भास्कर संवाददाता| सरकारी स्कूलों की छात्राओं को रोजमर्रा की दैनिक जानकारी और देश-विदेश में होने वाले घटनाक्रम से अवगत कराने के उद्देश्य से स्कूलों में रीडर क्लब बनाने थे,लेकिन आज दिन तक स्कूलों में यह क्लब नहीं बन पाया है। हालात यह है कि अभी कि विभाग में डीईओ से लेकर सर्व शिक्षा अभियान के मौजूदा कर्मचारियों को यह नहीं पता कि इस तरह के कोई आदेश भी हुए थे।
पिछले साल 6 जुलाई 2015 को राज्य प्रारंभिक शिक्षा परिषद ने आदेश जारी कर सभी स्कूलों में छात्राओं के लिए एक रीडर क्लब बनाना था। इस के तहत समस्त पत्र पत्रिकाएं और मैगजिन रखी जानी थी। वहीं स्कूल में एक घंटे का समय विशेष तौर रखे जाने का प्रावधान तय किया था।
ताकि छात्राएं इस घंटे में देश और दुनिया के बारे में जान सके और जानकारी हासिल कर सके। इसके साथ ही इस रीडर क्लब के जरिए यह भी होना था कि एक दूसरे को सुनाना,सुनना,बारी बारी से बताना,एक दूसरे की जानकारी शेयर करना आदि भी उद्देश्य में शामिल था। शिक्षा विभाग प्रारंभिक ने पहली बार सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के स्तर को धरातल से दुबारा प्रारंभ करने का पहला प्रयास किया था,लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा था,कि यह प्लानिंग पूरी तरह से फेल हो गई।
छात्राओंको ही नहीं पता कि क्या होता है मीना मंच एकखास बात तो यह भी है कि इस योजना को मीना मंच से जोड़ा था,लेकिन वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा विभाग की स्कूलों में पढ़ने वाली बालिकाओं को यह नहीं पता कि मीना मंच क्या है। हा,यह जरूर है कि मीना मंच को लेकर ब्लॉक स्तर जिन शिक्षिकाओं की कमेटियां बनाई है,उनकी बैठकें जरूर होती है,जिसमें भोजन से लेकर नाश्ता आदि तक दो घंटे में हो जाता है और कागजों में बिल उठ जाते हैं। जबकि मीना मंच का गठन बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए किया गया था। रीडर क्लब के माध्यम से उन्हें मजबूत बनाना था।
वर्तमानस्थिति-35 फीसदी बालिकाएं,जो नहीं जानती किताब पढ़ना:संबलन और रीडिंग कैंपेन जैसे अभियान चलने के बाद भी स्कूलों में बालिकाओं की स्थिति ठीक नहीं है। करीब 35 फीसदी बालिकाएं ऐसी है,जिन्हें किताब पढ़ना नहीं आता है। रिटायर उपनिदेशक गणेशलाल पटेल का कहना है कि पिछले साल सरकार ने नवाचार करने के लिए इस गतिविधि को अपनाने पर जोर दिया था,लेकिन बांसवाड़ा में जो स्थिति है,वह ठीक नहीं है। अभी भी व्यक्त है,इसे अपनाकर स्कूलों में बालिकाओं को धरातल पर मजबूत बनाया जा सकता है।
^यहविषय हमें ध्यान में नहीं था। लेकिन अब इस मामले में अपडेट रिपोर्ट लेकर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। यह सच है कि बालिकाओं की सुविधाओं को देखते हुए रीडर क्लब बनाए जाने थे,लेकिन यहां पर ऐसा नहीं हो पाया है।-प्रभाकर आचार्य,डीईओ प्रारंभिक शिक्षा
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
पिछले साल 6 जुलाई 2015 को राज्य प्रारंभिक शिक्षा परिषद ने आदेश जारी कर सभी स्कूलों में छात्राओं के लिए एक रीडर क्लब बनाना था। इस के तहत समस्त पत्र पत्रिकाएं और मैगजिन रखी जानी थी। वहीं स्कूल में एक घंटे का समय विशेष तौर रखे जाने का प्रावधान तय किया था।
ताकि छात्राएं इस घंटे में देश और दुनिया के बारे में जान सके और जानकारी हासिल कर सके। इसके साथ ही इस रीडर क्लब के जरिए यह भी होना था कि एक दूसरे को सुनाना,सुनना,बारी बारी से बताना,एक दूसरे की जानकारी शेयर करना आदि भी उद्देश्य में शामिल था। शिक्षा विभाग प्रारंभिक ने पहली बार सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के स्तर को धरातल से दुबारा प्रारंभ करने का पहला प्रयास किया था,लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा था,कि यह प्लानिंग पूरी तरह से फेल हो गई।
छात्राओंको ही नहीं पता कि क्या होता है मीना मंच एकखास बात तो यह भी है कि इस योजना को मीना मंच से जोड़ा था,लेकिन वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा विभाग की स्कूलों में पढ़ने वाली बालिकाओं को यह नहीं पता कि मीना मंच क्या है। हा,यह जरूर है कि मीना मंच को लेकर ब्लॉक स्तर जिन शिक्षिकाओं की कमेटियां बनाई है,उनकी बैठकें जरूर होती है,जिसमें भोजन से लेकर नाश्ता आदि तक दो घंटे में हो जाता है और कागजों में बिल उठ जाते हैं। जबकि मीना मंच का गठन बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए किया गया था। रीडर क्लब के माध्यम से उन्हें मजबूत बनाना था।
वर्तमानस्थिति-35 फीसदी बालिकाएं,जो नहीं जानती किताब पढ़ना:संबलन और रीडिंग कैंपेन जैसे अभियान चलने के बाद भी स्कूलों में बालिकाओं की स्थिति ठीक नहीं है। करीब 35 फीसदी बालिकाएं ऐसी है,जिन्हें किताब पढ़ना नहीं आता है। रिटायर उपनिदेशक गणेशलाल पटेल का कहना है कि पिछले साल सरकार ने नवाचार करने के लिए इस गतिविधि को अपनाने पर जोर दिया था,लेकिन बांसवाड़ा में जो स्थिति है,वह ठीक नहीं है। अभी भी व्यक्त है,इसे अपनाकर स्कूलों में बालिकाओं को धरातल पर मजबूत बनाया जा सकता है।
^यहविषय हमें ध्यान में नहीं था। लेकिन अब इस मामले में अपडेट रिपोर्ट लेकर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। यह सच है कि बालिकाओं की सुविधाओं को देखते हुए रीडर क्लब बनाए जाने थे,लेकिन यहां पर ऐसा नहीं हो पाया है।-प्रभाकर आचार्य,डीईओ प्रारंभिक शिक्षा
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