डूंगरपुर. सरकारी
महकमों की कार्यशैली अब न्यायालय को भी अखरने लगी है। जिसका उदहरण
डूंगरपुर में भी हुआ। यहां राजस्थान उच्च न्यायालय ने डूंगरपुर प्रारंभिक
शिक्षा विभाग को कार्य में लापरवाही के चलते फटकार लगाई और जिला शिक्षा
अधिकारी को 1 मई तक तलब होने के निर्देश दिए हैं।
इतना ही नहीं कोर्ट ने विभाग से यह भी पूछा की कोर्ट अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए? कोर्ट के सख्त रवैये को देखते हुए विभाग के आला अधिकारियों ने बचाव की जुगत लगा ली है। आला अधिकारियों ने बताया कि क्लर्क( बाबू) की बीमारी के चलते रिपोर्ट समय पर नहीं पहुंच सकी।
इतना ही नहीं कोर्ट ने विभाग से यह भी पूछा की कोर्ट अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए? कोर्ट के सख्त रवैये को देखते हुए विभाग के आला अधिकारियों ने बचाव की जुगत लगा ली है। आला अधिकारियों ने बताया कि क्लर्क( बाबू) की बीमारी के चलते रिपोर्ट समय पर नहीं पहुंच सकी।
आगे कुछ भी हो लेकिन कोर्ट की इस फटकार ने शिक्षा विभाग की
नींद में खलल जरूर डाल दिया है। अब देखने वाली बात यह है कि शिक्षा विभाग
कानून के शिकंजे से बचने के लिए कौन-कौन सी जुगत लगाता है।
यह है मामला
जिला परिषद् की ओर से 1998 में 244
तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती की गई थी। इसके बाद तत्कालीन सीइओ मोहनलाल
शर्मा ने डूंगरपुर कोतवाली में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में हुए
फर्जीवाड़े को लेकर मामला दर्ज करवाया। मामले की जांच में 23 शिक्षकों के
दस्तावेजों के साथ गड़बड़ी पाई गई थी।
विभागीय कार्रवाई में शिक्षकों की
बर्खास्तगी भी हुई। बाद में इसमें न्यायालय से स्टे लिया। इसके बाद 15
अप्रेल 2011 को उच्च न्यायालय ने डीईओ को उक्त मामले की सम्पूर्ण जांच
शीघ्र ही कर न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। पर, छह वर्ष बाद
भी विभाग ने रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।
डीईओ को न्यायालय ने 13 अप्रैल को
जांच रिपोर्ट के साथ तलब किया था। पर, डीईओ मणिलाल छगण ने कहा कि संबंधित
प्रभाग के बाबू के बीमार होने से रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं। इस
पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए नोटिस जारी किया है।
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