बांसवाड़ा| प्रबोधकों की पदोन्नति के मामले को लेकर बांसवाड़ा के प्रबोधकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जिसे स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने पंचायती राज विभाग, निदेशक शिक्षा विभाग, डीईओ बांसवाड़ा और सीईओ जिला परिषद बांसवाड़ा को नोटिस जारी कर 11 मई तक जबाव मांगा है।
पहली नोटिस में प्रबोधकों की नियुक्ति नियमावली, प्रावधान आदि की जानकारी मांगी है, तो साथ में यह भी पूछा है कि प्रबोधकों को पदोन्नति क्यों नहीं मिल सकती है। क्या जिस समय कैडर बनाया था, तब ऐसा कोई प्रावधान रखा था। साथ ही इस संबंध में अब तक की पूरी रिपोर्ट मांगी गई है।
याचिकाकर्ता मुकुंद उपाध्याय और हितेष स्वर्णकार ने बताया कि राजस्थान पंचायती राज प्रबोधक सेवा नियम 2008 के शेड्यूल के तहत प्रबोधकों की पदोन्नति का प्रावधान है। इसके अनुसार 9 साल की सेवा पूरी होने के बाद विभागीय पदोन्नति की तरह ही प्रबोधकों को भी पदोन्नति दिए जाने के नियम बने हुए है। दूसरी ओर राजस्थान शिक्षा सेवा अधिनियम 1971 के नियम 6-डी के अनुसार पंचायती राज के शिक्षकों को शत प्रतिशत पदोन्नति शिक्षा विभाग में करने का प्रावधान है।
80 फीसदी प्रबोधक ऐसे है, जिनके पास पदोन्नति के लायक जरूरी योग्यता पूरी है। पदोन्नति के लिए एमए और बीएड जरूरी है। जो प्रबोधकों के पास है। हालांकि विभाग की ओर से इनके लिए एक अलग से ही कैडर बना हुआ है। जिसमें पदोन्नति का प्रावधान है, परंतु सवाल यहीं है कि प्रबोधक से उन्हें क्या बनाया जाएगा। जैसे शिक्षक से वरिष्ठ अध्यापक का प्रावधान है, तो इसी तरह से प्रबोधक से वरिष्ठ प्रबोधक बनाया जा सकता है, या फिर योग्यता के मुताबिक सीधे ही उन्हें द्वितीय श्रेणी शिक्षक का दर्जा दिया जा सकता है।
पदोन्नति के लिए जरूरी योग्यता पूरी
14 साल से काम कर रहे, पद भी वहीं, काम भी वहीं
हाईकोर्ट में पहुंचने वाले प्रबोधक ललित व्यास, विनय भट्ट, संदीप पुरोहित, प्रीति पंड्या और ज्योति पंड्या का कहना है कि वह लोग प्रबोधक के तौर पर 2002 से कार्यरत है। काम करते हुए 14 साल हो गए है। काम भी शिक्षा विभाग की स्कूलों में ही कर रहे है, तो वेतन भी पंचायती राज के तहत शिक्षा विभाग की ओर से ही दिया जाता है। जो काम शिक्षक कर रहे है, वहीं काम हम कर रहे है। ऐसे में पदोन्नति को लेकर भेदभाव क्यों है। जबकि समय समय पर इस संबंध में विभाग को अवगत कराते रहे है।
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पहली नोटिस में प्रबोधकों की नियुक्ति नियमावली, प्रावधान आदि की जानकारी मांगी है, तो साथ में यह भी पूछा है कि प्रबोधकों को पदोन्नति क्यों नहीं मिल सकती है। क्या जिस समय कैडर बनाया था, तब ऐसा कोई प्रावधान रखा था। साथ ही इस संबंध में अब तक की पूरी रिपोर्ट मांगी गई है।
याचिकाकर्ता मुकुंद उपाध्याय और हितेष स्वर्णकार ने बताया कि राजस्थान पंचायती राज प्रबोधक सेवा नियम 2008 के शेड्यूल के तहत प्रबोधकों की पदोन्नति का प्रावधान है। इसके अनुसार 9 साल की सेवा पूरी होने के बाद विभागीय पदोन्नति की तरह ही प्रबोधकों को भी पदोन्नति दिए जाने के नियम बने हुए है। दूसरी ओर राजस्थान शिक्षा सेवा अधिनियम 1971 के नियम 6-डी के अनुसार पंचायती राज के शिक्षकों को शत प्रतिशत पदोन्नति शिक्षा विभाग में करने का प्रावधान है।
80 फीसदी प्रबोधक ऐसे है, जिनके पास पदोन्नति के लायक जरूरी योग्यता पूरी है। पदोन्नति के लिए एमए और बीएड जरूरी है। जो प्रबोधकों के पास है। हालांकि विभाग की ओर से इनके लिए एक अलग से ही कैडर बना हुआ है। जिसमें पदोन्नति का प्रावधान है, परंतु सवाल यहीं है कि प्रबोधक से उन्हें क्या बनाया जाएगा। जैसे शिक्षक से वरिष्ठ अध्यापक का प्रावधान है, तो इसी तरह से प्रबोधक से वरिष्ठ प्रबोधक बनाया जा सकता है, या फिर योग्यता के मुताबिक सीधे ही उन्हें द्वितीय श्रेणी शिक्षक का दर्जा दिया जा सकता है।
पदोन्नति के लिए जरूरी योग्यता पूरी
14 साल से काम कर रहे, पद भी वहीं, काम भी वहीं
हाईकोर्ट में पहुंचने वाले प्रबोधक ललित व्यास, विनय भट्ट, संदीप पुरोहित, प्रीति पंड्या और ज्योति पंड्या का कहना है कि वह लोग प्रबोधक के तौर पर 2002 से कार्यरत है। काम करते हुए 14 साल हो गए है। काम भी शिक्षा विभाग की स्कूलों में ही कर रहे है, तो वेतन भी पंचायती राज के तहत शिक्षा विभाग की ओर से ही दिया जाता है। जो काम शिक्षक कर रहे है, वहीं काम हम कर रहे है। ऐसे में पदोन्नति को लेकर भेदभाव क्यों है। जबकि समय समय पर इस संबंध में विभाग को अवगत कराते रहे है।
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