बाड़मेर. । जिले में दस साल पहले नेत्रहीन बच्चों की जिंदगी केवल कुछ दिन स्कूल जाने और वहां कुछ भी सीखने को नहीं मिलने पर जीवनभर अंधेरे के साथ जीने की थी लेकिन अब स्थितियां एेसी बदली है कि एक पूरी पीढ़ी कमाल की राह पर चल पड़ी है।
हाल ही में आए दसवीं के नतीजों में 8 बालक बालिकाओं ने प्रथम श्रेणी से दसवीं उत्तीर्ण की है। शिक्षा के साथ वे तकनीक के भी हमराही हो गए हैं। अब तक केवल फोन पर बात करने वाले इन लोगों ने अब व्हाट्सएप और फेसबुक एकाउंट पर खुद को ला दिया है।
यह बदलाव इनकी जिंदगी को और प्रोत्साहित कर रहा है। भले ही ये लोग अपना फेस खुद देख नहीं सके लेकिन फेसबुक पर मिलने वाले कमेंट्स और लाइक से इतने खुश होते है कि इनको लगता है कि उनमें भी कुछ बात है। इसके लिए इन्होंने एक विशेष एप डाउनलोड किया है। मोबाइल सेट आवाज पर आधारित है। इनको वॉइस से पता चल जाता है कि किसका कमेंट आया है और क्या लिखा है। ये भी वॉइस के जरिए ही वापस जवाब दे रहे हैं। कॉपी, शेयर, डिलीट, लाइक, फॉरवर्ड सारा कुछ आसानी से हो रहा है।
केस 1
डण्डाली गांव की सीधी सादी धापू। पूरा परिवार नेत्रहीन। जीवन में घोर अंधेरा। आठ साल पहले तो उसके लिए जीवन बोझ ही माना जा रहा था। वह न तो स्लेट पर लिख पा रही थी और ना ही पढऩे की समझ। लेकिन हाल ही में 26 अगस्त को उसने फेसबुक अकाउंट पर अपने साथ पूर्व एसपी परिस देशमुख के साथ अपनी फोटो शेयर की है।
केस 2
नेत्रहीन जब्बरसिंह ने अपना फेसबुक एकाउंट शुरू किया है और वह भी लाइक मिलने के साथ ही उन लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहा है जिनको जानता है। जब्बरङ्क्षसह की रिक्वेस्ट देखते ही एक बार अचरज होता है लेकिन सुखद स्थिति लगती है और जानने वाले उसको तत्काल दोस्त बना रहे हैं।
केस 3
बाड़मेर का रहने वाला सांवलाराम दस साल पहले जीवन का संघर्ष कर रहा था। दस भाई बहनों के परिवार में आर्थिक रूप से विपन्न बालक नेत्रहीन होने से गांव में सबसे अंतिम पंक्ति पर खड़ा था। आज सांवलाराम दिल्ली में जेएनयू में पढ़ाई कर रहा है और गांव की अग्रिम पंक्ति में है। फेसबुक एकाउंट पर दिल खोलकर लिखता है और बड़ी संख्या में कमेंट्स मिलते हैं।
जीवन बदल गया
शिक्षा से जुड़ा तो लगा कि जीवन में बहुत बदलाव आया है लेकिन तकनीक से जुड़ा तो जीवन ही बदल गया है। मुझे अब सहारे नहीं तलाशने पड़ते हर बात के लिए। मोबाइल एप के जरिए पता चल जाता है कि मुझे कितना और किस तरफ चलना है। फेसबुक और व्हाट्सएप क्या अब तो पूरी दुनिया को नेट के जरिए जान रहा हूं।- सांवलाराम, दिव्यांग
निराशा बदल गई आशा में
फेसबुक और व्हाट्सएप अभी शुरू किया है। किताबें ब्रेललिपि से पढऩा सीखा था। अब इस तकनीक में जो जानकारी चाहिए तत्काल नेट पर लिख देते हैं और जवाब मिलता है। सरकार सभी नेत्रहीनों को अब ब्रेललिपि के साथ कंप्यूटर, टेबलेट और लेपटॉप भी उपलब्ध करवाए ताकि उनके जीवन से निराशा का अंधकार एकदम दूर हो जाए।- धापू, दिव्यांग
टेबलेट उपलब्ध करवाए
इन बच्चों के लिए समाजसेवी हनुमाराम डऊकिया ने दानदाताओं को प्रेरित कर टेबलेट उपलब्ध करवाए हैं। जिन पर अपना फेसबुक, व्हाट्सएप अकाउंट और नेट यूज कर रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से इस तरह का कोई प्रबंध नहीं किया गया है। नेत्रहीन दिव्यांगों को टेबलेट और लेपटॉप उपलब्ध करवाए जाए तो न केवल बेहतर शिक्षा मिलेगी, बल्कि कॅरियर को लेकर भी काफी मदद मिल सकती है।
- चैनाराम चौधरी, प्राचार्य राउमावि स्टेशन रोड बाड़मेर
सेल्फ मोटिवेशन से बड़ी कोई बात नहीं
मेडिकल साइंस भी यह मानता है कि सेल्फ मोटिवेशन तरक्की की सबसे बड़ी सीढ़ी है। जो खुद में आशावादी और खुश रहने लग गया उसके आगे बढऩे के रास्ते खुलते हैं और मंजिल तय होती है। नेत्रहीन के लिए सबसे बड़ी जरूरत ही उसके अंदर की निराशा को दूर करना है। यह अगर तकनीक से हो रहा है तो इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी।
- डॉ. गोविंद व्यास, मनोचिकित्सक
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
हाल ही में आए दसवीं के नतीजों में 8 बालक बालिकाओं ने प्रथम श्रेणी से दसवीं उत्तीर्ण की है। शिक्षा के साथ वे तकनीक के भी हमराही हो गए हैं। अब तक केवल फोन पर बात करने वाले इन लोगों ने अब व्हाट्सएप और फेसबुक एकाउंट पर खुद को ला दिया है।
यह बदलाव इनकी जिंदगी को और प्रोत्साहित कर रहा है। भले ही ये लोग अपना फेस खुद देख नहीं सके लेकिन फेसबुक पर मिलने वाले कमेंट्स और लाइक से इतने खुश होते है कि इनको लगता है कि उनमें भी कुछ बात है। इसके लिए इन्होंने एक विशेष एप डाउनलोड किया है। मोबाइल सेट आवाज पर आधारित है। इनको वॉइस से पता चल जाता है कि किसका कमेंट आया है और क्या लिखा है। ये भी वॉइस के जरिए ही वापस जवाब दे रहे हैं। कॉपी, शेयर, डिलीट, लाइक, फॉरवर्ड सारा कुछ आसानी से हो रहा है।
केस 1
डण्डाली गांव की सीधी सादी धापू। पूरा परिवार नेत्रहीन। जीवन में घोर अंधेरा। आठ साल पहले तो उसके लिए जीवन बोझ ही माना जा रहा था। वह न तो स्लेट पर लिख पा रही थी और ना ही पढऩे की समझ। लेकिन हाल ही में 26 अगस्त को उसने फेसबुक अकाउंट पर अपने साथ पूर्व एसपी परिस देशमुख के साथ अपनी फोटो शेयर की है।
केस 2
नेत्रहीन जब्बरसिंह ने अपना फेसबुक एकाउंट शुरू किया है और वह भी लाइक मिलने के साथ ही उन लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहा है जिनको जानता है। जब्बरङ्क्षसह की रिक्वेस्ट देखते ही एक बार अचरज होता है लेकिन सुखद स्थिति लगती है और जानने वाले उसको तत्काल दोस्त बना रहे हैं।
केस 3
बाड़मेर का रहने वाला सांवलाराम दस साल पहले जीवन का संघर्ष कर रहा था। दस भाई बहनों के परिवार में आर्थिक रूप से विपन्न बालक नेत्रहीन होने से गांव में सबसे अंतिम पंक्ति पर खड़ा था। आज सांवलाराम दिल्ली में जेएनयू में पढ़ाई कर रहा है और गांव की अग्रिम पंक्ति में है। फेसबुक एकाउंट पर दिल खोलकर लिखता है और बड़ी संख्या में कमेंट्स मिलते हैं।
जीवन बदल गया
शिक्षा से जुड़ा तो लगा कि जीवन में बहुत बदलाव आया है लेकिन तकनीक से जुड़ा तो जीवन ही बदल गया है। मुझे अब सहारे नहीं तलाशने पड़ते हर बात के लिए। मोबाइल एप के जरिए पता चल जाता है कि मुझे कितना और किस तरफ चलना है। फेसबुक और व्हाट्सएप क्या अब तो पूरी दुनिया को नेट के जरिए जान रहा हूं।- सांवलाराम, दिव्यांग
निराशा बदल गई आशा में
फेसबुक और व्हाट्सएप अभी शुरू किया है। किताबें ब्रेललिपि से पढऩा सीखा था। अब इस तकनीक में जो जानकारी चाहिए तत्काल नेट पर लिख देते हैं और जवाब मिलता है। सरकार सभी नेत्रहीनों को अब ब्रेललिपि के साथ कंप्यूटर, टेबलेट और लेपटॉप भी उपलब्ध करवाए ताकि उनके जीवन से निराशा का अंधकार एकदम दूर हो जाए।- धापू, दिव्यांग
टेबलेट उपलब्ध करवाए
इन बच्चों के लिए समाजसेवी हनुमाराम डऊकिया ने दानदाताओं को प्रेरित कर टेबलेट उपलब्ध करवाए हैं। जिन पर अपना फेसबुक, व्हाट्सएप अकाउंट और नेट यूज कर रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से इस तरह का कोई प्रबंध नहीं किया गया है। नेत्रहीन दिव्यांगों को टेबलेट और लेपटॉप उपलब्ध करवाए जाए तो न केवल बेहतर शिक्षा मिलेगी, बल्कि कॅरियर को लेकर भी काफी मदद मिल सकती है।
- चैनाराम चौधरी, प्राचार्य राउमावि स्टेशन रोड बाड़मेर
सेल्फ मोटिवेशन से बड़ी कोई बात नहीं
मेडिकल साइंस भी यह मानता है कि सेल्फ मोटिवेशन तरक्की की सबसे बड़ी सीढ़ी है। जो खुद में आशावादी और खुश रहने लग गया उसके आगे बढऩे के रास्ते खुलते हैं और मंजिल तय होती है। नेत्रहीन के लिए सबसे बड़ी जरूरत ही उसके अंदर की निराशा को दूर करना है। यह अगर तकनीक से हो रहा है तो इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी।
- डॉ. गोविंद व्यास, मनोचिकित्सक
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC