श्रीगंगानगर. राजस्थान में श्रीगंगानगर के रावला कस्बे का गांव है, 3-केडी। करीब डेढ़ हजार लोग रहते हैं, यहां। एक सरकारी स्कूल है, 12वीं तक। इसमें करीब 225 बच्चे पढ़ते हैं। इस महीने की 10 तारीख से सब के सब धरने पर बैठे थे। मगर बुधवार से पूरा गांव इनके साथ हो लिया है। पंचायत ने तय किया है कि जब तक बच्चों की मांगें नहीं मानी जातीं, गांव के किसी घर में रात का खाना नहीं बनेगा।
और बच्चों की मांग क्या? महज इतनी सी कि हुक्मरान उनके आने वाले कल से खिलवाड़ न करें। दरअसल, स्कूल में नजदीकी गांवों के बच्चे भी पढ़ने आते हैं। इन्हें तालीम देने के लिए 18 टीचर होने चाहिए। लेकिन हैं, महज पांच। पहले से पांचवे दर्जे तक के नौनिहालों को पढ़ाने के लिए तो एक भी टीचर नहीं है। इसके मायने निकालिए तो कहना गलत नहीं होगा कि नींव ही खोखली हो रही है। अब नींव से ऊपर का हाल देख लीजिए। स्कूल में 10 से 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई लेक्चरर भी नहीं हैं। बच्चे सेहतमंद रहें, तंदुरुस्त रहें इसलिए एक फिजिकल एजुकेशन टीचर का भी बंदोबस्त किया गया है। लेकिन सिर्फ सरकारी कागजात में। क्योंकि इस तरह कोई टीचर बच्चों को अब तक मुनासिब नहीं हो पाया है।
अब इन हालात में बच्चों व उनके मां-बाप का गुस्सा जायज ही कहा जाएगा न। और इस गुस्से का आलम देखिए। पंचायत ने गांव वालों के लिए टेर लगाई कि सब लोग बुधवार सुबह स्कूल के सामने इकट्ठा हो जाएं। और महज एक आवाज पर 10 साल के बच्चे से लेकर 98 की उम्र के बुजुर्ग तक सब आ डटे। कई औरतें तो घर से चूल्हे ही उठा लाईं। ऐलान कर दिया गया कि जब तक स्कूल में मास्टरों की तैनाती नहीं होती, पूरा गांव सिर्फ दिन में खाना खाएगा। जब नए टीचर आ जाएंगे तो उनके साथ ही रात का खाना खाएंगे। किस्तूरी 60 साल की हैं। कहती हैं, ‘हम तो नहीं पढ़ पाए, मगर बच्चों को अनपढ़ नहीं रहने देंगे।’ ममता और संयोगिता 10वीं में हैं। कहती हैं, ‘सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे देती है। पर जब बेटियां पढ़ने जाती हैं तो स्कूलों में टीचर नहीं होते। ऐसे में बेटियां कैसे पढ़ेंगीं?’
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