श्रीगंगानगर. सूरतगढ़
और घड़साना जैसे दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों से बीस
शिक्षकों को पढ़ाने की जिम्मेदारी के बजाय जिला मुख्यालय पर डॉ. बीआर
अम्बेडकर राजकीय महाविद्यालय में वीक्षक के रूप में प्रतिनियिुक्ति का
मामला उठा। कलक्ट्रेट सभागार में शनिवार को जिला स्कूल सलाहकार समिति की
बैठक में जिला कलक्टर ने डीईओ प्रारभिंक से सवाल जवाब किए।
कलक्टर ज्ञानाराम का कहना था कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए राज्य सरकार, जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग चिंतित है, फिर मनमर्जी से बीस शिक्षकों को शिक्षा जैसे कार्यों के बजाय एक कॉलेज में परीक्षा के लिए प्रतिनियुक्त किस आधार पर की ?
राजस्थान पत्रिका के 13 अप्रेल के अंक में प्रकाशित समाचार 'गुरुजी का भला करने के लिए परीक्षा का सहारा' से कलक्टर इतने खफा हुए कि शनिवार को बैठक के दौरान सवालों की झड़ी लगा दी। यह सुनकर डीईओ प्रारभिंक रमेश कुमार शर्मा बैकफुट पर आ गए। शर्मा अपनी सीट से खड़े हुए और पेंट की जेब से एक कागज निकाला। यह कॉलेज एजुकेशन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर का लैटर था, इसमें वीक्षक के रूप में शिक्षकों को लगाने का आग्रह किया गया था। कलक्टर ने यह आदेश पढ़कर फिर सवाल दाग दिया कि क्या प्रारभिंक शिक्षा विभाग निदेशक से इस संबंध में अनुमति ली थी। शर्मा ने इनकार किया। कलक्टर अगला सवाल करते इससे पहले डीईओ माध्यमिक तेजासिंह बोल उठे कि हमारे पास भी कॉलेज प्रिंसीपल की चिट्टी आई थी लेकिन शिक्षकों की उपलब्धता नहीं होने का कारण बताकर इनकार कर दिया गया। इस बीच सादुलशहर बीईईओ हरचंद गोस्वामी ने कहा कि आईटीआई प्रिंसीपल ने वार्षिक परीक्षा के लिए 35 शिक्षक मांगे थे लेकिन इनकार कर दिया गया।
'स्कूलों का तो हो जाएगा डब्बा गोल'
कलक्टर का कहना था कि विश्वविद्यालय की परीक्षाएं करीब एक सौ दिन तक संचालित होती है। एेसे में शिक्षकों को वहां वीक्षक लगा दिया जाएं तो स्कूलों का तो डब्बा गोल हो जाएगा। कलक्टर ने नसीहत दी कि कोई भी शिक्षा अधिकारी एेसा निर्णय लेता है तो वह खुद जिम्मेदार होगा। पहले अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया जाए और खुद का विवेक भी होना चाहिए कि इतने लंबे समय तक शिक्षकों को अन्य कार्य पर लगाने से बच्चे क्या खमियाजा भुगतेंगे। यह चेतावनी सुनकर आखिर डीईओ प्रारिभंक ने अपनी गलती मान ली।
सेवानिवृत्त शिक्षकों को लगाओ, कौन रोकता है
दूरदराज टिब्बा क्षेत्र के शिक्षकों को वीक्षक बनाने के मामले में कलक्टर ने सुझाया कि सेवानिवृत्त शिक्षकों की सूची बनाकर चाहे कॉलेज हो या फिर आईटीआई जैसे संस्थाओं को देनी चाहिए। इससे स्कूलों में कार्यरत शिक्षक को शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य नहीं छोडऩा होगा। यदि इसके बावजूद कोई सेवानिवृत्त शिक्षक नहीं आता है तो अपने उच्चाधिकारियों से आदेश लाएं तभी एेसे कार्य की व्वस्था करवाएं अन्यथा सिरे से इनकार कर देना चाहिए। पदमश्री डॉ. एसएस माहेश्वरी ने सुझाया कि सेवानिवृत्त शिक्षक वीक्षक जैसे कार्य करने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन शिक्षा अधिकारी एेसे शिक्षकों की सेवाएं जानबूझकर नहीं लेते।
कलक्टर ज्ञानाराम का कहना था कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए राज्य सरकार, जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग चिंतित है, फिर मनमर्जी से बीस शिक्षकों को शिक्षा जैसे कार्यों के बजाय एक कॉलेज में परीक्षा के लिए प्रतिनियुक्त किस आधार पर की ?
राजस्थान पत्रिका के 13 अप्रेल के अंक में प्रकाशित समाचार 'गुरुजी का भला करने के लिए परीक्षा का सहारा' से कलक्टर इतने खफा हुए कि शनिवार को बैठक के दौरान सवालों की झड़ी लगा दी। यह सुनकर डीईओ प्रारभिंक रमेश कुमार शर्मा बैकफुट पर आ गए। शर्मा अपनी सीट से खड़े हुए और पेंट की जेब से एक कागज निकाला। यह कॉलेज एजुकेशन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर का लैटर था, इसमें वीक्षक के रूप में शिक्षकों को लगाने का आग्रह किया गया था। कलक्टर ने यह आदेश पढ़कर फिर सवाल दाग दिया कि क्या प्रारभिंक शिक्षा विभाग निदेशक से इस संबंध में अनुमति ली थी। शर्मा ने इनकार किया। कलक्टर अगला सवाल करते इससे पहले डीईओ माध्यमिक तेजासिंह बोल उठे कि हमारे पास भी कॉलेज प्रिंसीपल की चिट्टी आई थी लेकिन शिक्षकों की उपलब्धता नहीं होने का कारण बताकर इनकार कर दिया गया। इस बीच सादुलशहर बीईईओ हरचंद गोस्वामी ने कहा कि आईटीआई प्रिंसीपल ने वार्षिक परीक्षा के लिए 35 शिक्षक मांगे थे लेकिन इनकार कर दिया गया।
'स्कूलों का तो हो जाएगा डब्बा गोल'
कलक्टर का कहना था कि विश्वविद्यालय की परीक्षाएं करीब एक सौ दिन तक संचालित होती है। एेसे में शिक्षकों को वहां वीक्षक लगा दिया जाएं तो स्कूलों का तो डब्बा गोल हो जाएगा। कलक्टर ने नसीहत दी कि कोई भी शिक्षा अधिकारी एेसा निर्णय लेता है तो वह खुद जिम्मेदार होगा। पहले अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया जाए और खुद का विवेक भी होना चाहिए कि इतने लंबे समय तक शिक्षकों को अन्य कार्य पर लगाने से बच्चे क्या खमियाजा भुगतेंगे। यह चेतावनी सुनकर आखिर डीईओ प्रारिभंक ने अपनी गलती मान ली।
सेवानिवृत्त शिक्षकों को लगाओ, कौन रोकता है
दूरदराज टिब्बा क्षेत्र के शिक्षकों को वीक्षक बनाने के मामले में कलक्टर ने सुझाया कि सेवानिवृत्त शिक्षकों की सूची बनाकर चाहे कॉलेज हो या फिर आईटीआई जैसे संस्थाओं को देनी चाहिए। इससे स्कूलों में कार्यरत शिक्षक को शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य नहीं छोडऩा होगा। यदि इसके बावजूद कोई सेवानिवृत्त शिक्षक नहीं आता है तो अपने उच्चाधिकारियों से आदेश लाएं तभी एेसे कार्य की व्वस्था करवाएं अन्यथा सिरे से इनकार कर देना चाहिए। पदमश्री डॉ. एसएस माहेश्वरी ने सुझाया कि सेवानिवृत्त शिक्षक वीक्षक जैसे कार्य करने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन शिक्षा अधिकारी एेसे शिक्षकों की सेवाएं जानबूझकर नहीं लेते।
No comments:
Post a Comment