जोधपुर मैं पोकरण का रहने वाला हूं। पिताजी वहां शिक्षक थे। हायर सैकण्डरी पोकरण में पास करने के बाद जेएनवीयू से पीजी और बीएड की। बीएड के बाद पोकरण में ही मेरी नौकरी लग गई और लेक्चरर बन गया।
लेक्चररशिप के साथ सिविल सर्विस की तैयारी
लेक्चररशिप के साथ मैंने सिविल सर्विस की तैयारी भी शुरू की। एक दिन पोकरण के ही गांधी चौक में दोस्तों के साथ बैठा था तब एक दोस्त ने मेरे से कहा कि तेरा तो आरएएस में सलेक्शन होना वाला नहीं है, यूं ही तैयारी कर रहा है।
शर्त दिल में उतर गई
उसने मेरे से 100 रुपए की शर्त लगाई। यह शर्त मेरे दिल में उतर गई और मैंने जमकर मेहनत की। वह दिन भी आया जब 1995 में आरएएस के इंटरव्यू परिणाम घोषित हुए। मैं सलेक्ट हो गया।
खुशी से गले लग नोट हाथ में थमाया
उसी दिन हम दोस्त वापस गांधी चौक में मिले और मेरे दोस्त ने खुशी से गले लगाते हुए 100 रुपए का नोट मेरे हाथ में थमाया। पांच साल के लेक्चररशिप के बाद आरएएस बनना एक सुखद एहसास था।
लेक्चररशिप के साथ सिविल सर्विस की तैयारी
लेक्चररशिप के साथ मैंने सिविल सर्विस की तैयारी भी शुरू की। एक दिन पोकरण के ही गांधी चौक में दोस्तों के साथ बैठा था तब एक दोस्त ने मेरे से कहा कि तेरा तो आरएएस में सलेक्शन होना वाला नहीं है, यूं ही तैयारी कर रहा है।
शर्त दिल में उतर गई
उसने मेरे से 100 रुपए की शर्त लगाई। यह शर्त मेरे दिल में उतर गई और मैंने जमकर मेहनत की। वह दिन भी आया जब 1995 में आरएएस के इंटरव्यू परिणाम घोषित हुए। मैं सलेक्ट हो गया।
खुशी से गले लग नोट हाथ में थमाया
उसी दिन हम दोस्त वापस गांधी चौक में मिले और मेरे दोस्त ने खुशी से गले लगाते हुए 100 रुपए का नोट मेरे हाथ में थमाया। पांच साल के लेक्चररशिप के बाद आरएएस बनना एक सुखद एहसास था।
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