राजस्थान में पिछले पांच साल से नियमित सरकारी नौकरियों की भर्तियां अटकने से शिक्षित बेरोजगारों की संख्या काफी बढ़ गई है। सरकार ने अब चुनाव नजदीक देख कर ढेरों भर्तियां निकाल दी हैं। इससे अब हर पद के लिए बेरोजगारों के बीच कड़ा मुकाबला हो गया है।
हालात ऐसे हो गए हैं कि कई नौकरियों में तो एक पद के लिए एक हजार दावेदार हो गए हैं। प्रदेश में पिछले कुछ सालों से भर्तियां कई कारणों से अटकी पड़ी हैं तो हाल में पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा में बड़े पैमाने पर नकल गिरोहों ने इस पर कब्जा जमा लिया। ऐसे हालात के कारण इस बड़ी परीक्षा को अब निरस्त कर दिया गया है। राज्य में सरकार की लापरवाही की वजह से सरकारी विभागों, निगम, बोर्ड और अन्य स्वायत्त संस्थानों में किसी तरह की भर्तियां नहीं होने से युवाओं में गहरी नाराजगी है।
चुनाव में युवाओं की नाराजगी को भांप कर ही अब सरकार ने भर्तियों की झड़ी लगा दी है। इसके बावजूद युवाओं को इससे कोई उम्मीद नहीं है। उनका कहना है कि चुनावी हार के डर के कारण सरकार अब युवाओं को लुभाने के लिए भर्तियां निकाल रही है। सरकार की भर्ती परीक्षाएं भी मजाक बन कर रह गई हैं। प्रदेश में हाल में पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा में जब नकल के बड़े मामले पकड़ में आने लगे तो इसे बीच में ही निरस्त कर दिया गया। इसके जरिये करीब आठ हजार कांस्टेबल की भर्ती की जानी थी।
सरकार का कहना है कि अब नए घोषित किए गए 15 हजार पदों और पुराने करीब साढ़े सात हजार कांस्टेबल की एक साथ परीक्षा होगी। इससे भी इस पद की आस में बैठे बेरोजगार युवाओं में चिंता पनप गई है। इसमें फिर एक बार समय लगेगा जो करीब एक साल का हो सकता है। प्रदेश में सबसे ज्यादा शिक्षा और स्वास्थ विभाग में पद खाली हैं। सरकार ने शिक्षकों और नर्सिंग स्टाफ की भर्ती के लिए कभी गंभीरता ही नहीं दिखाई। इससे प्रदेश के सरकारी स्कूल और अस्पतालों की भी बुरी दशा हो गई। राजस्थान विधानसभा में चपरासी भर्ती तो खासी चर्चित रही। इसमें एक चपरासी के लिए करीब एक हजार युवा दावेदार थे। चपरासी के 18 पदों के लिए 18 हजार आवेदन आए थे। कांस्टेबल भर्ती परीक्षा जो अब निरस्त हो गई उसमें एक पद के लिए 345 अभ्यर्थियों के बीच मुकाबला होता।
इसी तरह से सबसे कड़ा मुकाबला प्रदेश में सन 2016 पुलिस सब इंस्पेक्टर के तीन सौ पदों के लिए हुआ। इसमें हर एक पद के लिए एक हजार आवेदक थे। सबसे बुरी हालत तो शिक्षक बनने वालों की है। प्रदेश के बिगड़ती स्थिति को लेकर राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ कई बार आंदोलन कर चुका है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव का कहना है कि बेरोजगारों की लंबी कतार है। इसके मुकाबले भर्तियों की संख्या नगण्य है। सरकार जो भर्तियां निकालती है वो पूरी हो ही नहीं पाती है। ज्यादातर भर्तियां अदालतों में अटकी हुई है। इस मामले में सरकार कोई गंभीरता भी नहीं दिखाती है। सरकार लगातार भर्ती प्रक्रिया अपनाती तो प्रदेश में ऐसे हालात नहीं होते। लगातार भर्तियां नहीं होने से ही अब प्रतिस्पर्धा का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है।
राजस्थान प्रगतिशील शिक्षक संघ के अध्यक्ष गिरीश शर्मा का कहना है कि सरकार अपनी घोषणाओं पर ही खरी नहीं उतर रही है। इससे ही बेरोजगारों की तादाद बढ़ती जा रही है। सरकार की तरफ से की गई घोषणाओं के अनुसार भर्तियों को समय पर पूरा नहीं करना ही गंभीर लापरवाही है। सरकार ने इस बार के बजट में भर्तियों की कई घोषणाएं कर दी हंै, उन्हें पूरा करना उसके लिए एक बडी चुनौती है। सरकार नियमित भर्तियां निकालती तो आज जैसे हालात नहीं होते।
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