जिले में कुछ सरकारी स्कूल ऐसे भी हैं, जो इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों की
बदौलत आदर्श बने हैं। इन शिक्षकों के जज्बे का नतीजा है कि सरकार से बजट
नहीं मिलने के बावजूद ये स्कूल सुरक्षित अवस्था में आने के साथ बच्चों को
भी हर सुविधा मुहैया करवा रहे हैं। कहीं समाजसेवियों का भी सहयोग मिला,
लेकिन कहीं यह भी नहीं हो सका।
कोई भामाशाह तैयार नहीं होता देख गोगुंदा में सरे कला राउप्रावि के प्रधानाध्यापक सुरेश जैन ने तो वेतन से ही अपने जर्जर स्कूल भवन की मरम्मत और रंगाई-पुताई करवा दी। इस काम पर करीब एक लाख रुपए खर्च हुए। जैन ने बताया कि पहले वे मजाम उप्रावि में थे। वहां भी निजी खर्च से छत और खेल मैदान की मरम्मत करवाई थी। बार-बार होती चाेरियों के कारण मजबूत खिड़की-दरवाजे लगवाए। पानी की मोटर भी लगवाई। वे 10 माह में सरे कला स्कूल में ढाई लाख रुपए के काम करवा चुके हैं। जैन बताते हैं कि हर खर्च का इंद्राज उनकी कैशबुक में भी है और शिक्षा अधिकारी भी इससे वाकिफ हैं।
सोच यही कि छात्रों को नहीं खले किसी तरह की कमी, मिले पढ़ने का अच्छा माहौल
कड़िया स्कूल : निजी की तरह हैं वाटर कूलर, ग्रीन बोर्ड और वेस्टर्न टॉयलेट
कड़िया सीनियर सेकंडरी स्कूल किसी निजी विद्यालय से कमतर नहीं है। प्रिंसिपल स्निग्धा भणात ने भामाशाहों की मदद से डेढ़ साल में स्कूल की सूरत बदली है। करीब 45 लाख रुपए लागत से इंडियन के साथ वेस्टर्न टॉयलेट लगाने के साथ वाटर कूलर, क्लास रूम में कोटा स्टोन और ग्रीन बोर्ड जैसी सुविधाएं विकसित कराई। यहां दो साल गणित का शिक्षक नहीं है, फिर भी दसवीं और 12वीं का परिणाम शत प्रतिशत रिजल्ट दिया। ज्यादातर छात्रों के अभिभावक मजदूरी करते हैं, जो पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में नहीं आ पाते। विद्यालय प्रबंधन ने राह निकाली, अब स्कूल का स्टाफ अभिभावकों के पास जाता है।
वरड़ा स्कूल : कम्प्यूटर लैब, फर्नीचर के साथ कराया हर बंदोबस्त
वरड़ा के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल में प्रिंसिपल रेणु शर्मा ने भामाशाहों की मदद से स्कूल में एक अतिरिक्त कक्षा कक्ष बनवाया। सभी कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड के अलावा कुर्सी-टेबल लगवाए। कम्प्यूटर लैब भी तैयार करवाई, जहां बच्चों को कम्प्यूटर की बेसिक शिक्षा के साथ इंटरनेट भी सिखाते हैं। प्रिंसिपल रेणु बताती हैं, बच्चों के बैठने के लिए जाजम-दरी तक नहीं थी। उन्होंने अपने वेतन से यह व्यवस्था की। स्कूल से पांच छात्राओं को बीते साल गार्गी पुरस्कार मिला था।
प्रयास की मिसाल
सरे कला प्रधानाध्यापक ने 10 महीने में वेतन से स्कूल पर लगाए ढाई लाख रुपए
नला फला स्कूल : सरकारी पुस्तकें नहीं मिली तो खरीदकर बच्चों को दी
नला फला के उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा विभाग की तरफ से सत्र शुरू होने के दो माह बाद मुफ्त वितरित होने वाली पुस्तकें नहीं पहुंची थीं। शिक्षक नारायण सिंह ने अपने वेतन से ये किताबें खरीदीं और बच्चों को उपलब्ध कराई। बाजार से इस खरीद में करीब सात हजार रुपए लगे। नारायण सिंह ने बताया कि समय रहते किताबें मिलने से बच्चों की पढ़ाई नहीं बिगड़ी। कई छात्र चिंतित थे कि किताबें मिलने में देरी से परिणाम न बिगड़ जाए।
कोई भामाशाह तैयार नहीं होता देख गोगुंदा में सरे कला राउप्रावि के प्रधानाध्यापक सुरेश जैन ने तो वेतन से ही अपने जर्जर स्कूल भवन की मरम्मत और रंगाई-पुताई करवा दी। इस काम पर करीब एक लाख रुपए खर्च हुए। जैन ने बताया कि पहले वे मजाम उप्रावि में थे। वहां भी निजी खर्च से छत और खेल मैदान की मरम्मत करवाई थी। बार-बार होती चाेरियों के कारण मजबूत खिड़की-दरवाजे लगवाए। पानी की मोटर भी लगवाई। वे 10 माह में सरे कला स्कूल में ढाई लाख रुपए के काम करवा चुके हैं। जैन बताते हैं कि हर खर्च का इंद्राज उनकी कैशबुक में भी है और शिक्षा अधिकारी भी इससे वाकिफ हैं।
सोच यही कि छात्रों को नहीं खले किसी तरह की कमी, मिले पढ़ने का अच्छा माहौल
कड़िया स्कूल : निजी की तरह हैं वाटर कूलर, ग्रीन बोर्ड और वेस्टर्न टॉयलेट
कड़िया सीनियर सेकंडरी स्कूल किसी निजी विद्यालय से कमतर नहीं है। प्रिंसिपल स्निग्धा भणात ने भामाशाहों की मदद से डेढ़ साल में स्कूल की सूरत बदली है। करीब 45 लाख रुपए लागत से इंडियन के साथ वेस्टर्न टॉयलेट लगाने के साथ वाटर कूलर, क्लास रूम में कोटा स्टोन और ग्रीन बोर्ड जैसी सुविधाएं विकसित कराई। यहां दो साल गणित का शिक्षक नहीं है, फिर भी दसवीं और 12वीं का परिणाम शत प्रतिशत रिजल्ट दिया। ज्यादातर छात्रों के अभिभावक मजदूरी करते हैं, जो पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में नहीं आ पाते। विद्यालय प्रबंधन ने राह निकाली, अब स्कूल का स्टाफ अभिभावकों के पास जाता है।
वरड़ा स्कूल : कम्प्यूटर लैब, फर्नीचर के साथ कराया हर बंदोबस्त
वरड़ा के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल में प्रिंसिपल रेणु शर्मा ने भामाशाहों की मदद से स्कूल में एक अतिरिक्त कक्षा कक्ष बनवाया। सभी कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड के अलावा कुर्सी-टेबल लगवाए। कम्प्यूटर लैब भी तैयार करवाई, जहां बच्चों को कम्प्यूटर की बेसिक शिक्षा के साथ इंटरनेट भी सिखाते हैं। प्रिंसिपल रेणु बताती हैं, बच्चों के बैठने के लिए जाजम-दरी तक नहीं थी। उन्होंने अपने वेतन से यह व्यवस्था की। स्कूल से पांच छात्राओं को बीते साल गार्गी पुरस्कार मिला था।
प्रयास की मिसाल
सरे कला प्रधानाध्यापक ने 10 महीने में वेतन से स्कूल पर लगाए ढाई लाख रुपए
नला फला स्कूल : सरकारी पुस्तकें नहीं मिली तो खरीदकर बच्चों को दी
नला फला के उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा विभाग की तरफ से सत्र शुरू होने के दो माह बाद मुफ्त वितरित होने वाली पुस्तकें नहीं पहुंची थीं। शिक्षक नारायण सिंह ने अपने वेतन से ये किताबें खरीदीं और बच्चों को उपलब्ध कराई। बाजार से इस खरीद में करीब सात हजार रुपए लगे। नारायण सिंह ने बताया कि समय रहते किताबें मिलने से बच्चों की पढ़ाई नहीं बिगड़ी। कई छात्र चिंतित थे कि किताबें मिलने में देरी से परिणाम न बिगड़ जाए।
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