जयपुर. प्रदेश के सरकारी विभागों में कर्मचारियों की भर्ती किस प्रक्रिया से हो, यह काफी अर्से से बहस का मुद्दा बना है। पिछले दिनों चिकित्सा विभाग के फैसले, प्लेसमेंट ऐजेंसी या एनजीओ के जरिए कर्मचारी नहीं लगाए जाएंगे, को हाईकोर्ट ने भी सराहा है। न्यायाधीश मनीष भंडारी ने चिकित्सा विभाग में प्लेसमेंट ऐजेंसी या एनजीओ के जरिए कर्मचारी नहीं लगाने के फैसले की प्रशंसा करते हुए इसे मूल शासन प्रणाली की दिशा में सकारात्मक कदम बताया है।
ज्यादा पैसा देना पड़ रहा, अदालतों में मुकदमे भी बढ़े
रंजना शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्रसंज्ञान लेकर कहा कि नियमों में प्लेसमेंट ऐजेंसी के जरिए संविदा पर कर्मचारी नियुक्त करने का प्रावधान ही नहीं है। इससे सरकार को ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है और अदालतों में मुकदमे भी बढ़ रहे हैं। काम लेने वाली ऐजेंसी अपने खर्चों की पूॢत या तो सरकार से ज्यादा पैसा लेकर या कर्मचारियों को कम भुगतान कर करती हैं। सरकार को सीधे ही कर्मचारी कांट्रेक्ट पर रखने चाहिए। इससे राजकोष पर तो दबाव कम होगा ही मुकदमों में भी कमी होगी।
इस साल मार्च का आदेश किया पेश
सरकार ने जननी सुरक्षा योजना में नोडल ऑफिसर के पद पर कार्यरत रंजना शर्मा की याचिका पर कोर्ट के 7 दिसंबर,2015 के आदेश को रद्द करने की अर्जी दायर कर सरकार का एक मार्च,2016 का आदेश भी पेश किया। इसके अनुसार मंत्री व प्रमुख सचिव के स्तर पर निर्णय के बाद विभाग में प्लेसमेंट ऐजेंसी या एनजीओ के जरिए कांट्रेक्ट पर कर्मचारी नहीं लेने का फैसला हो गया है। विभाग विभिन्न योजनाओं में सीधे ही कांट्रेक्ट पर कर्मचारी नियुक्त करेगा।
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