में हुई अनावश्यक देरी को देखते हुए अब व्यवस्था लागू करने पर पुनर्विचार किया जा रहा है।
परीक्षकों और विद्यालय संचालकों के बीच सांठ-गांठ की आशंका को देखते हुए बोर्ड ने इस साल दसवीं के अंग्रेजी विषय की उत्तरपुस्तिकाओं में सुरक्षा की दृष्टि से बार कोडिंग का प्रयोग किया था। इस व्यवस्था के तहत परीक्षक को जांचने के लिए भेजने वाली कॉपी में रोल नंबर की जगह बार कोडिंग की गई थी।
अटक गया था दसवीं का परिणाम
बोर्ड की बार कोडिंग की व्यवस्था केवल दसवीं के अंग्रेजी विषय की लगभग 12 लाख उत्तरपुस्तिकाओं में लागू हुई थी। जबकि सभी विषयो की उत्तरपुस्तिकाओं की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है।
सुरक्षा की दृष्टि से बोर्ड की नजर में यह प्रयोग सफल तो रहा लेकिन तकनीकी रूप से बार कोडिंग से रोल नंबर पहचानने की धीमी प्रक्रिया के कारण दसवीं का परिणाम निकालने में काफी वक्त लग गया। यही नहीं, उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा (री-टोटलिंग) में भी बोर्ड को बार कोडिंग की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
एक करोड़ कॉपियों पर लागू करना मुश्किल
बोर्ड की अगले साल होने वाली मुख्य परीक्षाओं के लिए 20 लाख विद्यार्थियों ने आवेदन किया है। इस हिसाब से बोर्ड को सभी विषयों की लगभग एक करोड़ 20 लाख उत्तरपुस्तिकाएं जंचवानी होगी। सभी उत्तरपुस्तिकाओं में बार कोडिंग हुई तो बोर्ड को भी आशंका है कि परीक्षाओं का नतीजा आने में काफी देरी हो जाएगी।
लिहाजा अब इस संबंध में पुनर्विचार किया जा रहा है। बोर्ड प्रशासन ने एक तरह से बार कोडिंग को लागू नहीं करने का मानस बना भी लिया है।
इनका कहना है
इस साल दसवीं के सिर्फ एक विषय में बार कोडिंग का प्रयोग किया गया था। अगले साल से सभी विषयों की उत्तरपुस्तिकाओं में यह व्यवस्था लागू करनी थी। लेकिन अब इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है। तकनीकी रूप से सक्षम फर्म नहीं मिली तो बार कोडिंग की व्यवस्था लागू करना जरूरी नहीं है।
प्रो. बी. एल. चौधरी, अध्यक्ष माशिबो राजस्थ