घरों औरदफ्तरों की दीवारों पर कैलेंडर लटके होते हैं, जिनमें इतवार की
छुटि्टयां लाल रंग से अंकित होती हैं। तीज-त्योहार एवं राष्ट्रीय पर्व पर
भी छुटि्टयां होती हैं और वे भी लाल होती हैं। आजकल एक नई छुट्टी ईजाद हुई
है।
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंद्रशेखर आजाद की जन्मभूमि मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले स्थित भाभरा पधारे तो शिक्षा संस्थानों में छुट्टी घोषित कर दी गई। भारी वर्षा का झीना बहाना भी बनाया जा रहा है। छुट्टी के बाद आदेश वापस लेने का हास्यास्पद प्रयास भी हुआ है। निजी शिक्षा संस्थानों के छात्रों को लाने-ले जाने वाली बसों को कलेक्टर की आज्ञा से भीड़ जुटाने के काम में लगा दिया गया। गोयाकि स्वप्रेरणा से जनता प्रधानमंत्री की सभा में नहीं जाती। इन बसों में लंच के पैकेट भी दिए गए। यह तो समझ में आता है कि कोई राजनीतिक दल अपने नेता की सभा को सफल बनाने के लिए इस तरह के कार्य करे, परंतु सरकारी आदेश द्वारा यह काम किया जाना अजीब लगता है।
ऐसे प्रायोजित कार्यक्रम विज्ञापन संसार के सत्य हैं परंतु प्रधानमंत्री की सभा के लिए यह करना प्रायोजित सरकार का प्रतीक बन जाता है। विज्ञापन संसार के तौर-तरीकों का चुनाव में प्रयोग नरेंद्र मोदी ने गुजरात में किया था और विगत आम चुनाव में भी किया था। गुजरात पर्यटन विभाग ने भी अमिताभ बच्चन को अपने विज्ञापनों के केंद्र में रखा। वे पेशेवर कलाकार हैं और फीस पाकर इस तरह का काम कर सकते हैं। यह उनका जायज अधिकार है। विज्ञापन में सिनेमा के सितारों का प्रयोग नया नहीं है। हॉलीवुड के मर्लिन ब्रैंडो ने विज्ञापन के भारी रकम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। महान अभिनेता सर ऑलिवर जो चुरुट पीना पसंद करते थे, लेिकन उसके विज्ञापन प्रस्ताव को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि वे धूम्रपान को बढ़ावा नहीं देेंगे। दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद ने विज्ञापन के अनेक प्रस्ताव ठुकराए। जब शम्मी कपूर पान मसाले के विज्ञापन में नज़र आए तब बड़े भाई राज कपूर ने उन्हें डांट लगाई। शम्मी कपूर ने स्पष्टीकरण दिया कि एक परिचित को इलाज के लिए पैसे चाहिए था और विज्ञापन का प्रस्ताव आया तो उन्होंने पैसे परिचित को दिलाए और विज्ञापन फिल्म में काम किया। राज कपूर ने कहा कि इलाज का धन अपने पास से भी दिया जा सकता था।
दरअसल, विज्ञापन फिल्में करने को तब अपनी कला के सम्मान के रूप में देखा जाता था कि यह बिकाऊ नहीं है और सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली वस्तुओं के विज्ञापन में भाग नहीं लेना चाहिए। क्या कोई कलाकार चाहेगा कि उसके कद्रदान या प्रशंसकों की संख्या कम हो जाए? अभिनेता को विज्ञापन लोकप्रियता के कारण मिलते हैं। खबर है कि दीपिका पादुकोण ने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ में अभिनय के लिए 12 करोड़ रुपए लिए हैं। हिंदी भाषा के महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी का महाकाव्य ‘पद्मावत’ भी महारानी पद्मावती की कथा है परंतु पारम्परिक कथा से भिन्न है। आज जब धर्म, भाषा इत्यादि पर मनुष्यों को बांटकर वोट बैंक रचे जा रहे हैं तब यह रेखांकित करना जरूरी है कि इस्लाम के अनुयायी मलिक मोहम्मद जायसी ने हिंदी में महाकाव्य रचा है। दिलीप कुमार भी इस्लाम के अनुयायी हैं परंतु उन्होंने अपनी एकमात्र और सर्वकालिक महान फिल्म ‘गंगा जमुना’ अवधि में बनाई है और शकील बदायूनी ने भी अवधि में गीत रचे हैं, जैसे ‘नैन लड़ जइ हंै तो मनवामा कसक होई बे करी’
बेहतर होगा कि कैलेंडर में नेताजी के आगमन पर शिक्षा संस्थानों में छुट्टी घोषित की जाती है, अत: एक और रंग का इस्तेमाल कैलेंडर में किया जाए। याद आती है ‘तनु वेड्स मनु’ के लिए राजशेखर द्वारा लिखे गीत की पंक्ति, ‘अफीम खाकर रंगरेज पूछे रंग का कारोबार क्या है, कौन-सा रंग किस पानी में मिलाया…’ सारे कुंए में ही अफीम डाल दी गई है।
जयप्रकाश चौकसे
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंद्रशेखर आजाद की जन्मभूमि मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले स्थित भाभरा पधारे तो शिक्षा संस्थानों में छुट्टी घोषित कर दी गई। भारी वर्षा का झीना बहाना भी बनाया जा रहा है। छुट्टी के बाद आदेश वापस लेने का हास्यास्पद प्रयास भी हुआ है। निजी शिक्षा संस्थानों के छात्रों को लाने-ले जाने वाली बसों को कलेक्टर की आज्ञा से भीड़ जुटाने के काम में लगा दिया गया। गोयाकि स्वप्रेरणा से जनता प्रधानमंत्री की सभा में नहीं जाती। इन बसों में लंच के पैकेट भी दिए गए। यह तो समझ में आता है कि कोई राजनीतिक दल अपने नेता की सभा को सफल बनाने के लिए इस तरह के कार्य करे, परंतु सरकारी आदेश द्वारा यह काम किया जाना अजीब लगता है।
ऐसे प्रायोजित कार्यक्रम विज्ञापन संसार के सत्य हैं परंतु प्रधानमंत्री की सभा के लिए यह करना प्रायोजित सरकार का प्रतीक बन जाता है। विज्ञापन संसार के तौर-तरीकों का चुनाव में प्रयोग नरेंद्र मोदी ने गुजरात में किया था और विगत आम चुनाव में भी किया था। गुजरात पर्यटन विभाग ने भी अमिताभ बच्चन को अपने विज्ञापनों के केंद्र में रखा। वे पेशेवर कलाकार हैं और फीस पाकर इस तरह का काम कर सकते हैं। यह उनका जायज अधिकार है। विज्ञापन में सिनेमा के सितारों का प्रयोग नया नहीं है। हॉलीवुड के मर्लिन ब्रैंडो ने विज्ञापन के भारी रकम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। महान अभिनेता सर ऑलिवर जो चुरुट पीना पसंद करते थे, लेिकन उसके विज्ञापन प्रस्ताव को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि वे धूम्रपान को बढ़ावा नहीं देेंगे। दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद ने विज्ञापन के अनेक प्रस्ताव ठुकराए। जब शम्मी कपूर पान मसाले के विज्ञापन में नज़र आए तब बड़े भाई राज कपूर ने उन्हें डांट लगाई। शम्मी कपूर ने स्पष्टीकरण दिया कि एक परिचित को इलाज के लिए पैसे चाहिए था और विज्ञापन का प्रस्ताव आया तो उन्होंने पैसे परिचित को दिलाए और विज्ञापन फिल्म में काम किया। राज कपूर ने कहा कि इलाज का धन अपने पास से भी दिया जा सकता था।
दरअसल, विज्ञापन फिल्में करने को तब अपनी कला के सम्मान के रूप में देखा जाता था कि यह बिकाऊ नहीं है और सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली वस्तुओं के विज्ञापन में भाग नहीं लेना चाहिए। क्या कोई कलाकार चाहेगा कि उसके कद्रदान या प्रशंसकों की संख्या कम हो जाए? अभिनेता को विज्ञापन लोकप्रियता के कारण मिलते हैं। खबर है कि दीपिका पादुकोण ने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ में अभिनय के लिए 12 करोड़ रुपए लिए हैं। हिंदी भाषा के महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी का महाकाव्य ‘पद्मावत’ भी महारानी पद्मावती की कथा है परंतु पारम्परिक कथा से भिन्न है। आज जब धर्म, भाषा इत्यादि पर मनुष्यों को बांटकर वोट बैंक रचे जा रहे हैं तब यह रेखांकित करना जरूरी है कि इस्लाम के अनुयायी मलिक मोहम्मद जायसी ने हिंदी में महाकाव्य रचा है। दिलीप कुमार भी इस्लाम के अनुयायी हैं परंतु उन्होंने अपनी एकमात्र और सर्वकालिक महान फिल्म ‘गंगा जमुना’ अवधि में बनाई है और शकील बदायूनी ने भी अवधि में गीत रचे हैं, जैसे ‘नैन लड़ जइ हंै तो मनवामा कसक होई बे करी’
बेहतर होगा कि कैलेंडर में नेताजी के आगमन पर शिक्षा संस्थानों में छुट्टी घोषित की जाती है, अत: एक और रंग का इस्तेमाल कैलेंडर में किया जाए। याद आती है ‘तनु वेड्स मनु’ के लिए राजशेखर द्वारा लिखे गीत की पंक्ति, ‘अफीम खाकर रंगरेज पूछे रंग का कारोबार क्या है, कौन-सा रंग किस पानी में मिलाया…’ सारे कुंए में ही अफीम डाल दी गई है।
जयप्रकाश चौकसे
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
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