जोधपुर ।मानवाधिकार को गाली देते हुए जोधपुर की सोहनलाल मनिहार गल्र्स सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कक्षा ग्यारह की छात्रा के साथ उसके सीनियर्स ने अमानवीय रूप से रैगिंग की। रैगिंग केबाद सदमे में आई छात्रा ने पहले खुदखुशी की कोशिश की, लेकिन बाद में माता-पिता के समझाने से वो शांत हुई
और उसने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे वाली स्कूल और असंवेदनहीन सीनियर्स के खिलाफ आवाज उठाने का निश्चय किया। इसके लिए उसने शिक्षा मंत्री को एक पत्र लिखा है। पत्र में उसने इस तरह से अपनी व्यथा कही है।महोदय,इसी साल दसवीं की परीक्षा पास कर ग्यारहवीं में आई थी। खूब पढऩा चाहतीथी मैं। अपने कॅरियर को लेकर बहुत से सपने सजोएं थे मैंने और मेरे माता-पिता ने, लेकिन मैं नहीं जानती थी कि जिस शिक्षा के मंदिर में मैं अपने ख्वाबों की नींव रख रही हूं, वहीं मेरे सारे सपने उजड़ जाने वाले हैं।ALSO READ- रैगिंग: स्कूल शौचालय में ग्यारहवीं की छात्रा के कपड़े खोले, मारपीटमेरी आपबीती सुनकर शायद आपके मन की धरा में हलचल मच जाएगी। आठ जुलाई का दिन था वो। आज भी आंखें बंद करती हूं तो वही सारी बातें दिमाग में आती हैं। वो ऐसा दुस्वप्न था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती। शिक्षा का मंदिर ही मेरे लिए वो काल कोठरी बन गया, जहां जाने से सब डरते हैं। शिक्षा के अधिकार की बातें तो सभी करते हैं, लेकिन उस अधिकार के साथ सुरक्षा का मुद्दा भी जुड़ा है। इस राज्य की मुख्यमंत्री भी एक महिला है। मैं उनसे ये पूछना चाहती हूं कि इस तरह कीशिक्षण व्यवस्था के बाद कैसे बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाएगा? कैसे बालिकाएं स्कूल में सुरक्षित और सहज महसूस करेंगी।? जिस स्कूल मेंनैतिकता का पतन हुआ हो, वहां क्या शिक्षा और संस्कार मिलेंगे?मरने की नाकाम कोशिशइस घटना के बाद मुझे खुद से शर्मिंदगी होने लगी। मैंने आत्महत्या की नाकाम कोशिश की। मैं अबस्कूल में कदम नहीं रख सकती। कहीं और भी नहीं जा पाउंगी। मैं पढ़ाई छोड़ रही हूं, क्योंकि पढ़ाई के नाम पर यदिस्कूलों में छात्राओं को इस कदर बेइज्जत किया जाता है और स्कूल प्रशासन इतना संवेदनहीन हो जाता है तो मेरा पढ़ाई से दूर रहना ही बेहतर है। शायद मेरे इस निर्णय से उन लोगों में भी हिम्मत आए, जो ये दंश झेल चुकी हैं।माता-पिता की पीड़ा नहीं सहन होतीमैं अपना दर्द एकबारगी भूल सकती हूं, लेकिन दर्द से छटपटाते और मुझे हिम्मत बंधाते माता-पिता की पीड़ा सहन नहीं कर सकती। ये भयावह घटना सबके लिए सबक है कि असुरक्षित होते जा रहे शिक्षण संस्थानों में माकूल इंतजामात की कितनी दरकार है। जिस दर्द और यातना से मैं गुजर रही हूं उससे अब किसी और को ना गुजरना पड़े, बस यही चाहती हूं। इसलिए मैंने ये मुद्दा मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री तक उठाया है।(जैसा पीडि़त छात्रा ने शिक्षा मंत्री को भेजी मेल में लिखा
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
और उसने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे वाली स्कूल और असंवेदनहीन सीनियर्स के खिलाफ आवाज उठाने का निश्चय किया। इसके लिए उसने शिक्षा मंत्री को एक पत्र लिखा है। पत्र में उसने इस तरह से अपनी व्यथा कही है।महोदय,इसी साल दसवीं की परीक्षा पास कर ग्यारहवीं में आई थी। खूब पढऩा चाहतीथी मैं। अपने कॅरियर को लेकर बहुत से सपने सजोएं थे मैंने और मेरे माता-पिता ने, लेकिन मैं नहीं जानती थी कि जिस शिक्षा के मंदिर में मैं अपने ख्वाबों की नींव रख रही हूं, वहीं मेरे सारे सपने उजड़ जाने वाले हैं।ALSO READ- रैगिंग: स्कूल शौचालय में ग्यारहवीं की छात्रा के कपड़े खोले, मारपीटमेरी आपबीती सुनकर शायद आपके मन की धरा में हलचल मच जाएगी। आठ जुलाई का दिन था वो। आज भी आंखें बंद करती हूं तो वही सारी बातें दिमाग में आती हैं। वो ऐसा दुस्वप्न था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती। शिक्षा का मंदिर ही मेरे लिए वो काल कोठरी बन गया, जहां जाने से सब डरते हैं। शिक्षा के अधिकार की बातें तो सभी करते हैं, लेकिन उस अधिकार के साथ सुरक्षा का मुद्दा भी जुड़ा है। इस राज्य की मुख्यमंत्री भी एक महिला है। मैं उनसे ये पूछना चाहती हूं कि इस तरह कीशिक्षण व्यवस्था के बाद कैसे बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाएगा? कैसे बालिकाएं स्कूल में सुरक्षित और सहज महसूस करेंगी।? जिस स्कूल मेंनैतिकता का पतन हुआ हो, वहां क्या शिक्षा और संस्कार मिलेंगे?मरने की नाकाम कोशिशइस घटना के बाद मुझे खुद से शर्मिंदगी होने लगी। मैंने आत्महत्या की नाकाम कोशिश की। मैं अबस्कूल में कदम नहीं रख सकती। कहीं और भी नहीं जा पाउंगी। मैं पढ़ाई छोड़ रही हूं, क्योंकि पढ़ाई के नाम पर यदिस्कूलों में छात्राओं को इस कदर बेइज्जत किया जाता है और स्कूल प्रशासन इतना संवेदनहीन हो जाता है तो मेरा पढ़ाई से दूर रहना ही बेहतर है। शायद मेरे इस निर्णय से उन लोगों में भी हिम्मत आए, जो ये दंश झेल चुकी हैं।माता-पिता की पीड़ा नहीं सहन होतीमैं अपना दर्द एकबारगी भूल सकती हूं, लेकिन दर्द से छटपटाते और मुझे हिम्मत बंधाते माता-पिता की पीड़ा सहन नहीं कर सकती। ये भयावह घटना सबके लिए सबक है कि असुरक्षित होते जा रहे शिक्षण संस्थानों में माकूल इंतजामात की कितनी दरकार है। जिस दर्द और यातना से मैं गुजर रही हूं उससे अब किसी और को ना गुजरना पड़े, बस यही चाहती हूं। इसलिए मैंने ये मुद्दा मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री तक उठाया है।(जैसा पीडि़त छात्रा ने शिक्षा मंत्री को भेजी मेल में लिखा
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