शिक्षा विभाग की ओर से शहर में इन दिनों अंडर-14 हॉकी क्रिकेट के छह दिवसीय
स्टेट टूर्नामेंट चल रहे हैं। हॉकी टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए 38
क्रिकेट की 29 टीमें आई हैं। इनमें 1100 के करीब तो खिलाड़ी ही हैं, कोच
मैनेजर आदि अलग।
गुरुवार से ये टीमें मैच खेल रही हैं, लेकिन दोनों खेलों के लिए सरकार से महज 21-21 हजार रुपए का बजट अभी सिर्फ स्वीकृत हुआ है, राशि अभी मिलना बाकी है। ऐसे में आयोजकों को बच्चों के लिए एक समय नाश्ता, दो समय भोजन की व्यवस्था करवाने में पसीने छूट रहे हैं। हालांकि 42 हजार का बजट मिल भी जाता तो सिर्फ 1100 बच्चों के एक दिन के नाश्ते भोजन की व्यवस्था में ही पूरा हो जाता। शिक्षक घूम-घूम कर दानदाताओं का सहयोग लेकर काम चला रहे हैं। यहां खेल के मैदान, भोजन, रहने के लिए होटल-धर्मशाला, पीने का पानी, विजेता-उप विजेता टीमों को ट्राॅफी देने, उद्घाटन समापन समारोह का खर्च सब दानदाताओं के भरोसे चल रहा है। पिछले दो दिनों से यहां पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आईं इन टीमों को दानदाता ही भोजन करवा रहे हैं। विभागीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में बजट का कोई प्रावधान नहीं होने से बच्चों को खेलने का किट तक नहीं मिलता। ऐसे में बच्चों को बिना सेफ्टी उपकरणों के खेलना पड़ रहा है। जोधपुर को इस बार हॉकी प्रतियोगिता करवाने का जिम्मा सौंपा गया, लेकिन बजट नहीं होने के कारण पूरी व्यवस्था दानदाताओं पर निर्भर हो गई है। खाने-पीने और रहने के नाम पर मेजबान जिले को पचास रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कुल 21 हजार रुपए का बजट दिया जाता है, लेकिन वो भी टूर्नामेंट खत्म होने के तीन-चार महीने बाद मिलता है। हाल यह है कि कोई भी जिला स्टेट लेवल के टूर्नामेंट करवाना नहीं चाहता, लेकिन रोटेशन से गेम देने का नियम होने के कारण जोधपुर को इस बार हॉकी खेल की प्रतियोगिता करवानी पड़ी।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
गुरुवार से ये टीमें मैच खेल रही हैं, लेकिन दोनों खेलों के लिए सरकार से महज 21-21 हजार रुपए का बजट अभी सिर्फ स्वीकृत हुआ है, राशि अभी मिलना बाकी है। ऐसे में आयोजकों को बच्चों के लिए एक समय नाश्ता, दो समय भोजन की व्यवस्था करवाने में पसीने छूट रहे हैं। हालांकि 42 हजार का बजट मिल भी जाता तो सिर्फ 1100 बच्चों के एक दिन के नाश्ते भोजन की व्यवस्था में ही पूरा हो जाता। शिक्षक घूम-घूम कर दानदाताओं का सहयोग लेकर काम चला रहे हैं। यहां खेल के मैदान, भोजन, रहने के लिए होटल-धर्मशाला, पीने का पानी, विजेता-उप विजेता टीमों को ट्राॅफी देने, उद्घाटन समापन समारोह का खर्च सब दानदाताओं के भरोसे चल रहा है। पिछले दो दिनों से यहां पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आईं इन टीमों को दानदाता ही भोजन करवा रहे हैं। विभागीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में बजट का कोई प्रावधान नहीं होने से बच्चों को खेलने का किट तक नहीं मिलता। ऐसे में बच्चों को बिना सेफ्टी उपकरणों के खेलना पड़ रहा है। जोधपुर को इस बार हॉकी प्रतियोगिता करवाने का जिम्मा सौंपा गया, लेकिन बजट नहीं होने के कारण पूरी व्यवस्था दानदाताओं पर निर्भर हो गई है। खाने-पीने और रहने के नाम पर मेजबान जिले को पचास रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कुल 21 हजार रुपए का बजट दिया जाता है, लेकिन वो भी टूर्नामेंट खत्म होने के तीन-चार महीने बाद मिलता है। हाल यह है कि कोई भी जिला स्टेट लेवल के टूर्नामेंट करवाना नहीं चाहता, लेकिन रोटेशन से गेम देने का नियम होने के कारण जोधपुर को इस बार हॉकी खेल की प्रतियोगिता करवानी पड़ी।
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