रामेश्वर बेड़ा/जोधपुर । सरकारी शालाओं में शिक्षकों का टोटा फिर भी बच्चे पढ़ाई कर लेंगे.....बिजली, पंखा, पानी की समस्या फिर भी बच्चे पढ़ ही लेंगे, लेकिन पढऩे के लिए किताबें ही न हों तो फिर कैसे पढ़ेंगे।
समायोजन, सेटअप परिवर्तन और काउंसलिंग में उलझे सरकारी सिस्टम को भी शायद बच्चों की पढ़ाई की ज्यादा चिंता नहीं है। इसलिए नया सत्र शुरू होने के दो महीने बाद भी बालक-बालिकाएं किताबों के लिए तरस रहे हैं।
जोधपुर संभाग के छह जिलों जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, जालोर, सिरोही में ज्यादातर स्कूलों में बच्चे शिक्षकों के साथ अब किताबों के लिए भी तरस रहे हैं। शासन के निर्देश हैं कि प्रवेशोत्सव के दिन ही छात्रों को जरूरी किताबें उपलब्ध कराई जाएं, लेकिन अधिकांश विषयों की पूरी किताबें स्कूलों में नहीं हैं। निशुल्क होने से बाजार में भी कोई दुकानदार एेसी किताबें नहीं रखते।
जोधपुर में पुस्तकों की सर्वाधिक समस्या है। कक्षा 2, 5 व 7 वीं में गणित, विज्ञान सामाजिक, अंगे्रजी की किताब उपलब्ध नहीं कराई गई है। कक्षा चौथी, आठवीं व तीसरी की भी आधी पुस्तकें ही आई हैं। 1 से 30 अप्रैल तक जो कक्षाएं चलाई गई वह औपचारिकता ही साबित हुई क्योंकि अभी तक संभाग के आधे स्कूलों में 35 फीसदी बच्चों के हाथों तक किताबें नहीं पहुंची हैं। अधिकांश कक्षाओं का पाठ्यक्रम बदल गया है इसलिए पुरानी पुस्तकों से भी नहीं पढ़ाया जा सकता।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
समायोजन, सेटअप परिवर्तन और काउंसलिंग में उलझे सरकारी सिस्टम को भी शायद बच्चों की पढ़ाई की ज्यादा चिंता नहीं है। इसलिए नया सत्र शुरू होने के दो महीने बाद भी बालक-बालिकाएं किताबों के लिए तरस रहे हैं।
जोधपुर संभाग के छह जिलों जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, जालोर, सिरोही में ज्यादातर स्कूलों में बच्चे शिक्षकों के साथ अब किताबों के लिए भी तरस रहे हैं। शासन के निर्देश हैं कि प्रवेशोत्सव के दिन ही छात्रों को जरूरी किताबें उपलब्ध कराई जाएं, लेकिन अधिकांश विषयों की पूरी किताबें स्कूलों में नहीं हैं। निशुल्क होने से बाजार में भी कोई दुकानदार एेसी किताबें नहीं रखते।
जोधपुर में पुस्तकों की सर्वाधिक समस्या है। कक्षा 2, 5 व 7 वीं में गणित, विज्ञान सामाजिक, अंगे्रजी की किताब उपलब्ध नहीं कराई गई है। कक्षा चौथी, आठवीं व तीसरी की भी आधी पुस्तकें ही आई हैं। 1 से 30 अप्रैल तक जो कक्षाएं चलाई गई वह औपचारिकता ही साबित हुई क्योंकि अभी तक संभाग के आधे स्कूलों में 35 फीसदी बच्चों के हाथों तक किताबें नहीं पहुंची हैं। अधिकांश कक्षाओं का पाठ्यक्रम बदल गया है इसलिए पुरानी पुस्तकों से भी नहीं पढ़ाया जा सकता।
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