राजस्थान के शिक्षामंत्री माननीय वासुदेव देवनानी जी के नाम एक खुला पत्र........... ........... ................................................................................................सर्वप्रथम तो आपको बधाई...क्योंकि आम धारणा हैं कि शिक्षित एवं बुद्धिजीवी वर्ग में एकता एवं संगठन का सर्वथा अभाव होता हैं....लेकिन आपके नित नये तुगलकी फरमानों एवं शिक्षक समुदाय के प्रति घोर उदासीनता के कारण आज राजस्थान का समस्त शिक्षक वर्ग एकजुट होकर संयुक्त संघर्ष मोर्चा बनाकर सड़क पर उतरने को मजबूर हो गया हैं...........................यह दुर्भाग्यपूर्ण विडम्बना ही कही जायेगी कि एक संवेदनशील एवं अनुभवी महिला मुख्यमंत्री एवं और आप जैसे संघनिष्ठ प्रबुद्ध व्यक्ति के शिक्षामंत्री रहते, जो खुद शिक्षक रह चुका हो....एवं राजस्थान के जमीनी हालात से पूर्णतया वाकिफ हो....
ऐसी परिस्थिति में भी राजस्थान का शिक्षक समुदाय इस कदर आक्रोशित हुआ कि हमें खुद की सरकार के विरूध्द इतना बड़ा आन्दोलन करने की जरूरत पड़ गयी........राजस्थान में शिक्षा सुधारों के प्रति आपके परिश्रम और प्रतिबध्दता को नकारा नहीं जा सकता मगर प्रत्येक कार्य का उपयुक्त तरीका होता हैं...मगर आप बिना सांप को मारे ही अपनी लाठी तोड़ना चाहते हैं...ऎसी मूर्खतापूर्ण कार्य की उम्मीद आपसे नहीं थी....2012 के 40,000 तृतीय श्रेणी शिक्षक, जो अपने अपने गृहजिले से सैकड़ो किलोमीटर दूर, दूर -दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में विपरित परिस्थितियों में भी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं....सिर्फ 12000₹ मासिक वेतन में किस प्रकार अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है...वे ही समझ सकते हैं......फिर भी उनके वेतन नियमितिकरण हेतु आप बार- बार न्यायालय में मामला लम्बित होने की दुहाई दे रहे हैं मगर आप यह भूल रहे हैं कि शिक्षक वर्ग वो बुद्धिजीवी वर्ग हैं जिसे ना तो बरगलाया जा सकता हैं और ना ही भरमाया जा सकता हैं. .......केन्द्र एवं राज्य में एक ही दल की प्रचण्ड बहुमत की सरकार के रहते अगर कोई इतना महत्वपूर्ण मामला न्यायालय में इतने लंबे समय तक लम्बित रहे....यह तो सरासर सिस्टम फैलियर वाली स्थिति हो गई हैं .......इस सरकार की इच्छाशक्ति में ही कोई कमी हैं.................इतिहास गवाह हैं कि चाहे किसी भी दल की सरकार हो या कैसी भी विपरित परिस्थितियाँ रही हो...शिक्षक वर्ग तन,मन और धन से भाजपा का कट्टर समर्थक रहा हैं.....और मुझे नहीं लगता कि आपको यह स्मरण कराने की आवश्यकता हैं कि पिछले लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में शिक्षकों का क्या और कितना अहम योगदान है...आप मुझसे बेहतर समझते हैं......लेकिन कोई भी आखिर खाली पेट कब तक जय- जयकार कर सकता हैं...केवल राष्ट्रवाद से पेट नहीं भरता....हमारे भी पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व हैं.........आपको पता होगा कि राज. के 6.5 लाख कर्मचारियों में से 3.5 से अधिक शिक्षक हैं....जिनकों नाराज करना राजस्थान भाजपा और वसुंधरा जी के भविष्य के लिये घातक सिद्ध हो सकता हैं....यह हमारी अन्तिम विनती हैं...आशा हैं आप पूर्ण गंभीरता से लेगें...अन्यथा चुनाव हर पाँच वर्ष में होते हैं....और सनद रहे...1998 में कांग्रेस की 154 सीटों के सत्तामद में गहलोतजी ने ऐसी ही एक गलती की थी...परिणामस्वरूप 2003 में केवल 56 सीटें रह गयी थी........समझदार को इशारा काफी होता हैं.........................आपका हितैषी ......शिक्षक..
ऐसी परिस्थिति में भी राजस्थान का शिक्षक समुदाय इस कदर आक्रोशित हुआ कि हमें खुद की सरकार के विरूध्द इतना बड़ा आन्दोलन करने की जरूरत पड़ गयी........राजस्थान में शिक्षा सुधारों के प्रति आपके परिश्रम और प्रतिबध्दता को नकारा नहीं जा सकता मगर प्रत्येक कार्य का उपयुक्त तरीका होता हैं...मगर आप बिना सांप को मारे ही अपनी लाठी तोड़ना चाहते हैं...ऎसी मूर्खतापूर्ण कार्य की उम्मीद आपसे नहीं थी....2012 के 40,000 तृतीय श्रेणी शिक्षक, जो अपने अपने गृहजिले से सैकड़ो किलोमीटर दूर, दूर -दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में विपरित परिस्थितियों में भी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं....सिर्फ 12000₹ मासिक वेतन में किस प्रकार अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है...वे ही समझ सकते हैं......फिर भी उनके वेतन नियमितिकरण हेतु आप बार- बार न्यायालय में मामला लम्बित होने की दुहाई दे रहे हैं मगर आप यह भूल रहे हैं कि शिक्षक वर्ग वो बुद्धिजीवी वर्ग हैं जिसे ना तो बरगलाया जा सकता हैं और ना ही भरमाया जा सकता हैं. .......केन्द्र एवं राज्य में एक ही दल की प्रचण्ड बहुमत की सरकार के रहते अगर कोई इतना महत्वपूर्ण मामला न्यायालय में इतने लंबे समय तक लम्बित रहे....यह तो सरासर सिस्टम फैलियर वाली स्थिति हो गई हैं .......इस सरकार की इच्छाशक्ति में ही कोई कमी हैं.................इतिहास गवाह हैं कि चाहे किसी भी दल की सरकार हो या कैसी भी विपरित परिस्थितियाँ रही हो...शिक्षक वर्ग तन,मन और धन से भाजपा का कट्टर समर्थक रहा हैं.....और मुझे नहीं लगता कि आपको यह स्मरण कराने की आवश्यकता हैं कि पिछले लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में शिक्षकों का क्या और कितना अहम योगदान है...आप मुझसे बेहतर समझते हैं......लेकिन कोई भी आखिर खाली पेट कब तक जय- जयकार कर सकता हैं...केवल राष्ट्रवाद से पेट नहीं भरता....हमारे भी पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व हैं.........आपको पता होगा कि राज. के 6.5 लाख कर्मचारियों में से 3.5 से अधिक शिक्षक हैं....जिनकों नाराज करना राजस्थान भाजपा और वसुंधरा जी के भविष्य के लिये घातक सिद्ध हो सकता हैं....यह हमारी अन्तिम विनती हैं...आशा हैं आप पूर्ण गंभीरता से लेगें...अन्यथा चुनाव हर पाँच वर्ष में होते हैं....और सनद रहे...1998 में कांग्रेस की 154 सीटों के सत्तामद में गहलोतजी ने ऐसी ही एक गलती की थी...परिणामस्वरूप 2003 में केवल 56 सीटें रह गयी थी........समझदार को इशारा काफी होता हैं.........................आपका हितैषी ......शिक्षक..
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