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Tuesday 9 August 2016

प्रतिबंध और शिक्षक : चल ले चल जिंदगी तू जहाँ जहाँ तेरा दिल करे : By- श्री कमलेशजी जोशी

मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा ,पीर, फकीर, बाबा जी ,भेरुजी, राडाजी ,माताजी ,पुर्वज बावजी ,मंत्री संत्री ,अफसर ऑफिस ,कोर्ट कचहरी वगैरह वगैरह ऐसी कौनसी जगह नहीं रही जहाँ प्रार्थना नहीं की गई हो जहाँ अर्जी न लगाई गई हो ,नाक न रगड़ी हो ,कितने तिकडम नहीं लगाए ,पर नतीजा वही का वही ,कल भी वही थे और आज भी ,प्रतिबंध के प्रतिबंध में ही ।

कर्म भाग्य को बदल देता है परंतु कभी कभी भाग्य से बढ़कर भी नहीं मिल पाता । इतने सारे उपक्रम तो नौकरी पाने के लिए नहीं किए जितने प्रतिबंधित क्षेत्र से बाहर स्थानांतरण के लिए किए गए पर यहाँ सुने कौन ? भगवान को कही तो वो मौन हो गए ,बाबा जी को कही तो बेहोश हो गए , मंत्रियों को आश्वासन की आदत पड़ी हुई है और अफसर बाबू अपनी बेबसी का रोना रो कर रह गए । बड़े बड़े राजनीतिक पहुँच वाले भी अपनी अपनी ताकत झोंक कर हताश हो गए परंतु न तो प्रतिबंध से स्थानांतरण हुआ न हृदय को सुकुन मिल सका । अब हमारी सुने कौन ।
जिसके कभी काँटे न चूभे हो उसे पीड़ा का क्या पता चले । किसने क्या खोया ये तो खोने वाला ही जानता है वरना दूसरों को सब अच्छा ही लगता है । कितने के मुँह से सुनता हूँ बाहर वालों के मजे है तो उनके लिए दुआ कर बैठता हूँ कभी आप भी इतने साल बाहर भ्रमण कर आइए आपके भी मजे हो जाएँगे फिर सोचता हूँ रहने देना भगवान दुखी हृदय की पीड़ा है निकल गई ,तू किसी को ऐसी पीड़ा न देना । जिंदगी दी तो काम भी देना ,काम दे तो सुकुन भी देना ,परदेस न देना । परदेस की पीड़ा सुकुन छीन लेती है ।
कल की ही बात थी । एक शिक्षक भाई से मिला था । उसकी आँखो के आँसू उसकी पीड़ा को साफ बयान कर रहे थे । आज जब उसकी मौत की खबर सुनी तो हृदय को धक्का लगा और कितनी गालियाँ सरकार को दे डाली परंतु जिन्होने अपना खो दिया उसकी भरपाई कैसे हो । इतने दिन निकल गए और निकल जाएँगे इस अधूरी जिंदगी का बोझ उठाते हुए चलते जाएँगे ।लोग हमें नकारात्मक मानसिकता का समझते है तो उन्हे कहता हूँ कुछ दिन अपने घर से दूर अपनों से दूर हमारे साथ रहो फिर पूछो कि मानसिकता कैसी बनती है । जंगल में मोर नीचे कौन देखे ? अपनी बात कौन सुने पर दर्द था तो कह दिया ।
कभी सुबह शाम मित्र मिल जाते है तो बातें कर दिल हल्का हो जाता है । एक दूसरे के हाल चाल जान लेते है । घर गाँव की खबर पूछ लेते है । दिन काम में निकल जाता है और रात विचारों में । दीवारो से प्रश्न निकलते है और हम निरुत्तर से चुपचाप अँधेरी गुफाओँ में पड़े हुए से , नींद से कोई खास मित्रता नहीं रही अब । जैसे तैसे दिन निकलते जाते है कोई छुट्टियां लग जाती है घर हो आते है । कुछ दिन घर की रोटी मिल जाती है और छोटे मोटे काम कर आते है । मन में एक ही पीड़ा बनी रहती है कि वापस जाना पड़ेगा । पड़ोसी दोस्त रिश्तेदार सब एक ही प्रश्न पूछते है और हम भी सुनने के आदी हो चुके है कि अभी तक वहीं हो ट्रांसफर नहीं कराया क्या । कुछ ले दे के करा देते । अब क्या लेना देना बाकी रह गया । तन मन धन सब ही तो लूटा चुके है बस साँसे बची है गिनती की ।
सरकार पर सरकार बदलती रही । हर आने वाली सरकार से उम्मीद बनती परंतु सरकार ने हमारी पीड़ा को कब समझा वो बड़ी चतुराई से हमारे जज्बातोँ से खेलती रही और तो और बहुमत प्राप्त करने वाली सरकार की लाचारी देख तो हमें भी आश्चर्य होने लगा । अब तो अपने आप पर भी विश्वास न रहा ।
जब परेशानी अधिक बढ़ने लगी तो सभी ने लड़ने की सोची । संगठन बना लिया । वार्ता धरना प्रदर्शन ज्ञापन के दौर चले पर सरकार के कानों पर जूँ तक न रेँगी । धीरे धीरे इनसे भी मन भरने लगा और दूसरे संगठनो ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई । उनको हमसे कोई सरोकार नहीं लगा समय निकलना गया और हम अपनी नौकरी करते रहे परंतु आजाद देश में इस तरह गुलाम की तरह जिंदगी वह भी अपनी चुनी हुई भारत सरकार में , दम घुटने लगता है । काला पानी की सजा के जैसे लगता है मानो कोई अपराध हुआ हो और आजीवन कारावास की सजा सुना दी हो । जिंदगी निर्माण के पल सरकार के कठोर रवैये ने खत्म कर दिए और बचे कुछे हम सहेजने के कोशिश में है । यह सब पढ़ने के बाद शायद आप सब मुझे निराश समझें परंतु यह अगर मेरे अकेले के मन की पीड़ा होती तो शायद में कभी नहीं कहता पर कह दिया तो मन को कुछ सुकुन मिला ।
दर्द सौ तरह के दिल में क्या क्या बयान करे
चल ले चल जिंदगी तू जहाँ जहाँ तेरा दिल करे
कमलेश कुमार जोशी
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC

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