जोधपुर मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अमिलाल भाट जोधपुर के डॉ. सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य व नियंत्रक हैं, लेकिन वास्तव में कॉलेज में प्राचार्य का पदनाम या कैडर नहीं है। कॉलेज के अधीन महात्मा गांधी अस्पताल अधीक्षक डॉ. पीसी व्यास, मथुरादास माथुर अस्पताल अधीक्षक डॉ. सुनील गर्ग और उम्मेद अस्पताल अधीक्षक डॉ. रंजना देसाई भी केवल अधीक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं।
तीनों अस्पतालों में भी अधीक्षक का कोई पद नहीं है। सरकार ने अधीक्षक के नियुक्ति पत्र में 'वर्क एज सुपरिन्टेंडेंट' लिखा है। हां, ये जरुर है कि तीनों अधीक्षकों को अतिरिक्त कार्य के लिए 200 रुपए महीना भत्ता मिलता है।
प्रदेश के सामान्य वित्त व लेखा नियमों (जीएफ एण्ड एआर) के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में न तो प्राचार्य का पदनाम व न ही इसके पदानुरुप पातेय वेतनमान है। मेडिकल कॉलेज में जब किसी डॉक्टर को प्राचार्य नियुक्त किया जाता है तो उसे उसके मूल पदनाम का ही वेतन मिलता है।
डॉ. भाट को सीनियर प्रोफेसर का वेतनमान मिलता है। इसी तरह अस्पताल अधीक्षक भी अपनी डॉक्टरी का ही मेहनताना प्राप्त करते हैं। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में तीन अतिरिक्त प्राचार्य भी नियुक्त किए जाते हैं। वर्तमान में डॉ. एनडी सोनी और डॉ. रीता मीणा अतिरिक्त प्राचार्य द्वितीय व तृतीय हैं, लेकिन अतिरिक्त प्राचार्य का भी कोई पद स्वीकृत नहीं है। गांधी, एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में उप अधीक्षक के एक-एक पद जरूर स्वीकृत हैं। उप अधीक्षक के पद पर कार्यरत डॉक्टरों को उप अधीक्षक पद का वेतन मिलता है।
फिर इंटरव्यू किसका?
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के सभी छह मेडिकल कॉलेजों में न तो प्रिंसिपल का पद है और न ही इनके अधीन अस्पतालों में कोई अधीक्षक। सरकार हर साल किसी न किसी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य अथवा उसके अधीन अस्पताल के अधीक्षक पद के लिए साक्षात्कार रखती है, जिसमें कई डॉक्टर भाग लेते हैं। साक्षात्कार के बाद सरकार प्राचार्य अथवा अधीक्षक नियुक्त करती है। एेसे में सवाल यह उठता है कि जब पद ही नहीं है, तो सरकार इंटरव्यू किसका ले रही है? किस विभाग में पद की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति राज्य का वित्त विभाग तय करता है।
जरूरी क्यों
मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया (एमसीआई) की गाइडलाइन के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में प्राचार्य और अस्पताल में अधीक्षक का होना अनिवार्य है। एमसीआई यह भी कहती है कि अस्पताल का वरिष्ठतम डॉक्टर (सीनियर मोस्ट प्रोफेसर) अधीक्षक के रूप में कार्य करेगा।
बरसों से यही चला आ रहा है
सरकार की हाईपावर कमेटी प्राचार्य नियुक्त तो करती है, लेकिन वास्तव में प्राचार्य का कोई कैडर नहीं है। यही अधीक्षक के साथ है। प्राचार्य व अधीक्षक के पद का कुछ भत्ता जरुर मिलता है। यह परंपरा बरसों से चली आ रही है।
डॉ. डीपी पूनिया, पूर्व प्राचार्य, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज (वर्तमान में महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज जयपुर के डीन हैं )
कोई पद नहीं है
मेडिकल कॉलेज में न तो प्रिंसिपल का पद है और न ही अधीक्षक का। सरकार नियुक्ति पत्र में 'वर्क एज सुपरिन्टेंडेंटÓ लिखती है।
डॉ. नरेंद्र छंगाणी, पूर्व अधीक्षक, उम्मेद अस्पताल
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