प्रारंभिकशिक्षा विभाग में जिला शिक्षा अधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर कर एक
महिला प्रबोधक ने खुद के तबादले का आदेश जारी कर दिया। साथ ही नए स्कूल में
जाकर हाजरी दे दी। लगातार डेढ़ माह तक नौकरी भी कर ली, अब जाकर मामला खुला
तो स्पष्ट किया कि आदेश की कॉपी एक शिक्षक संगठन द्वारा दी गई है।
इससे शिक्षक संगठन भी संदेह के घेरे में गया है और इसके साथ ही यह सवाल भी खड़े होने लगे है कि आखिर ऐसे कितने ओर आदेश होंगे, जो फर्जी हस्ताक्षर से स्थानांतरण के हैं। इसके बाद डीईओ प्रेमजी पाटीदार ने जांच के आदेश दिए, जो पूरी हो चुकी है।
राउमावि वजवाना अधीन कार्यरत प्रबोधक प्रेमलता पंड्या का काउंसलिंग के दौरान राजकीय बालिका उप्रावि वजवाना में ही तबादला हुआ था, लेकिन शहर से अधिक दूरी होने की वजह से फर्जी हस्ताक्षर का जुगाड़ किया गया। डीईओ के फर्जी हस्ताक्षर कर प्रेमलता पंड्या का नया पदस्थापन अगरपुरा शहर में कर दिया गया है। पूरा फर्जीवाड़ा आदेश में संशोधित कर किया गया है। जिसमें आदेश की कॉपी भी स्कैन की गई है।
^इस प्रकरण में जांच के आदेश दिए हैं, अभी जांच रिपोर्ट देखी नहीं है। लेकिन, शिक्षिका को पहले वाले स्कूल के लिए कार्यमुक्त कर दिया गया है। प्रारंभिक रिपोर्ट में आदेश अवैध माने गए हैं। -प्रेमजी पाटीदार, डीईओ
>प्रबोधक से पूछताछ के लिए प्रश्नावली बनाई गई। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर चाहा गया।
> बयान लेते समय गवाह के तौर पर एबीईईओ तलवाड़ा और स्कूल प्रधान उपस्थित रही।
>जांच पूरी होने पर अगरपुर शहर में पदस्थापन का आदेश अवैध माना गया।
जांच के दौरान बीईईओ ने प्रबोधक शिक्षिका से आदेश की मूल कॉपी मांगी, तो बताया कि उसके पति शिक्षक संघ सियाराम से जुड़े हुए हैं। उन्हाेंने ही कॉपी दी थी। मूल आदेश में उसका स्कूल वजवाना ही बताया गया है। इस पूरे प्रकरण की जांच पूरी हो चुकी है, और शीघ्र ही डीईओ को दी जाएगी। अब अागे की कार्रवाई डीईओ के स्तर पर ही की जाएगी।
पूर्व डीईओ प्रभाकर आचार्य के हस्ताक्षर से जारी इस फर्जी आदेश में प्रबोधक प्रेमलता की रिक्त पद पर शहर के अगरपुरा स्कूल में नियुक्ति की गई। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में प्रबोधक नाम देखकर अधिकारी भी चौंके, क्योंकि पूरे शहर में एक भी प्रबोधक का पद किसी भी स्कूल में नहीं है। ऐसे में डीईओ ने प्रबोधक की नियुक्ति रिक्त पद पर कैसे कर दी। जिस पर बीईईओ ने डीईओ काे पत्र लिखा कि पद नहीं होने की वजह से वेतन देना संभव नहीं है। एेसे में आगे की कार्रवाई की जाए। बीईईओ का पत्र डीईओ के पास पहुंचते ही छानबीन की। पता चला कि यह आदेश डीईओ कार्यालय से जारी ही नहीं हुआ है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
इससे शिक्षक संगठन भी संदेह के घेरे में गया है और इसके साथ ही यह सवाल भी खड़े होने लगे है कि आखिर ऐसे कितने ओर आदेश होंगे, जो फर्जी हस्ताक्षर से स्थानांतरण के हैं। इसके बाद डीईओ प्रेमजी पाटीदार ने जांच के आदेश दिए, जो पूरी हो चुकी है।
राउमावि वजवाना अधीन कार्यरत प्रबोधक प्रेमलता पंड्या का काउंसलिंग के दौरान राजकीय बालिका उप्रावि वजवाना में ही तबादला हुआ था, लेकिन शहर से अधिक दूरी होने की वजह से फर्जी हस्ताक्षर का जुगाड़ किया गया। डीईओ के फर्जी हस्ताक्षर कर प्रेमलता पंड्या का नया पदस्थापन अगरपुरा शहर में कर दिया गया है। पूरा फर्जीवाड़ा आदेश में संशोधित कर किया गया है। जिसमें आदेश की कॉपी भी स्कैन की गई है।
^इस प्रकरण में जांच के आदेश दिए हैं, अभी जांच रिपोर्ट देखी नहीं है। लेकिन, शिक्षिका को पहले वाले स्कूल के लिए कार्यमुक्त कर दिया गया है। प्रारंभिक रिपोर्ट में आदेश अवैध माने गए हैं। -प्रेमजी पाटीदार, डीईओ
>प्रबोधक से पूछताछ के लिए प्रश्नावली बनाई गई। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर चाहा गया।
> बयान लेते समय गवाह के तौर पर एबीईईओ तलवाड़ा और स्कूल प्रधान उपस्थित रही।
>जांच पूरी होने पर अगरपुर शहर में पदस्थापन का आदेश अवैध माना गया।
जांच के दौरान बीईईओ ने प्रबोधक शिक्षिका से आदेश की मूल कॉपी मांगी, तो बताया कि उसके पति शिक्षक संघ सियाराम से जुड़े हुए हैं। उन्हाेंने ही कॉपी दी थी। मूल आदेश में उसका स्कूल वजवाना ही बताया गया है। इस पूरे प्रकरण की जांच पूरी हो चुकी है, और शीघ्र ही डीईओ को दी जाएगी। अब अागे की कार्रवाई डीईओ के स्तर पर ही की जाएगी।
पूर्व डीईओ प्रभाकर आचार्य के हस्ताक्षर से जारी इस फर्जी आदेश में प्रबोधक प्रेमलता की रिक्त पद पर शहर के अगरपुरा स्कूल में नियुक्ति की गई। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में प्रबोधक नाम देखकर अधिकारी भी चौंके, क्योंकि पूरे शहर में एक भी प्रबोधक का पद किसी भी स्कूल में नहीं है। ऐसे में डीईओ ने प्रबोधक की नियुक्ति रिक्त पद पर कैसे कर दी। जिस पर बीईईओ ने डीईओ काे पत्र लिखा कि पद नहीं होने की वजह से वेतन देना संभव नहीं है। एेसे में आगे की कार्रवाई की जाए। बीईईओ का पत्र डीईओ के पास पहुंचते ही छानबीन की। पता चला कि यह आदेश डीईओ कार्यालय से जारी ही नहीं हुआ है।
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